केजरीवाल (Kejriwal) ने क्यों किया सरकार का बलिदान

0
164

राजीव रंजन झा (Rajeev Ranjan Jha)

हाँ, मुझे यकीन नहीं था कि दिल्ली की जनता अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) को झोली भर कर इतनी सीटें दे देगी। लेकिन मैंने यह भी नहीं सोचा था कि केजरीवाल बिल्ली के भाग से छींका टूटे वाली शैली में अपनी झोली में आ गिरे इस अवसर को यूँ गँवा देंगे।

ये 49 दिन बहुत थे बिजली कंपनियों की ऑडिटिंग करा देने के लिए। ये 49 दिन बहुत थे कम-से-कम 49 मीटरों की जाँच करा देने के लिए। ये 49 दिन बहुत थे कम-से-कम 49 भ्रष्ट अधिकारियों को जेल भिजवा देने के लिए। ये 49 दिन बहुत थे कम-से-कम 49 विद्यालयों का निर्माण शुरू करा देने के लिए। ये 49 दिन बहुत थे उस ऑटो माफिया को ध्वस्त कर देने के लिए, जिसने उनके बड़े कट्टर समर्थक वर्ग – ऑटो वालों को ऑक्टोपस की तरह जकड़ रखा है। ये 49 दिन बहुत थे दिल्ली में छोटी दूरी की परिवहन व्यवस्था में सुधार की कोई बुनियादी पहल करने के लिए। ये 49 दिन बहुत थे हुजूर कुछ कर दिखाने के लिए…

लोग कह रहे हैं कि इन्हें थोड़ा समय तो दिया जाये। पर केजरीवाल ने इस्तीफा खुद ही दिया, किसी ने इनकी सरकार गिरायी नहीं। काम करते पूरा समय लेकर। लेकिन इन्हें खुद हड़बड़ी थी। इसीलिए मैंने गिनाया कि हड़बड़ी थी भी तो केवल इन 49 दिनों में वे क्या-क्या कर सकते थे।

कॉमनवेल्थ घोटाले में शीला दीक्षित का नाम एफआईआर में नहीं डाल सके, लेकिन गैस की कीमत के जिस मसले में दिल्ली राज्य सरकार का कोई लेना-देना नहीं था उसमें केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री मोइली और मुकेश अंबानी पर नामजद एफआईआर करा कर एक शोशा छोड़ दिया। मोइली ने बस खिल्ली उड़ायी और कांग्रेस ने कोई नोटिस नहीं लिया तो जनलोकपाल विधेयक को जानबूझ कर असंवैधानिक तरीके से पेश किया, ताकि इस्तीफा देने का बहाना मिल सके। इस्तीफा नहीं दें तो अगले दो-चार महीनों में और भी फजीहत होनी तय है। और वैसे भी लोकसभा चुनाव के बाद तो कांग्रेस का समर्थन रहने वाला नहीं, क्योंकि तब वे कांग्रेस के लिए किसी काम के नहीं रहेंगे।

केजरीवाल बार-बार कह रहे हैं कि मुकेश अंबानी के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने के चलते उनकी सरकार गिर गयी। लेकिन क्या केजरीवाल सरकार के विरुद्ध कोई अविश्वास प्रस्ताव पारित हुआ? नहीं ना। क्या केजरीवाल सरकार की ओर से पेश बजट गिर गया? नहीं ना। लोकतंत्र में सरकार सदन में इन्हीं तरीकों से गिरती है। अगर इन दो तरीकों से सरकार नहीं गिरी, तो उसे गिराया नहीं गया। वह खुद गिर गयी। हिट विकेट। काश, इस्तीफा देने से पहले एक एफआईआर दामाद जी पर तो कराते जाते!

केजरीवाल चाहते तो दिल्ली के लोकायुक्त के प्रावधानों को मजबूत करने का विधेयक ला सकते थे। लोकपाल केंद्र के स्तर पर और लोकायुक्त राज्य के स्तर पर, यह व्यवस्था बन चुकी है। लेकिन केजरीवाल को एक नयी संस्था नहीं बनानी थी, अपनी राजनीति के लिए आगे का रास्ता बनाना था। उन्होंने वही किया। 

अफसोस कि यह बात उस व्यक्ति को कहनी पड़ रही है, जिसे एक बड़ी पत्रिका के हिंदी संपादक ने कभी फेसबुक पर लोकपाल के बारे में हुई चर्चा में अन्ना-केजरीवाल का वकील बताया था। तब मैंने बड़ी विनम्रता से कहा था कि मैं किसी व्यक्ति या संगठन का वकील नहीं, एक विचार का समर्थन कर रहा हूँ।

शतरंज में प्यादा कटाने से लेकर क्वींस गैंबिट तक जैसी चालें हैं, जिनमें अंतिम लक्ष्य के लिए कभी छोटा तो कभी बड़ा बलिदान दिया जाता है। योगेंद्र यादव ने एक चैनल से बातचीत में कुछ दिनों पहले ही कहा था कि हाँ, हम तो चाहते कि लोकसभा चुनाव 2016 में हों जिससे हमें तैयारी के लिए कुछ समय मिले। लेकिन अब योगेंद्र जी और अरविंद जी क्या करें! चुनाव तो अभी ही होने हैं, इसलिए अभी ही बलिदान देना पड़ा। (देश मंथन, 24 फरवरी 2014)

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें