मोदी, मुसलमान और मधु किश्वर के मधुर किस्से

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संजय तिवारी, संपादक, विस्फोट :

सात रेसकोर्स रोड के चौराहे पर अकबर रोड पर दो घर बिल्कुल आमने-सामने हैं।

हालाँकि दोनों ही घरों का आधिकारिक पते पर अकबर रोड अंकित नहीं है लेकिन दोनों घर हैं बिल्कुल आमने-सामने। इसमें एक घर किसी जमाने में बतौर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का आधिकारिक आवास होता था। अब उनकी स्मृतियों को समर्पित है। इसी घर के ठीक सामने एक और घर है जिसका पते पर भी अकबर रोड अंकित नहीं है, लेकिन आधिकारिक रूप से यह एक ऐसे व्यक्ति का आवास है जिसके बिना इंदिरा गांधी के जिन्दगी की कहानी भले ही पूरी पड़ जाये, मौत की कहानी अधूरी रह जायेगी। वे राम जेठमलानी हैं। वही राम जेठमलानी जो कभी इंदिरा गांधी के हत्यारों के वकील के तौर पर चर्चित हुए थे और अब बतौर राज्यसभा सांसद इस आवास में बिराजते हैं।

इंदिरा गांधी के हत्यारों की वकालत करने के मामले में राम जेठमलानी हमेशा यह तर्क देते आये हैं कि पेशे से वे एक वकील हैं और बार काउंसिल की उस नियमावली से बंधे हैं जो सबके लिए पैरवी की वकालत करता है। लेकिन इससे भी इतर नजदीकी लोगों में राम साहब के नाम से जाने जानेवाले राम जेठमलानी जिस बात के लिए जाने जाते हैं कि ऊँची अदालतों में जिसका कोई नहीं होता, उसके राम जेठमलानी होते हैं। न्याय की जंग में जिसे कहीं शरण नहीं मिलती है उसे राम जेठमलानी मिलते हैं। इंदिरा गांधी के हत्यारे हों कि संत आसाराम। राजीव गांधी के हत्यारे हों कि अमित शाह प्यारे। हाजी मस्तान हों कि नरेन्द्र मोदी बेचारे। संकट के समय में कई बार महंगी फीस के सहारे तो कई बार न्याय के नाम पर राम साहब मैदान में खड़े नजर आते हैं। बुधवार को भी कुछ ऐसा ही था।

अपने आपको दस महीने पहले तक गैर भाजपाई विचारक बताने वाली मधु किश्वर ने बड़ी जतन और लगन से एक किताब लिखी है। नाम है- ”मोदी मुस्लिम ऐंड मीडिया। वॉयस फ्रॉम नरेंद्र मोदीज गुजरात।” किताब लिखने और मानुषी प्रकाशन के तहत खुद ही छाप लेने के बाद मधु किश्वर बीते कुछ समय से इंटरने पर तो इस किताब का प्रचार कर रही थीं लेकिन शायद वे इस किताब का औपचारिक लोकार्पण भी करना चाहती थीं। मधु किश्वर का कहना है कि वे दिल्ली में दर दर भटकती रहीं लेकिन किसी भी बड़े संस्थान ने उन्हें किताब का लोकार्पण करने की जगह नहीं थी। इंडिया इंटरनेशनल सेन्टर और गांधी शांति प्रतिष्ठान का नाम भी लिया और कहा कि किताब के बारे में ही सुनकर उन्होंने जगह देने से मना कर दिया। मोदी, मुसलमान और मीडिया क्या ये तीन शब्द इतने खतरनाक हैं कि एक साथ मिल जायें तो दिल्ली में किराये पर हाल का कारोबार करनेवाली संस्थाएँ तीन घंटे के लिए अपना हॉल देने से मना कर दें? मधु किश्वर की मानें तो उनके साथ ऐसा ही हुआ। लिहाजा, लोकतंत्र पर छाये संकट की इस घड़ी में मधु किश्वर ने राम साहब की शरण ली और राम जेठमलानी के घर के अहाते में 2 अप्रैल को लोकार्पण की तारीख तय कर दी गयी।

मधु किश्वर ने लोकार्पण में जिन तीन लोगों को चर्चा के लिए निमंत्रित किया था, उसमें जिल्ले इलाही भाजपाई एमजे अकबर, राम जेठमलानी और जफर सरेसवाला का नाम शामिल था। चौथे वक्ता के बतौर मधु किश्वर खुद मौजूद रहने वाली थीं। न जाने क्या हुआ कि ‘जिल्ले इलाही’ एमजे अकबर नहीं आये। जो आये उसमें सिर्फ राम जेठमलानी और जफर सरेसवाला ही थे। थोड़ा अनौपचारिक और अस्तव्यस्त तरीके से ही सही लेकिन किताब का लोकार्पण होना था, हुआ। 401 पन्नों वाली और 401 रुपये कीमत वाली इस किताब के बारे में और अपने गुजरात अनुभव के बारे में मधु किश्वर कुछ कहतीं इसके पहले उन्होंने जफर सरेसवाला से कहा कि वे कुछ कहें। लेकिन राम जेठमलानी के साथ अपनी मौजूदगी से जफर इतने अभिभूत थे कि कुछ खास कह न सकें। उनके कहने के लिए कुछ खास है भी नहीं। सिर्फ इतना बताया कि मोदी से उनकी लंदन में कैसे मुलाकात हुई और फिर दोनों एक दूसरे के कैसे करीब आते गये। आज जफर सरेसवाला को मोदी के गुजरात में ‘मोदी के मुसलमान’ के रूप में पहचाना जाता है और गुजरात में मुस्लिम उद्धार के जितने भी प्रचार कार्यक्रम चलाये जाते हैं उसके मूल में जफर सरेसवाला ही पाये जाते हैं।

जफर सरेसवाला के बारे में कहा जाता है कि मोदी का दरवाजा जफर के लिए कभी बंद नहीं होता। वे जब चाहे मुख्यमंत्री कार्यालय के खिड़की दरवाजे से भीतर जा सकते हैं। स्वाभाविक है, इतनी सुविधा मिल जाने के बाद कोई भी इंसान किसी भी मंत्री या मुख्यमंत्री का भक्त हो ही जाता है। सुन्नी बोहरा समाज से ताल्लुक रखने वाले जफर व्यापारी हैं और मुसलमानों की तरक्की के लिए एजुकेशन को हथियार मानते हैं। उनकी नजर में मोदी जैसा दूरदर्शी व्यक्ति ही मुसलमानों के लिए तरक्की का रास्ता खोल सकता है इसलिए वे पूरी तरह से मोदी के मिशन पीएम में लगे हुए हैं। मोदी के प्रति उनकी सारी श्रद्धा और समर्पण स्वागत योग्य है लेकिन संकट सिर्फ इतना है कि जफर जिस बोहरा समुदाय से ताल्लुक रखते हैं वे भारत तो छोड़िये पाकिस्तान में भी मुसलमानों के बीच ईमानवाले मुसलमान नहीं माने जाते। बोहरा उतने ही मुसलमान होते हैं जितना मोदी और महाजन हिंदू होते हैं। इसलिए सरेसवाला और मोदी की मित्रता के कारण निश्चित रूप से वह विकास होगा जो व्यापार को हर संस्कार के ऊपर रखता है।

लेकिन सरेसवाला से परे मधु किश्वर के अकादमिक मोदी भक्ति की कहानी कुछ अलग है। खुद मधु किश्वर कहती हैं कि मोदी के प्रति उनके मन में वही धारणा थी जो किसी और के मन में हो सकती थी/हो सकती है। वे जितना मोदी को जानती थी, मोदी उनको डेमोन (शैतान) ही नजर आता था। आमतौर पर दिल्ली की मुख्यधारा महिला अधिकार आंदोलनों का अनिवार्य हिस्सा रहनेवाले मधु किश्वर कहती भी हैं कि वे मोदी को वैसा ही समझतीं थी जैसा तीस्ता सीतलवाड़ या शबनम हाशमी अब भी समझती हैं। लेकिन बीते कुछ महीनों में ‘मोदी शैतान’ से ‘मोदी महान’ की उनकी मानसिक यात्रा हो गयी। मोदी में महानता का दर्शन करने के पीछे की मूल वजह भी वे नहीं छुपाती हैं और कहती हैं कि तीस्ता और शबनम हाशमी मोदी नाम को लेकर इतनी एकरंग हैं कि धीरे धीरे तीस्ता और शबनम ही वह (डेमोन) नजर आने लगीं जो वे मोदी का बताती हैं। शायद तीस्ता और शबनम के साथ हुई इसी वैचारिक ईर्श्याद्वेष और अनबन ने मधु किश्वर को प्रेरित किया कि वे अपने पैरों पर चलकर गुजरात जायें और गुजरात का सच पता लगायें कि क्या वास्तव में मोदी उतने ही बुरे हैं, जितना तीस्ता या शबनम बताती हैं या फिर कहानी कुछ और है?

करीब छह आठ महीने गुजरात में गुजारने और आने जाने के बाद मधु किश्वर के लिए ‘कहानी कुछ और’ हो ही गयी। अब कहानी क्या हो गयी है, उसका अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि मधु किश्वर की नजर में मोदी महान अपने तरह का ऐसा इकलौता इंसान है जो राजनीतिक तौर पर जीनियस है। मधु किश्वर कहती हैं- “वह अकेला ऐसा आदमी है जो इस देश के हर आदमी का विकास कर सकता है।” गुजरात ज्ञान को किताब में समेटकर संसार को समर्पित करते हुए करीब आधे घंटे के अपने मोदी प्रवचन के दौरान वे इतनी तल्लीन हो गयीं कि राम जेठमलानी को टोंकना पड़ा कि जिरह लंबी हो रही है। एक और वरिष्ठ वकील बगल में बोलने के लिए ही बैठा है। रोकते रोकते भी वे कहने से अपने आपको नहीं रोक पायी कि “उस आदमी को बर्बाद करने के लिए पूरे देश में एक माफिया आपरेशन चलाया जा रहा है।” और मोदी की छवि खराब करने वाले यह माफिया कहाँ कहाँ मौजूद है? मधु की मधुर वाणी ने कांग्रेस और बीजेपी दोनों का नाम लेने से परहेज नहीं किया।

जफर सरेसवाला हों, मधु किश्वर हों कि राम जेठमलानी मोदी की तारीफ करने और मोदी के लिए काम करने की उन सबके जरूर अपने अपने तर्क और कारण होंगे। लेकिन सभी ने एक ही शैली में दो सत्य के बीच एक झूठ छिपा लेने वाली शैली का सहारा लेकर मोदी गान किया। मधु किश्वर और राम जेठमलानी दोनों ने समान रूप से एक सपाट झूठ बोला कि मोदी गुजरात जाना नहीं चाहते थे, यह तो मोदी को बुलाकर गुजरात की जिम्मेदारी सौंप दी गयी। हो सकता है दोनों भी इस बात को जानते हैं कि यह सच नहीं है। नरेंद्र मोदी हर हाल में गुजरात का मुख्यमंत्री बनना चाहते थे और इसके लिए उन्होंने एक हफ्ते तक संघ के झंडेवालान कार्यालय में कमोबेश धरना ही दे रखा था। मोदी के प्रचार तंत्र ने खुद यह प्रचारित किया था कि जिस दिन वे संघ के प्रचारक बने थे, उन्होंने तय किया था कि बीस साल में गुजरात के मुख्यमंत्री बन जायेंगे और वे बन गये। इसलिए कम से कम इस बारे में ये दोनों मोदी प्रशंसक बाकी लोगों को गुमराह कर रहे हैं। इसी तरह इन दोनों वक्ताओं ने गोधरा का जिक्र तो किया। गोधरा कांड में कांग्रेस की संदिग्ध भूमिका का नाम लिया लेकिन बड़ी चालाकी से उसके बाद पूरे गुजरात में मचे कत्लेआम पर एक शब्द भी नहीं बोला। गोधरा के बाद दोनों वक्ता मोदी के विकास पर केंद्रित हो गये।

इन दोनों को अंदाज हो न हो, लेकिन सुनने और समझने वालों को इतना अंदाज जरूर होगा कि मोदी कारसेवकों को जलाने के गुनहगार कभी नहीं कहे जाते। राजनीतिक तौर पर भले ही मोदी के ऊपर आरोप लगता हो कि सब कुछ एक योजना के तहत किया गया, लेकिन जनमानस में मोदी के प्रति जो भय और गुस्सा है वह गोधरा के बाद हुए गुजरात दंगों को लेकर है। लेकिन कमाल देखिये कि मोदी को मुस्लिमों के 31% वोट का हवाला देने वाले मधु किश्वर हों कि राम जेठमलानी सिरे से ही सिरे को गायब कर देते हैं। राम जेठमलानी मोदी और अमित शाह के वकील रहे हैं इसलिए निश्चित रूप से वे इन दोनों के बारे में इतना कुछ जानते होंगे जितना सामान्य जन को कभी पता नहीं चल पायेगा। मधु किश्वर तो नयी-नयी तीरंदाज हैं। उनकी मोदी भक्ति में ‘शबनमी ईर्श्या’ मूल तत्व है। इसलिए मधु किश्वर द्वारा कहे जाने वाले मोदी के मधुर किस्से उतना परेशान नहीं करते, लेकिन राम जेठमलानी भी अगर तथ्यों से ऐसी सफाई बरतें तो? शायद इंदिरा गांधी की स्मृतियां अभी भी जेठमलानी के जेहन में ताजा हैं, इसलिए हत्यारी कांग्रेस का दंश उन्हें ज्यादा चुभता है लेकिन गुजरात का नरसंहार उनकी आँख में आंसू नहीं लाता बल्कि ‘मोदी सुरक्षा कवच’ की चमक बिखेरकर चला जाता है।

(देश मंथन, 04 अप्रैल 2014)

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