अपने जातिवादी और सांप्रदायिक मित्रों से दो टूक

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अभिरंजन कुमार, पत्रकार :

मेरे कई मित्रों की मुश्किल है कि जब मैं मोदी, बीजेपी और आरएसएस की आलोचना करता हूँ, तो वे पढ़ते नहीं या पढ़ कर इग्नोर कर देते हैं, लेकिन जब मोदी, बीजेपी, आरएसएस के विरोधियों की आलोचना करता हूँ, तो वे हमारी निष्ठा पर सवाल उठाने लगते हैं।

जब तक हमारे ऐसे मित्र जातिवादी और सांप्रदायिक नजरिए से सोचते रहेंगे, तब तक उन्हें मेरी बातें सूट नहीं करेंगी और इसमें मैं उनकी कोई मदद भी नहीं कर सकता, क्योंकि उनके दिमाग में नफरत और नकारात्मकता का जहर भरा हुआ है। हमारे ऐसे मित्र जरा इंटरनेट सर्च कर लें। मेरे सैकड़ों आर्टिकल्स उन्हें मोदी, बीजेपी, आरएसएस और हिन्दुत्ववादी शक्तियों के खिलाफ भी मिल जाएंगे, जिन्हें उन्होंने या तो पढ़ा नहीं या पढ़ कर इग्नोर कर दिया।

मैं कई बार साफ कर चुका हूँ कि मोदी-विरोध और सरकार-विरोध एक बात है, लेकिन देश-विरोध और मानवता-विरोध दूसरी बात है। मेरी मजबूरी यह है कि मैं मोदी, बीजेपी और आरएसएस के विरोध में इस हद तक नहीं गिर सकता कि बंदूक के दम पर देश के टुकड़े-टुकड़े करने की सौगंध उठाने वालों का समर्थन करूं या अफजल और याकूब जैसे आतंकवादियों के महिमामंडन में कार्यक्रम करने वालों को अपना मसीहा मान लूं।

आप दिन-रात मोदी, भाजपा और आरएसएस को गरियाएँ, मेरी बला से। लेकिन आप देश को गरियाएंगे, सीमा पर रोज हमारे-आपके लिए जान देने वाले जवानों को गरियाएंगे, बेगुनाहों की जान लेने वाले आतकंवादियों का महिमामंडन करेंगे, उन्हें बिहार की बेटी और देश का लाल- वगैरह-वगैरह बताएंगे, तो मैं पूरी ताकत से आपके चेहरे का नकाब नोंच डालने की कोशिश करूंगा।

मेरे लिए देश महानतम है और मोदी मामूली है। इसलिए मैं चाहता हूँ कि देश के असली मुद्दों पर बात करो। गरीब-गुरबों की बात करो। किसानों-मजदूरों की बात करो। रोटी-पानी की बात करो। महँगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार की बात करो। सियासी मिलीभगत से शिक्षा-स्वास्थ्य को हाइजैक कर चुके माफिया की बात करो। बच्चे मिड डे मील खा कर मर जाते हैं, उनकी बात करो। बहन-बेटियों के रेपिस्टों को राजनीतिक संरक्षण मिलता है, उसकी बात करो। नेताओँ की बिगड़ैल औलादों की बात करो। राजनीति और अंडरवर्ल्ड के एक जैसा हो जाने पर बात करो।

अगर मोदी से प्रॉब्लम है, तो सरकार के परफॉरमेंस पर बात करो। ये क्या हुआ कि कभी उसकी बीवी के पीछे पड़ गये, कभी उसकी डिग्री के पीछे पड़ गये, कभी उसके सूट के पीछे पड़ गए? इसलिए अगर आप लोग बौरा गये हैं, सनसनी और पागलपन बेचना चाहते हैं, जनता को मूर्ख बनाने में आपको मजा आने लगा है, तो इस नीच-कर्म में मुझे अपना शागिर्द क्यों बनाना चाहते हैं?

एक बात और। जब भी आप मेरी बातों को संदर्भ से काट कर उसे अलग रंग देना चाहते हैं या मुझे भक्त, निक्करधारी इत्यादि घोषित करने की कोशिश करते हैं, तो मुझे पता चल जाता है कि आप स्वयँ कितने बड़े जातिवादी और सांप्रदायिक व्यक्ति हैं। मेरी सारी डिग्रियाँ असली हैं और आप जैसे तमाम लोगों से अधिक पढ़ा-लिखा हूँ मैं।

यह तो मैं लोकतंत्र, नागरिक अधिकारों और विचार एवं अभिव्यक्ति की आज़ादी का सम्मान करने वाला एक सहिष्णु भारतीय हूँ, इसलिए आपको “आदरणीय” और “परम आदरणीय” लिख कर समझाता रह जाता हूँ और आपसे यह भी नहीं कहता कि पहले अपने लहू से जातिवाद और सांप्रदायिकता का जहर निकालिए, फिर मुझसे बात कीजिए।

आशा है, मेरे सभी जातिवादी और सांप्रदायिक मित्र आज ही से अपनी रक्त-शुद्धि के लिए चिरौता पीना शुरू कर देंगे और दिमाग की दुरुस्ती के लिए अखरोट, बादाम और शंखपुष्पी का भी सेवन करने लगेंगे। अगर इतने से भी समस्या हल नहीं होती, तो निश्चित रूप से उन्हें किसी अच्छे मनो-चिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए, क्योंकि नफरत और नकारात्मकता से बड़ी कोई बीमारी नहीं।

सादर शुक्रिया।

(देश मंथन, 13 मई 2016)

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