जेएनयू ने देश को क्या दिया?

0
279

दीपक शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार :

हारवर्ड और एमआईटी (MIT) बोस्टन विश्व विद्यालयों ने अमेरिका को अमेरिका बनाया। ऑक्सफोर्ड और केम्ब्रिज ने ब्रिटेन को नयी बुलंदिया दी। एएमयू (AMU)/ बीएचयू (BHU), मद्रास, बाम्बे और इलाहाबाद यूनिवर्सिटी पर भी हमें कभी नाज था।

 

लेकिन हिंदुस्तान के नंबर एक जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) ने हिंदुस्तान को क्या दिया? देश के सबसे बड़ी सबसे ज्यादा बजट वाली सबसे बड़े कैंपस वाली जेएनयू ने हमें क्या दिया?

कुछ चुने हुए बड़े सेकुलर पत्रकार? कुछ बड़े एनजीओ के भ्रष्ट मठाधीश? कुछ जनांदोलन के फ्लाप नेता? या माओवादी और नक्सल सोच के स्वयम्भू देश भक्त?

हिंदुस्तानियों के पसीने की कमाई और उस पर दिये गये टैक्स के पैसों से ये यूनिवेर्सिटी चल रही है और पिछले 42 सालों में कई हज़ार करोड़ रुपये यहाँ खर्च हो चुके हैं। इस जेएनयू ने हमें क्या दिया?

वामपंथी विचारधारा के तेजस्वी नेताओं और पत्रकारों के अलावा क्या दिया?

क्या आप जानते है की जेएनयू का एक लिखित संविधान है और इसे बड़ी मेहनत से प्रकाश करात ने संवारा था। प्रकाश करात …सीताराम येचुरी कि तरह ही जेएनयू से निकले तेजस्वी नेता हैं। क्या आपको मालूम है नेपाल के माओवादी नेता बाबुराम भट्टाराई भी जेएनयू की देन हैं। जेएनयू से शिक्षा लेने के बाद बाबुराम ने 1990 के दशक में पीपल वार आंदोलन शुरू किया। बाबुराम ने नेपाल की हज़ारों साल पुरानी संस्कृति को भ्रष्ट करके माओवाद की काठमांडू में नीव रखी और हिमालय के इस पवित्र राष्ट्र को तबाह कर दिया? चौंकिये मत… भारत के नक्सल इलाकों में सक्रिये कई भूमिगत नेता भी जेएनयू के तेजस्वी छात्र है।

मित्रों जेएनयू पर बहुत कुछ लिखना है पर सबसे सवाल यही है की हमारे आपके टैक्स से चलने वाले इस विश्विद्यालय ने देश को क्या दिया? संस्कृति और शिक्षा के इस सबसे बड़े मंदिर से कौन सी गंगोत्री बहाई जा रही है? सिर्फ 350 रिसर्च प्रोजेक्ट चल रहे हैं जबकि ये संख्या हज़ारों में होनी चहिये? स्वछंद विचारों के नाम पर यहाँ का कैंपस अयाशी और ड्रग्स का चरागाह बन गया है। यहाँ सेकुलरिज्म के नाम पर कामरेड तैयार कराये जाते हैं? आखिर हारवर्ड, येल, ऑक्सफोर्ड या केम्ब्रिज की तरह इस विश्वविद्यालय ने भारत को क्या दिया? या सच यही है कि ये विशविद्यालय देश में सिमटती वामपंथी राजनीति का अखाडा बन गया जहाँ से एक ऐसी सोच निकल रही है, जो मुट्ठी भर लोगों के राजनीतिक स्वार्थ को पूरी करती है… समूचे देश की सेवा नहीं?

(देश मंथन, 07 मई 2014)

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें