एक हारी हुई लड़ाई के लिए कोई तो दोषी ठहराया ही जायेगा। तो वह दोषी खोज निकाला गया है। वह दोषी है हिंदू मध्यम वर्ग, जो सेक्युलिबरलों के अनुसार नफरती बन गया है।
वित्त मंत्री अरुण जेटली के एक बयान से यह विवाद खड़ा हो गया है कि क्या चीन को सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता दिलवाने में भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने मदद की थी?
कल शाम रीवा के भँवर सिंह से बात होने लगी। उन्होंने जो सबसे महत्वपूर्ण और दिलचस्प बात बतायी, वह इस टिप्पणी के अंत में है। वे यहाँ दिल्ली में चौकीदार का काम करते हैं। मैंने पूछा, वोट देने गये थे?
कांग्रेस अध्यक्षों की सूची 1947 से नहीं, 1978 से देखें...
राजीव रंजन झा :
शशि थरूर कांग्रेस के नये मणिशंकर अय्यर बन गये हैं। वे अपनी समझ से तो भाजपा पर बहुत धारदार हमला करते हैं, पर भाजपा उनका फेंका हुआ हथगोला लपक कर वापस कांग्रेसी खेमे पर ही उछाल दे रही हैं।
केंद्र की एनडीए सरकार के खिलाफ देशभर में विपक्षी दलों का महागठबंधन बनाने की कल्पना को खुद कांग्रेस खारिज करती दिख रही है। एक तरफ दिल्ली में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने कहा कि राष्ट्रीय स्तर पर ‘महागठबंधन’ का प्रयास आसान नहीं होगा।
तीन जनवरी की सुबह। नार्थ त्रिपुरा जिले का कैलाशहर नगर। महिलाएँ सड़क पर रैली निकाल रही हैं। जीतेगा भाई जीतेगा, बीजेपी जीतेगा। अभी त्रिपुरा में चुनाव का ऐलान नहीं हुआ है, पर सड़कों पर प्रचार चरम पर आ चुका है। अगले दिन कैलाशहर बाजार में बीजेपी के साइकिल यात्री नजर आते हैं। वे जन जागरण अभियान पर निकल रहे हैं। मैं उन्हें रोक कर पूछता हूँ - मुद्दा क्या है? वे कहते हैं - नौकरी नहीं है, अस्पतालों में दवाएँ नहीं हैं, डॉक्टर नहीं हैं।
जब कोई याद दिलाना चाहे कि 15 लाख के "वादे" पर मोदी प्रधानमंत्री बने थे, तो उनसे पूछिये कि जिस दिन यह "वादा" किया गया होगा, उस दिन अखबारों ने इसे पहले पन्ने पर पहली खबर बना कर इस "वादे" को अपनी सुर्खियों में जगह दी होगी ना? चैनलों ने दिन में पचास बार इसकी हेडलाइन चलायी होगी ना? और हाँ, फिर आपने भी इस "वादे" के समर्थन-विरोध में फेसबुक-ट्विटर जैसे लोक-माध्यमों पर कुछ कहा होगा ना? तभी तो देश ने इस "वादे" पर मोदी को प्रधानमंत्री चुन लिया?
पश्चिम बंगाल के हालिया स्थानीय निकाय चुनावों में तृणमूल कांग्रेस ने विरोधियों को धूल-धुसरित करते हुए अपना परचम लहराया है। लेकिन इससे ज्यादा महत्वपूर्ण यह पहलू है कि भारतीय जनता पार्टी इन चुनावों में दूसरे स्थान पर रही है।
कुमार विश्वास सैनिकों की बात करते हैं और सैनिक कभी मैदान छोड़कर नहीं भागते। इसिलए अगर उनमें दम है, तो केजरीवाल से इस लड़ाई को वे जीतकर दिखाएं। और अगर दम नहीं है, तो उनका हश्र भी वही होने वाला है, जो इस पार्टी में दूसरे तमाम को-फाउंडर्स का हुआ है।
मीडिया हर रोज पीएम मोदी का जादू टेस्ट करता है। एमसीडी चुनाव में बीजेपी की जीत को भी वह पीएम मोदी का ही जादू बता रहा है। लेकिन वह यह बताने में संकोच कर रहा है कि यह बीजेपी की जितनी बड़ी जीत नहीं है, उससे कहीं अधिक बड़ी केजरीवाल की हार है। शायद विज्ञापन बहादुर केजरीवाल के विज्ञापनों का मोह उसे यह सच बताने से रोक रहा है।
मीडिया हर रोज पीएम मोदी का जादू टेस्ट करता है। एमसीडी चुनाव में बीजेपी की जीत को भी वह पीएम मोदी का ही जादू बता रहा है। लेकिन वह यह बताने में संकोच कर रहा है कि यह बीजेपी की जितनी बड़ी जीत नहीं है, उससे कहीं अधिक बड़ी केजरीवाल की हार है। शायद विज्ञापन बहादुर केजरीवाल के विज्ञापनों का मोह उसे यह सच बताने से रोक रहा है।
भैया, यह वासेपुर है। कबूतर भी एक पंख से उड़ता है तो दूसरे पंख से इज्जत ढकता है। यहाँ अब इज्जत ढकने का सवाल नहीं है। जिंदा लोगों के लाशों में तब्दील होने की जंग है। इस बार जंग में शामिल है जेल में सजा काट रहे फहीम खान की सल्तनत के लिए चुनौती बन कर उभरा छोटे सरकार उर्फ प्रिंस खान। इस जंग में ड्रामा है, थ्रिल है, सस्पेंस है...
विवेक अग्निहोत्री की सफलता यही है कि उन्होंने विमर्श की दिशा मोड़ दी। उन्होंने बस दर्द को जस-का-तस परोस दिया, जो इतने वर्षों से झेलम नदी में कश्मीरियत की हरी काई के नीचे दबा था और अब वह दर्द बह कर नीचे उस मैदान में आ गया है, जहाँ तक आने से लिबरल जमात उसे रोक रही थी!
क्या किसान की आमदनी 100 से बढ़ा कर 200 रुपये करने के लिए उपभोक्ता का खर्च 400 से बढ़ा कर 800 रुपये किया जाना ऐसा विकल्प है, जिसे लोग पसंद करेंगे? क्या आप तैयार हैं कि जो आटा 40 रुपये किलो खरीदते हैं, उसे 80 रुपये में खरीदने लगें और जो दाल 100 रुपये किलो खरीद रहे हैं, उसे 200 रुपये में खरीदने लगें? क्या किसानों की आमदनी दोगुनी करने का मतलब यह है कि खाद्य महँगाई भी दोगुनी हो जायेगी?