Thursday, April 25, 2024
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प्यार दो, प्यार लो

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

जबलपुर जाने का मतलब है कहानियों के संसार की यात्रा पर निकलना। एक कहानी खत्म हुई नहीं कि दूसरी शुरू। अब वहाँ कदम संस्था वालों ने इतने पेड़ लगा दिए हैं कि प्रकृति जबलपुर की मिट्टी चूमने लगी है। आसमान बादलों को मुहब्बत का पैगाम लेकर धरती के पास भेजने लगा है। ऐसा ही परसों हुआ था जब दिल्ली से उड़ा विमान जबलपुर एयरपोर्ट पर उतरने से घबराता रहा कि वहाँ तो धरती से मिलने बादल नीचे उतर आये हैं। 

गोनू झा की बिल्ली

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

राजा ने सभी दरबारियों को एक-एक बिल्ली और एक-एक गाय दी। सबसे कहा कि महीने भर बाद जिसकी बिल्ली सबसे ज्यादा तगड़ी दिखेगी, उसे इनाम मिलेगा। 

मछली जाल में फँसी

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

कई कहानियाँ मुझ तक चल कर भी आती हैं। आज भी एक कहानी मेरे पास चल कर आयी है। मुझे कहानी इतनी पसंद आयी कि मैं पिता-पुत्र की जो कहानी लिखने बैठा था, उसे फिलहाल रोक कर शानदार शेरवानी और मछली के जाल वाली कहानी सुनाने को तड़प उठा हूँ।

सनकियों के फैसले

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक : 

मेरा मन है कि आज मैं मोहब्बत की कहानी लिखूँ। मैं लिखूँ कि नफरत की चाहे जितनी वजहें होती हों, पर मोहब्बत की कोई बहुत बड़ी वजह नहीं होती। मैं आपको उस लड़की की कहानी सुनाना चाहता हूँ, जो एक लड़के से मिली और प्यार कर बैठी। सच यही तो है। आप अपने मन में झाँकिए, सोचिए, याद कीजिए अपनी मोहब्बत की कहानी को। आप पाएँगे कि सचमुच आप भी किसी से मिले और उससे प्यार कर बैठे। बहुत सोचा, फिर लगा कि नहीं, आज मोहब्बत की कहानी नहीं लिखूंगा। आज मैं उस आदमी की कहानी लिखूँगा, जिसने एक बार बादशाह हुमायूँ की जान बचायी थी। 

अलग लोगों की होती हैं कहानियाँ

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक : 

“माँ, आज कौन सी कहानी सुनाओगी?”

‪‎यादें‬ – 11

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

एक राजा था। दुष्ट और महामूर्ख था। एकबार एक साधु ने उसे दिव्य वस्त्र दिया और कहा कि ये ऐसा वस्त्र है, जो सिर्फ उसी व्यक्ति को नजर आयेगा, जिसकी आत्मा में छल-कपट न हो, जो अच्छा व्यक्ति हो। ऐसा कह कर उसने राजा के सारे कपड़े उतरवा दिये और उसे दिव्य वस्त्र पहना दिया।

हर ‘आम’ में है कुछ खास

विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :

आम फलों का राजा है। आम सिर्फ स्वाद में ही बेहतर नहीं है बल्कि यह अनेक गुणों का खजाना है।

लक्ष्मी जी के आगे सब नतमस्तक

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक : 

माँ की सुनाई सभी कहानियाँ मैं एक-एक कर आपके साथ साझा कर रहा हूँ।

मुझे बहुत बार आश्चर्य भी होता है कि माँ को कैसे इतनी कहानियाँ याद रहती थीं।

अपने कर्म के सिद्धान्त को अमल में लायें

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

माँ, कल आपने कहा था कि मैं बहुत सी कहानियाँ सुनाऊँगी।”

“हाँ-हाँ, क्यों नहीं। अपने राजा बेटा को नहीं सुनाऊँगी तो किसे सुनाऊँगी।

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