Thursday, April 25, 2024
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वाह रे मुख्तार तेरी माया, भैया ने ठुकराया, बहन जी ने अपनाया!

अभिरंजन कुमार, वरिष्ठ पत्रकार :

यह मेरे मुस्लिम भाइयों-बहनों का सौभाग्य है या दुर्भाग्य, कि देश से लेकर प्रदेश तक के चुनावों में ध्रुवीकरण की राजनीति की मुख्य धुरी वही बने रहते हैं? उनका समर्थन और वोट हासिल करने के लिए राजनीतिक दलों को कौन-कौन से पापड़ नहीं बेलने पड़ते!

भाजपा में स्वामी प्रसाद, कितनी मजबूरी-कितनी रणनीति

संदीप त्रिपाठी :

बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती पर आरोपों की झड़ी लगा कर 22 जून को पार्टी छोड़ने वाले उनके विश्वस्त रहे स्वामी प्रसाद मौर्य आखिरकार भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गये। यानी डेढ़ महीने की मशक्कत के बाद स्वामी प्रसाद को भाजपा में जगह मिली।

मान-सम्मान की जंग से चुनावी जीत की ललक

राजेश रपरिया :

भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के चहेते उत्तर प्रदेश भाजपा के हाल तक रहे उपाध्यक्ष दयाशंकर सिंह की बसपा सुप्रीमो मायावती पर की गयी एक अभद्र टिप्पणी से विधानसभा चुनावों के तकरीबन 9 महीने पहले अनायास या सायास भूचाल आ गया है।

बसपाइयों के शर्मनाक कृत्य पर सियासी बेशर्मी

संदीप त्रिपाठी :

भाजपा से बर्खास्त दयाशंकर सिंह ने मायावती पर बहुत गलत टिप्पणी की थी। भाजपा ने तत्काल इसके लिए उन्हें दंडित किया। सभी ने दयाशंकर की निंदा की। उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज हो गयी और पुलिस उनकी तलाश कर रही है, वे फरार हैं। बलिया निवासी दयाशंकर लखनऊ विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति की उपज हैं। छात्र संघ के अलावा कहीं कोई चुनाव जीत नहीं सके। यानी आप मान सकते हैं कि अभी राजनीतिक वयस्कता की दृष्टि से दयाशंकर बालिग नहीं हैं। फिर भी उन्होंने मायावती पर जो अपमानजनक टिप्पणी की, उसका उन्हें दंड मिला।

भाजपा में कैसे जगह पाते हैं दयाशंकर जैसे लोग

संदीप त्रिपाठी :

उत्तर प्रदेश भाजपा के नवनियुक्त उपाध्यक्ष दयाशंकर सिंह बसपा सुप्रीमो मायावती पर अभद्र टिप्पणी करके न सिर्फ अपनी कुर्सी गवाँ बैठे बल्कि उन्हें पार्टी से भी छह साल के लिए निष्कासित कर दिया गया। लखनऊ के हजरतगंज थाने में उन पर एससी-एसटी एक्ट समेत कई धाराओं में प्राथमिकी भी दर्ज कर ली गयी है।

उत्तर प्रदेश में दाँव पर प्रशांत किशोर की साख

संदीप त्रिपाठी :

उत्तर प्रदेश का आगामी विधानसभा चुनाव किसके लिए वाटरलू साबित होगा?, यह सवाल बड़ा मौजू है। सामान्य तौर पर देखा जाये तो सबसे बड़ा दाँव मायावती की बहुजन समाज पार्टी और नरेंद्र मोदी-अमित शाह की भारतीय जनता पार्टी का है। समाजवादी पार्टी सरकार में होने के कारण बचाव की मुद्रा में है तो कांग्रेस अभी तक कहीं लड़ाई में नहीं आयी है। लेकिन इस विधानसभा में इन चारों दलों से बड़ा दाँव चुनाव रणनीतिकार और प्रबंधक के रूप में ख्यात प्रशांत किशोर का लगा है।

बसपा नेताओं के पार्टी छोड़ने के सिलसिले की सियासत

संदीप त्रिपाठी :

उत्तर प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव से 9 महीने पूर्व से ही इस बार सत्ता के लिए सबसे मजबूत दावेदार मानी जाने वाली मायावती की बहुजन समाज पार्टी में महत्वपूर्ण नेताओं के पार्टी छोड़ने का सिलसिला शुरू हो गया है। सबसे पहले विधानसभा में विपक्ष के नेता और बसपा के कद्दावर नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने पार्टी छोड़ी। फिर राष्ट्रीय महासचिव और पूर्व मंत्री आर.के. चौधरी ने पार्टी छोड़ी।

उन्हें भारत से नफरत क्यों है?

संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :

यह समझना मुश्किल है कि संस्कृत का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा से क्या लेना-देना है, किंतु संस्कृत का विरोध इसी नाम पर हो रहा है कि संघ परिवार उसे कुछ लोगों पर थोपना चाहता है।

सामाजिक न्याय की ताकतों की लीलाभूमि पर आखिरी जंग

संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय : 

मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में पुराने जनता दल के साथियों का साथ आना बताता है कि भारतीय राजनीति किस तरह ‘मोदी इफेक्ट’ से मुकाबिल है।

अबकी बार, क्या क्षेत्रीय दल होंगे साफ?

क़मर वहीद नक़वी, वरिष्ठ पत्रकार :

राजनीति से इतिहास बनता है! लेकिन जरूरी नहीं कि इतिहास से राजनीति बने! हालाँकि इतिहास अक्सर अपने आपको राजनीति में दोहराता है या दोहराये जाने की संभावनाएँ प्रस्तुत करता रहता है!

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