रूबी के दोषियों को कब मिलेगी सजा?

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निभा सिन्हा :

ऐसा लग रहा है कि बिहार के इंटरमीडिएट टॉपर स्कैंडल के दोषियों को सजा दे कर सरकार अपने सारे दोषों से मुक्त होना चाहती है। सिस्टम पर ही बात करनी है तो सिर्फ बिहार ही क्यूँ, समूचे देश की ही बात कर लेते हैं। कभी-कभी एकाध रूबी राय जाने किस मंशा से पकड़ ली जाती हैं तो थोड़े दिन शोर शराबा होता है और फिर सब शांत, जैसे कि समाधान कर दिया गया हो समस्या का। 

हाँ! तो बात कर लेते है दिल्ली स्थित विश्वविद्यालय से पास करके निजी संस्थान से पेशेवर कोर्स करने आये उन विद्यार्थियों की भी जो अपने विषय के बारे में दो लाइन बोल नहीं पाते और कई जगहों के उन पीएचडी स्कॉलर्स की भी जो अपने शोध विषय पर बोल नहीं पाते, देश में चल रहे उन कई-कई निजी  और सरकारी संस्थानों और विश्वविद्यालयों की भी जो धड़ल्ले से डिग्रियाँ बाँट रहे हैं। उस व्यवस्था की भी जो इन सब को देख कर भी आँखे मूँदे हुए हैं। उन शिक्षक भर्ती घोटाले की भी जो कई राज्यों की कहानी है। उन शिक्षकों की भी जो घूस दे कर स्कूलों में विराजमान हैं।

हमें ये मानना पड़ेगा कि देश भर में जाने कितनी रूबी राय को ये व्यवस्था जन्म दे रही है, ये राजनीतिक व्यवस्था, ये प्रशासनिक व्यवस्था, ये सामाजिक व्यवस्था, ये हमारी शिक्षा व्यवस्था। सब मिल कर सब जगह पैदा कर रहे हैं, कितने ऐसे गुनहगार जिनका वाकई कोई गुनाह नहीं। 

जाहिर सी बात है, यूपीएससी की परीक्षा देकर आइएएस में जाने का तो सपना नहीं ही होगा रूबी राय या उनके घरवालों का। यदि वह अपने विषय का नाम तक नहीं बोल पायी तो उस विषय का शिक्षक गिरफ्तार क्यों नहीं होता? स्कैंडल में लिप्त होने के लिए प्रिंसिपल गिरफ्तार होता है, इस बात के लिए गिरफ्तारी क्यों नहीं होती कि उसके कॉलेज में कितने शिक्षक और बच्चे हर दिन पढ़ाने और पढ़ने आते हैं? इस व्यवस्था को मुकम्मल क्यूँ नहीं बनाया गया? गिरफ्तारियाँ उसके लिए क्यूँ नहीं होती? बच्चे को चोरी करने की नौबत ही क्यों आयी? स्कूल में शौचालय नहीं थे, इसलिए बच्चियाँ घरों में थीं। जहाँ शौचालय थे, वहाँ टीचर जाड़े में स्वेटर बनाती रही, गर्मियों में स्टाफ रूम में गप्पें लगाती रही। बच्चे स्कूल सिर्फ परीक्षा देने गये और चोरी की। फिर भी पास करने की उम्मीद नहीं बनी तो आगे स्कैंडल जारी रहा।

रोजमर्रा के स्कैंडल का क्या जिसने देश की शिक्षा व्यवस्था को ऐसा पंगु बना दिया है कि अपने दम पर निकलने वाले ही निकल रहे हैं बाकी सब जगह तो सिर्फ तथाकथित दाखिला और भर्ती है और उसका अंजाम रूबी राय है। उसे तो पता भी नहीं होगा कि उस डिग्री का वह क्या करेगी? क्यों खरीदी गयी उसके लिए डिग्री, वह भी टॉपर की। मामला उतना भी सीधा नहीं जितना मीडिया अपनी टीआरपी के लिए सनसनीखेज बना कर गायब हो जाती है। ढेरो और भी समीकरण हैं, और उसे भी सुलझाना होगा। नहीं तो रूबी राय जैसे कितनों विद्यार्थियों को गिरफ्तार करते रहिये, रत्ती भर भी कुछ नहीं बदलने वाला।

(देश मंथन 29 जून 2016)

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