Friday, April 26, 2024
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समाचार विचार

भारत अमेरिका व्यापार समझौते के लिए अभी और बातचीत की जरूरत

अतुल कौशिक

वैश्विक व्यापार विशेषज्ञ  

भारत और अमेरिका के बीच संबंधों के ऐसे तीन पहलू हैं, जिन पर डोनाल्ड ट्रंप के भारत दौरे का प्रभाव होने वाला है। पहला तो रणनीतिक पहलू है। इसमें द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक – तीनों तरह की बातें हैं। इन रणनीतिक पहलुओं पर ट्रंप की इस यात्रा की तैयारी के चरण में काफी प्रगति हुई है। लिहाजा इस संबंध में काफी सकारात्मक असर रह सकता है।

डोनाल्ड ट्रंप लालायित हैं भारतीयों के समर्थन के लिए

राजीव रंजन झा : 

नरेंद्र मोदी और डोनाल्ड ट्रंप के बीच दोस्ती तस्वीरों के लिए अच्छी है। मोदी और बराक ओबामा की दोस्ती भी तस्वीरों के लिए बहुत अच्छी थी। और तस्वीरें तो मोदी के साथ शी जिनपिंग की भी बहुत अच्छी थीं।

कांग्रेस मुख-पत्र ने तो हद कर दी, सीधी अवमानना सर्वोच्च न्यायालय की

राजीव रंजन झा : 

श्रीराम जन्मभूमि विवाद पर इस देश में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से पहले वैसे तो सबने कसमें खायीं कि जो भी अदालत का फैसला होगा, उसे ही मानेंगे। लेकिन फैसला सामने आने के कुछ लोगों ने इसमें मीन-मेख निकालना भी शुरू कर दिया है।  

राहुल गांधी की दोहरी नागरिकता का सवाल

राजीव रंजन झा

राहुल गांधी पूर्व भारतीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी के बेटे हैं। इस नाते वे स्वाभाविक रूप से भारत के ही नागरिक हुए। वे सोनिया गांधी के बेटे हैं। उनके जन्म के समय सोनिया गांधी इटली की नागरिक थीं। इस नाते इटली के कानूनों के अनुसार राहुल गांधी अपने-आप ही इटली की नागरिकता के पात्र बन जाते हैं। 

सुशासन बाबू की छत्रछाया में जंगलराज

संदीप त्रिपाठी

सुशासन बाबू की छत्रछाया में बिहार में जंगलराज रिटर्न की शूटिंग चल रही है। महज बीते दो दिन यानी 20 अगस्त और 21 अगस्त, 2018 की घटनाओं पर नजर डालें तो यह स्पष्ट हो जाता है। आरा (भोजपुर) के बिहिया क्षेत्र में सोमवार को एक युवक की हत्या के शक में भीड़ एक महिला को निर्वस्त्र कर एक घंटे चौराहे पर घुमाती है और इस दौरान पुलिस मूकदर्शक बनी रहती है।

सिद्धू तय करें कि किस तरफ हैं वे

[caption id="attachment_8929" align="alignnone" width=""]पाकिस्तानी जनरल कमर जावेद बाजवा से गले मिलते नवजोत सिंह सिद्धू[/caption]

संदीप त्रिपाठी 

कांग्रेस नेता, पंजाब सरकार में कैबिनेट मंत्री, पूर्व क्रिकेटर, कॉमेडी शो के पूर्व जज नवजोत सिंह सिद्धू का पाकिस्तान के नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री इमरान खान के शपथ ग्रहण में जाना, वहाँ गुलाम कश्मीर के मुखिया के साथ बैठना और फिर पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा के गले लगना विवादों के घेरे में है। इस पूरे प्रकरण में में कई सवाल हैं।

चीन से दोस्ती नहीं, पर सहयोग संभव : जी. पार्थसारथी

पिछले हफ्ते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दो दिनों की चीन यात्रा ने एक तरफ जहाँ कूटनीतिक सरगर्मी बढ़ा दी तो दूसरी ओर विपक्ष ने इस यात्रा को लेकर सवाल उठाये कि इससे हासिल क्या हुआ है? इस यात्रा के मायने क्या हैं और उससे भारत-चीन संबंधों की गाड़ी किस दिशा में बढ़ी है, यह समझने के लिए देश मंथन की ओर से राजीव रंजन झा ने बातचीत की भारत के पूर्व राजदूत जी. पार्थसारथी से।  

बस एक यह काम न करते जनरल रावत

राजीव रंजन झा : 

सेना प्रमुख अवैध घुसपैठ की बात करें और राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से उसका विश्लेषण करें, यह बिल्कुल उचित है। लेकिन किन्हीं राजनीतिक दलों की सार्वजनिक चर्चा करना उनके लिए कतई उपयुक्त नहीं लगता।  

अब खुल रहा है पद्मावत पर सेक्युलरों का मोर्चा

राजीव रंजन झा : 

दरअसल संजय लीला भंसाली और उनकी फिल्म पद्मावत के खिलाफ मोर्चा तो छद्म सेक्युलरों का खुलना चाहिए था, पर करणी सेना का मोर्चा खुला होने के चलते छद्म सेक्युलर खुल कर अपनी बात कहनी कहने की जगह ही नहीं बना पा रहे हैं। मगर सेक्युलर मोर्चे से पद्मावत और भंसाली की कुछ-कुछ आलोचना सामने आने लगी है। 

विरोध नहीं होता तो हिट नहीं होती पद्मावत

विकास मिश्र, आजतक : 

कल रात ही 'पद्मावत' देखकर लौटा हूँ, वह भी 3डी में। तीन घंटे लंबी इस फिल्म का नाम तो असल में 'खिलजावत' होना चाहिए था, क्योंकि पूरी फिल्म खिलजी के इर्द-गिर्द घूमती है, खिलजी के चरित्र को ही सबसे ज्यादा फुटेज मिली है। पद्मावती और राजा रतन सिंह की कहानी तो इस फिल्म का महज एक हिस्सा है।

राजपूत शौर्य गाथा का बखान है पद्मावत

नरेश सोनी, सहायक कार्यकारी संपादक, न्यूज वर्ल्ड इंडिया : 

फिल्म पद्मावत देखी, यकीन मानिए, हाल के सालों में मुझे एक भी ऐसी फिल्म याद नहीं जिसने राजपूत शौर्य की गाथा का इतना अच्छा बखान किया हो। पहले दृश्य से लेकर आखिर तक दो चीजें लगातार आपके जहन में बनी रहती है -

राहुल के हाथों अन्ना का अनशन तुड़वाने की थी योजना?

अन्ना आंदोलन को करीब से देखने वाले पत्रकार अनुरंजन झा ने इसके कई अनछुए अनजाने पहलुओं को पहली बार सामने लाते हुए एक किताब लिखी है - रामलीला मैदान। इसी किताब से प्रस्तुत है वह हिस्सा, जहाँ अनुरंजन जिक्र कर रहे हैं कि कई सारे ऐसे समाज-सेवी और बुद्धिजीवी जो आंदोलन के शुरुआत के दिनों में मूवमेंट में दिलचस्पी नहीं ले रहे थे या फिर धुर विरोधी थे, लेकिन एक समय वे एक-एक कर मंच पर आने लगे थे। क्या उनका आना अनायास था या फिर सोची-समझी रणनीति का हिस्सा था...

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