ऑड-ईवन की माया

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संजय कुमार सिंह, संस्थापक, अनुवाद कम्युनिकेशन :

कल मुझे वैशाली से आनंद विहार स्टेशन जाना था। कहने को आनंद विहार वैशाली से करीब है पर जाना कितना मुश्किल यह कल ही समझ में आया। मेरे टैक्सी वाले ने मना कर दिया। उसके पास ईवन (प्राइवेट) नंबर की गाड़ी (जो मैं लेता हूँ) थी ही नहीं, दूसरा विकल्प ओला टैक्सी होता है। मैं नहीं लेता। सो मैंने बेटे से कहा कि बुक करो तो उसने बताया कि ओला ने घोषित कर रखा है कि माँग औऱ पूर्ति में अंतर के कारण वह ज्यादा किराया वसूलेगा।

अंत में मैने तय किया कि मैं अकेले मेट्रो से चला जाऊँ। पर बात नहीं बनी। आखिरकार हमलोगों ने तय किया कि नये चले एनसीआर ऑटो को आजमाया जाये। जाते समय काफी देर तक कोई नहीं मिला। वैशाली में कोई ऑटो स्टैंड नहीं है, मेट्रो स्टेशन की बात अलग है। 

तब एक सामान्य गाजियाबादी ऑटो से 50 रुपये में हम आनंद विहार पहुँचे। है तो दो किलोमीटर ही लेकिन 50 रुपये से कम में कभी कोई ऑटो वाला आने-जाने को तैयार नहीं होता। मीटर तो गाजियाबाद में गधे की सींग है। वहाँ से दिल्ली वाला ऑटो लेने के लिए प्री पेड काउंटर ढूँढ़ रहा था तो मिला ही नहीं और ऑटो वाले 50 रुपये दे देना साब। बगल में है, पैदल जाया जा सकता था पर सीढ़ी चढ़ कर कौन सड़क पार करे के आलस में रह गया। आखिरकार एक ऑटो वाला तीस रुपये में जाने को राजी हुआ लेकिन पहुँच कर बताया कि उसके पास लौटाने को 20 रुपये नहीं थे। मेरे पास 50 से छोटा नोट नहीं था। आखिरकार उसने 10 रुपये ही दिए। इस तरह हम लोग पैदल चल कर, गर्मी झेल कर 90 रुपये में वैशाली से आनंद विहार पहुँचे। लौटते समय एनसीआर ऑटो वाले का यही कहना था कि 150 रुपये दे देना फिर 120 रुपये दे देना और आखिरकार 100 रुपये में आया। अब आम आदमी के लिए इतनी मुसीबत प्रदूषण कम करने के लिए ज्यादा तो है नहीं। 

ये अलग बात है कि प्रदूषण का नुकसान तो जब होगा तब होगा पर गर्मी और लू का नुकसान तुरंत होता है। फिर भी मैं ऑड ईवन का समर्थक हूँ। दरअसल मुझे आना-जाना कम होता है और रोज दफ्तर जाने का झंझट मैंने बहुत पहले खत्म कर दिया था। पर जिन लोगों को ऑफिस भी जाना है, बच्चों को स्कूल भी भेजना है, माता-पिता साथ रहते हों तो उन्हें अस्पताल भी ले जाना हो, रिश्तेदारी भी निभानी हो वैसा आदमी इस ऑड ईवन से कैसे निपटेगा, ड्राइवर हो तब भी और ना हो तो कोई बात ही नहीं है। कल ऑड-ईवन स्कीम की असली परीक्षा है और टैक्सी वालों की हड़ताल भी। मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल कह चुके हैं कि हड़ताल उनके विरोधियों की साजिश है। मुझे लगता है कि अगर विरोधी साजिश कर रहे हैं, सहयोगी परेशान हैं, जनता जूते फेंक ही रही है तो क्या जरूरत है ऑड-ईवन की। गो माता की जय या भारत माता की जय या दिल्ली द्रोही जैसा कुछ आप भी ढूंढ़िए ना! 

तब तक दिल्ली में महिलाओं को ड्राइविंग लाइसेंस दिए जाएँ और उन्हें नौकरी करने के लिए प्रेरित किया जाये ताकि बच्चों को स्कूल छोड़ने और माता-पिता को अस्पताल ले जाने, रिश्तेदारी निभाने जैसे काम चलते रहे। फिलहाल दिल्ली वालों तो चाहिए कि अपने पुरुष ड्राइवर की जगह महिला ड्राइवर रख लें। स्टैंड अप इंडिया भी हो जाएगा। 

(देश मंथन, 18 अप्रैल 2016)

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