छहधड़ा पार्टी में अपनी-अपनी मलाई

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संदीप त्रिपाठी : 

जनता दल से निकले छह समाजवादी धड़े मोटा-मोटी 25 साल बाद फिर एकजुट हो गये। मुलायम सिंह यादव इस एकजुट धड़ा पार्टी के अध्यक्ष बनाये गये हैं। यह खबर पिछले पाँच महीने से घोषित हो रही है।

ताजा तरीन घोषणा 15 अप्रैल को हुई। दिसंबर में भी लफड़ा नये दल के नाम, चुनाव चिह्न और झंडे को लेकर था। यह लफड़ा अभी भी सुलझा नहीं है। अब इस लफड़े को सुलझाने के लिए एक छह सदस्यीय समिति बनायी गयी है। यह समिति मुलायम सिंह की सलाह पर रास्ता निकालेगी। बीते पाँच महीनों में भी लगातार यही कहा गया कि मुलायम सिंह जी को तय करना है। पाँच महीने में मुलायम जी तय नहीं कर पाये कि नये दल का नाम, झंडा, चुनाव चिह्न क्या हो। जानकार बताते हैं कि सपा साइकिल निशान को छोड़ना नहीं चाहती। पेंच यहीं फँसा है।

दरअसल इस पेंच के पीछे वजह है। बिहार में अक्टूबर के आसपास विधानसभा चुनाव होने हैं। उत्तर प्रदेश में चुनाव 2017 में है। इन छह धड़ों की एका से अगर कहीं फायदा होना है तो वह बिहार ही है। नीतीश कुमार की लड़ाई सत्ता बचाने की है। अकेले दम उन्हें स्थितियाँ अपने पक्ष में नहीं दिख रही थीं। इसीलिए नीतीश कुमार विलय की हड़बड़ी में थे, लेकिन उनकी हड़बड़ी लालू यादव के लिए रोड़ा थी। कानूनी कारणों से लालू चुनाव लड़ नहीं सकते। विलय से अगर बिहार में फायदा होता है तो मलाई नीतीश को मिलेगी। यह बात दीगर है कि यह मलाई कैसी होगी। दरअसल इस विलय के चलते बिहार में होने वाला फायदा अभी संदिग्ध है। यह फायदा विलय की बजाय भाजपा की रणनीति में गड़बड़ी और जीतन राम मांझी की ताकत पर निर्भर करती है। तो लालू के लिए यह पाँच महीने मोलभाव के थे।

शरद की लड़ाई अलग ढंग की है। वे जनता दल (यू) के अध्यक्ष हैं, लेकिन उनकी राजनीति नीतीश के रहमो-करम पर टिकी है। शरद को एक ऐसा मंच चाहिए था जहाँ से वह खुलकर अपने ढँग की राष्ट्रीय राजनीति कर सकें और नीतीश से पीछा छुड़ा सकें। विलय की स्थिति में नीतीश ढेर सारे नेताओं के बीच एक नेता होंगे। जदयू में नेता केवल नीतीश हैं। ऐसे में शरद के लिए विलय ज्यादा मुफीद स्थिति थी।

मुलायम सिंह यादव के लिए विलय का फायदा महज इतना है कि संसद में उऩके पीछे अब उनकी ताकत से ज्यादा सांसद खड़े होंगे और इस अतिरिक्त ताकत के लिए मुलायम को कोई खास प्रयास नहीं करना है, लेकिन इसके लिए मुलायम को एक कीमत चुकानी है, वह यह कि उन्हें अपनी पार्टी के नाम, झंडा और चुनाव चिह्न का त्याग करना पड़ेगा। पूरा पेंच यहीं है। साइकिल चुनाव चिह्न उत्तर प्रदेश में सपा का पर्यायवाची है। मुलायम सिंह अगले विधानसभा चुनाव की दृष्टि से इस चुनाव चिह्न को छोड़ना नहीं चाहते। विलय की स्थिति में यह कीमत अदा करनी पड़ सकती है। जो अन्य धड़े इस विलय में शामिल हैं, उनका उत्तर प्रदेश में कोई प्रभाव नहीं है। यानी मुलायम सिंह को इस विलय के चलते उत्तर प्रदेश में कुछ हासिल होने वाला नहीं है। उत्तर प्रदेश की पूरी लड़ाई मुलायम को अकेले बूते लड़नी है। अगर मुलायम यह लड़ाई हारते हैं तो राष्ट्रीय स्तर पर इस विलय से उन्हें जो मिलता दिख रहा है, वह भी हाथ से निकलने में देर नहीं लगेगी।

रही बात अन्य तीन दलों एचडी देवेगौड़ा की जनता दल (सेक्युलर), ओम प्रकाश चौटाला की इंडियन नेशनल लोकदल और चंद्रशेखऱ के स्वयंभू उत्तराधिकारी कमल मोरारका की समाजवादी जनता पार्टी की, तो देवेगौड़ा कर्नाटक में ही अस्तित्व बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। इस विलय से उन्हें थोड़ा सहारा खुद के लिए मिल सकता है, पार्टी के लिए नहीं। कर्नाटक में खात्मे की स्थित में भी वे राष्ट्रीय राजनीति में दिखते रहेंगे। इनेलो को भी इस विलय से हरियाणा में कोई राजनीतिक फायदा मिलता नहीं दिख रहा है। चौटाला परिवार को इतना लाभ अवश्य होगा कि भ्रष्टाचार के मामले में चार लोग उनके पक्ष में बोलने वाले मिल जायेंगे। इस विलय से सर्वाधिक फायदा कमल मोरारका को होने जा रहा है। उनकी पार्टी का देश के किस राज्य तो छोड़िये, किस जिले में प्रभाव है, यह पता करने के लिए अगर अनुसंधान किया जाये तो भी कोई नतीजा नहीं निकलने वाला, लेकिन इस विलय के जरिये मोरारका को सियासी जमीन मिल जायेगी।

यानी इस विलय से फायदा नीतीश कुमार, शरद यादव और कमल मोरारका को होना है। फिलहाल उत्तर प्रदेश में सपा और बिहार में राजद मत प्रतिशत के आधार पर भाजपा के खिलाफ सबसे बड़ी पार्टी हैं। मुलायम सिंह यादव और लालू प्रसाद यादव को इस यज्ञ में अपने जनाधार की आहुति देनी है। इस अनुपात में सपा और राजद को फायदा मिलता नहीं दिख रहा। इसीलिए मुलायम और लालू लंबे समय तक अनिर्णय की स्थिति में रहे। ऐसी मनोदशा में इस विलय के उपरांत यह एकीकृत दल क्या तूफान पैदा करता है, यह देखने वाली बात होगी। फिलहाल इतना तो हो गया है कि लोकसभा में 15 और राज्यसभा में 30 सांसदों के साथ यह संसद में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी हो जायेगी और अब कांग्रेस से अच्छा मोलभाव करने की स्थिति में होगी।

(देश मंथन, 16 अप्रैल 2015)

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