भैया, यह वासेपुर है। कबूतर भी एक पंख से उड़ता है तो दूसरे पंख से इज्जत ढकता है। यहाँ अब इज्जत ढकने का सवाल नहीं है। जिंदा लोगों के लाशों में तब्दील होने की जंग है। इस बार जंग में शामिल है जेल में सजा काट रहे फहीम खान की सल्तनत के लिए चुनौती बन कर उभरा छोटे सरकार उर्फ प्रिंस खान। इस जंग में ड्रामा है, थ्रिल है, सस्पेंस है...
विवेक अग्निहोत्री की सफलता यही है कि उन्होंने विमर्श की दिशा मोड़ दी। उन्होंने बस दर्द को जस-का-तस परोस दिया, जो इतने वर्षों से झेलम नदी में कश्मीरियत की हरी काई के नीचे दबा था और अब वह दर्द बह कर नीचे उस मैदान में आ गया है, जहाँ तक आने से लिबरल जमात उसे रोक रही थी!
क्या किसान की आमदनी 100 से बढ़ा कर 200 रुपये करने के लिए उपभोक्ता का खर्च 400 से बढ़ा कर 800 रुपये किया जाना ऐसा विकल्प है, जिसे लोग पसंद करेंगे? क्या आप तैयार हैं कि जो आटा 40 रुपये किलो खरीदते हैं, उसे 80 रुपये में खरीदने लगें और जो दाल 100 रुपये किलो खरीद रहे हैं, उसे 200 रुपये में खरीदने लगें? क्या किसानों की आमदनी दोगुनी करने का मतलब यह है कि खाद्य महँगाई भी दोगुनी हो जायेगी?