जोधपुर शहर की सुबह…पटवा हवेली की तलाश में

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विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार:  

देश के कुछ वे शहर जो सचमुच में हमारी सांस्कृतिक विरासत के प्रतिनिधि हो सकते हैं उनमें शामिल है जोधपुर। शहर का पुराना स्वरूप, खानपान, शानदार किले और उद्यान और यहाँ के मस्त और दोस्ताना लोग शहर को बाकी शहरों से अलहदा बनाते हैं।

जोधपुर शहर में उतरने के बाद सबसे पहली जरूरत ठिकाने की थी। तो हमने गोआईबीबो डाट काम से बुक किया था, पटवा हवेली। हालांकि कई होटल रेलवे स्टेशन के आसपास हो सकते थे। पर हमने ठिकाना ढूंढा था पुराने शहर में। जैसा की नाम से जाहिर है पटवा हवेली यानी यह कोई पुरानी हवेली होगी। स्टैंडर्ड कमरे 700 रुपये प्रतिदिन के हैं पर मुझे ऑनलाइन डील में यह महज 38 रुपये का पड़ा था। जोधपुर पहुंची बस से रेलवे स्टेशन के पास उतर गया था। 

सुबह के पाँच बजे के अंधेरा था। हमने लोगों से पूछा सराफा बाजार कहाँ है। और पैदल ही चल पड़ा। वह सुबह की सैर थी, जोधपुर की खाली सड़कों पर। रेलवे स्टेशन से आधे किलोमीटर पर साजोती गेट आया। सोजाती दरवाजा का निर्माण नगर की सुरक्षा के लिए 1724 से 1749 के बीच जोधपुर के राजा राजेश्वर महाराज ने कराया था। इस दरवाजे से सोजात शहर की ओर जाने का मार्ग निकलता था इसलिए इसे सोजाती गेट कहा जाता है। नगर में मेड़तिया दरवाजा और नागौरी दरवाजे का निर्माण भी इसी तरह नगर की सुरक्षा के लिए हुआ था। आप अगर स्टेशन के आसपास रहना चाहते हैं तो सोजाती गेट के पास किसी होटल में ठिकाना बना सकते हैं। यहाँ से हम शहर के संकरे रास्तों में आगे बढ़ते हैं। 

काफी हद तक बनारस की गलियों की तरह। सुबह होने के कारण बाजार बंद है। पर साइन बोर्ड देखकर लग रहा है कि दिन में यहाँ भीड़ का क्या आलम रहता होगा। चलते चलते पहुँचता हूँ त्रिपोलिया बाजार। लोगों के बताने के मुताबिक रास्ता बदल कर त्रिपोलिया चौराहा से बायीं तरफ मुड़ जाता हूँ। मकानों में पुराने विशालकाय नक्काशीदार लकड़ी के गेट लगे हैं। ये सब पुरानी हवेलियाँ हैं। कंदोई बाजार, तंबाकू बाजार, कतला बाजार, चूड़ी बाजार, मिर्ची बाजार से होता हुआ आगे बढ़ रहा हूँ। एक मंदिर आता है, कुंज बिहारी जी का मंदिर। लिखा है कि इस मंदिर का निर्माण 1790 में जोधपुर के धर्मनिष्ठ महाराजा विजय सिंह जी की उपपत्नी श्रीमती गुलाब राय ने कराया। यह मंदिर कतला बाजार में स्थित है।

शहर के प्रमुख पुराने मंदिरों में से एक है। मंदिर के बाद आता है गोलियों की पोल और सांडो पोल। पोल का मतलब राजस्थानी में दरवाजे से है। अब ये पुराने शहर का लैंडमार्क बन गए हैं। खैर मिर्ची बाजार के बाद सर्राफा बाजार में पहुँचता हूँ। यहाँ सराफों की पोल (गेट) के अंदर पटवा हवेली है। गेट के अंदर प्रवेश करने पर एक आंगन है जिसके चारों तरफ घर हैं। हर दरवाजे पर अच्छी तरह निगाह दौड़ाता हूँ, कहीं होटल का बोर्ड नहीं दिखाई देता है। मैं आसपास के लोगों से पूछता हूँ कोई सुराग नहीं लग पाता। फिर होटल के नंबर पर फोन करके अपनी लोकेशन (स्थिति) बताता हूँ।

वह आने की बात कहता है। थोड़ी देर में एक नेपाली भाई आते हैं मेरे पास और चलने को कहते हैं। मैं उनके पीछे पीछे चल पड़ता हूँ। इसी आंगन में दाहिनी तरफ के कोने पर डेढ फीट पतला रास्ता है। यह गली नहीं है क्योंकि ऊपर छत है, मानो हम किसी सुरंग में जा रहे हों।

मैं नेपाली भाई के पीछे पीछे चल रहा हूँ। कोई 20 फीट अंदर जाने पर वे दाहिनी तरफ के दरवाजे में अंदर ले जाते हैं। तो ये है पटवा हवेली। बाकी की कहानी आगे….

(देश मंथन,  05 मई 2017)

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