सिमरन को जीने का हक है पर जान लेकर नहीं

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संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

सिमरन अपने प्रेमी के साथ जाने के लिए तड़प रही थी। पर वो अपने पिता को धोखा देकर ऐसा नहीं कर पा रही थी। वो प्रेमी के साथ जीना तो चाहती थी, पर छल से नहीं, इज्जत से। उसने अपने बाऊजी से कातर हो कर कहा था कि वो अपने राज के बिना नहीं जी सकती। बाउजी के लिए बहुत आसान नहीं था खुद को मनाना, पर बेटी की आँखों में प्यार देख कर उन्होंने आखिर में कह ही दिया था, जा बेटी, जी ले अपनी जिन्दगी। 

बेटी अपने प्रेमी के संग ट्रेन में सवार हो कर चली गयी थी।

इसके बाद तो न जाने कितनी सिमरनों को हौसला मिला अपनी जिन्दगी जीने का। पर आज मैं आपको तीन ऐसी सिमरनों की कहानी सुनाऊंगा, जिसे सुन कर आपकी रूह काँप जाएगी। 

पर सिमरन से पहले दो मटकों की कहानी।

मैंने ये कहानी आपको पहले भी सुनायी है, पर आज मुझे अपनी बात आगे बढ़ाने के लिए इस कहानी से बढ़िया माध्यम कुछ और नहीं लग रहा। 

एक बार किसी गाँव में बाढ़ आ गयी। लोगों के घर पानी में डूब गये। सारा सामान बहने लगा। 

एक रसोई में दो घड़े पड़े थे। एक पीतल का, दूसरा मिट्टी का। ऐसा लग रहा था कि जल्दी ही पानी उन घड़ों तक भी पहुंच जाएगा और दोनों घड़े भी बह जाएंगे। मिट्टी का घड़ा बहुत चिंता में था। अगर वो पानी में बह गया तो उसका क्या होगा? वो तो फूट ही जाएगा। 

पीतल का घड़ा मिट्टी के घड़े कि चिंता को समझ रहा था। उसने मिट्टी के घड़े से कहा कि तुम परेशान मत हो दोस्त, अगर कुछ हुआ तो मैं तुम्हें बचा लूँगा। 

पीतल के घड़े की बात सुन कर मिट्टी वाले घड़े ने धीरे से कहा कि मेरी समस्या तो यही है। मुमकिन है कि बाढ़ के पानी में बह कर भी मैं बच जाऊं, पर अगर मैं तुम्हारे साथ रहा, और तुम मुझसे टकराए तो मेरा फूटना तय ही है। इसलिए मित्र, मैं चाहता हूँ कि हम अपनी-अपनी राह अलग कर लें। हम इतने दिनों तक यहाँ साथ रहे, इसके लिए धन्यवाद। पर अब लगता है कि अलग हो जाना ही हमारी नियती है, इसी में मेरी सुरक्षा है। 

माँ ने ये कहानी किसी और संदर्भ सुनायी थी। पर ये कहानी थी रिश्तों की ही। 

कल पटना के अखबारों में एक खबर पढ़ कर मैं विचलित हो गया। 

खबर की शुरुआत ऐसे होती है कि पटना में कदम कुआँ के पास नया टोला में एक महिला ने पुलिस के पास अपने पति की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखाई। रिपोर्ट में लिखा गया कि उसका पति अमरजीत कई महीनों से लापता है। पुलिस उसकी तलाश करती रही। पति का पता नहीं चला।

महिला रोज थाने का चक्कर लगाती रही, पुलिस की मिन्नतें करती रही। पर उसका पति नहीं मिला। 

आगे सुनेंगे? 

आगे की कहानी बहुत छोटी करके बताता हूँ कि पुलिस ने बहुत तफ्तीश की तो जो सच सामने आया वो रोंगटे खड़े कर देने वाला था। 

पुलिस ने बहुत छान-बीन की तो पता चला कि महिला किसी और व्यक्ति से प्रेम करती थी और उसने अपने प्रेमी के साथ मिल कर पति की हत्या कर दी थी और वो यह साबित करना चाह रही ती कि उसका पति उसे छोड़ कर चला गया है। 

बहरहाल, हत्या के सारे सबूत मिल गये हैं और पत्नी और उसका प्रेमी पुलिस की गिरफ्त में हैं। 

इसी खबर के साथ एक और खबर थी।

पटना के पास ही फुलवारी शरीफ इलाके में एक नौकरीपेशा महिला का अपने बॉस के साथ रिश्ता जुड़ गया। पति रोकने और टोकने लगा तो अपने बॉस के साथ मिल कर उसने अपने पति को मारने के लिए एक शूटर हायर कर लिया। दो लाख रुपये में ये काम हो गया। 

ऐसी ही एक घटना पटना से सटे हाजीपुर की है। हाजीपुर के जौहरी बाजार में पिछले दिनों अशोक सिंह नामक एक व्यक्ति की गोली मार कर हत्या कर दी गई। खूब हंगामा मचा। लोगों ने कानून-व्यवस्था पर सवाल उठाए। पर छानबीन में पता चला कि उसकी पत्नी ने ही अपने प्रेमी के साथ मिल कर पचास हजार रुपये की सुपारी देकर पति की हत्या करा दी। 

खबरें तो कई हैं, पर एक खबर बिहार में ही सीतामढ़ी से। वहाँ एक लड़की की शादी जिस युवक से हुई, वो उससे प्रेम नहीं करती थी। उसे गाँव के दूसरे युवक से प्रेम था। शादी के बाद जब उसकी समझ में कुछ नहीं आया तो उसने अपने पति की हत्या कर दी, ताकि प्रेमी के साथ रह सके। 

***

इन चार कहानियों को पढ़ कर मुझे और कुछ नहीं सूझा। बस यही सूझ रहा है कि अगर समचमुच मिट्टी के घड़े और पीतल के घड़ों का साथ नहीं हो सकता, तो अगल हो जाना सबसे सुंदर विकल्प है। 

घड़ा फूटने से पहले ही रिश्तों के तार को पहचान लीजिए। समझ लीजिए कि वो कौन सी बाढ़ होगी, जब आप ये कह कर खुद एक दूसरे से अलग होना चाहेंगे कि बस अब और नहीं। मैं हमेशा रिश्तों को जोड़ने की बातें करता हूँ। पर ये मैं ही कह रहा हूँ कि रिश्तों की मर्यादा जब टूटने लगे और भावनाओं की बाढ़ में आप बहने लगें तो दोनों घड़ों का अलग हो जाना ही ठीक रहेगा। बजाए इसके कि दूसरे का वजूद ही मिटा दिया जाए।

सिमरनों को जीने का हक है, पर किसी की जिन्दगी लेकर नहीं।

(देश मंथन 12 जुलाई 2016)

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