अब राहुल बचाओ!

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डॉ वेद प्रताप वैदिक, राजनीतिक विश्लेषक :

कांग्रेस खुद को तो बचा न सकी। अब वह राहुल को बचाने में लगी हुई है। सोनिया गांधी के दरबारी सलाहकार, जिन्हें हम ‘बड़े नेता’ कहें तो उन्हें अच्छा लगता है, वे इकट्ठे होकर सोच रहे हैं कि अब क्या करें?

सत्ता के सूत्रों का संचालन ये दरबारी ही करते हैं। कांगेस के अनेक बुजुर्ग और तपस्वी नेता भी इन दरबारी सामंतों के इशारों का इंतजार करते रहते हैं। इन दरबारियों को अफसोस यह है कि इन्होंने लाख पट्टी पढ़ाई लेकिन राहुल बाबा कुछ नहीं सीखे। उल्टे उनकी कलाबाजियों और नकली तेवरों ने कांग्रेस का कबाड़ा कर दिया।

ये दरबारी अभी अपने मालिकों को दिलासा दिला रहे हैं कि इन एक्जिट-पोल में क्या रखा है? ये पोल बिल्कुल पोले हैं। ये 2004 और 2009 में गलत साबित हो गये थे और अब भी होंगे। चुनाव-परिणाम तो जरा आने दीजिए। हुजूर, सरकार आप ही बनायेंगे, चाहे वह गठबंधन की ही क्यों न हो? अभी से रोना-पीटना क्यों? अभी तो तीन दिन बाकी हैं। दरबारी लोग सही हैं। एक्जिट पोल नरेंद्र मोदी और कांग्रेस की जितनी सीटें दिखा रहे हैं, वह भी डर-डरकर और संभल-संभलकर दिखा रहे हैं। जब चुनावों के नतीजे सामने आयेंगे तो जीतने वाले और हारने वाले दल का फासला जबर्दस्त होगा लेकिन तब भी राहुल बाबा से इस्तीफा मांगने की हिम्मत किसी की नहीं होगी।

कांग्रेस को लुटा-पिटाकर बाबाजी बना दिया राहुल बाबा ने लेकिन हार का ठीकरा मनमोहन सिंह के माथे फोड़ा जायेगा। मनमोहन सिंह तो सोनिया और राहुल के भी गुरु निकले। उन्होंने पहले ही चुनाव से हाथ धो लिए। उन्होंने पहले ही अपना लोटा-डंडा समेट लिया और कह दिया कि ये तुम्हारी ही फसल है, तुम्ही काटो। अब राहुल बाबा में इतना आत्म-सम्मान भी नहीं कि वे इस्तीफा दे दें। उन्हें पता है कि अगर वे कांग्रेस का पिंड छोड़ दें तो इस पार्टी का तो कल्याण हो जायेगा लेकिन इस भोले-भंडारी बाबा का क्या होगा? ये बेचारा क्या करेगा?

इसे राजनीति की भट्ठी में झोंकने वालों को अब भी अक्ल आयेगी या नहीं? उन्होंने राहुल को झोंककर अपनी भट्ठी गर्म करने की जो तदबीर निकाली थी, वह बिल्कुल नाकाम हो गई है। अगर अब भी खुर्राट कांग्रेसी लोग राहुल को अपने हल में जोते रहेंगे तो कांग्रेस की जमीन जोतने लायक भी नहीं रह जायेगी। जिसने पिछले दस साल में कुछ नहीं सीखा, उसे अगले दस साल भी पट्टी पढ़ाते रहेंगे तो वह क्या कर लेगा? अब तो कांग्रेसियों को तेज-तर्रार विरोधियों की भूमिका निभाने के लिए तैयार हो जाना चाहिए। पिछले 40-45 साल से ओढ़ा-हुआ घरेलू नौकर-चाकर का बाना उन्हें उतार फेंकना चाहिए। देश में सशक्त प्रधानमंत्री तभी पटरी पर चलता है जबकि विपक्ष भी जानदार हो। यदि अब भी कांग्रेस फिरोजगांधी परिवार के मोह-जाल में फंसी रही तो इस देश में तानाशाही लाने की जिम्मेदारी उसी की होगी।

(देश मंथन, 14 मई 2014)

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