पहली बार बहुसंख्यक वोटों का ध्रुवीकरण

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राणा यशवंत, प्रबंध संपादक, इंडिया न्यूज :

आजाद भारत के इतिहास में यह चुनाव कई बेहद महत्वपूर्ण बातों के लिए याद किया जायेगा। यह पहली बार है जब कांग्रेस से अलग किसी पार्टी को अकेले बहुमत मिला है। यह पहली बार है कि कांग्रेस विपक्षी दल की हैसियत भी हासिल नहीं कर पायी। सदन की कुल संख्या के दस फीसदी के बराबर भी उसके सदस्य जीत कर संसद नहीं पहुँच सके।

यह पहली बार है कि देश के तमाम क्षत्रप, जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रुप से कांग्रेस का साथ दे रहे थे, मटियामेट हो गये। यह पहली बार है कि वामपंथी राजनीतिक विचारधारा वाले दल लगभग खत्म हो गये। यह पहृली बार ही है कि मुसलमानों की संसद में संख्या देश में उनकी आबादी के प्रतिशत के बराबर ही रह गया। यह भी पहली बार है कि समूचे हिंदी भाषी इलाके में बिहार को छोड़ कर कहीं भी कोई मुस्लिम उम्मीदवार नहीं जीता। और, यह भी पहली ही बार है कि दलितों की सियासी ताकत को देश में स्थापित करनेवाली बसपा का कोई नामलेवा नहीं रहा। 

कुल मिला कर बात ये है कि इस बार का चुनाव जातियों की मठाधीशी, वोटों की ठेकेदारी और मजहब का धंधा करनेवाली लम्पट, लिजलिजी और लुटेरा राजनीति का सामूहिक संहार है। कांग्रेस के तमाम धुरंधर मुँह के बल गिरे पड़े हैं। सलमान खुर्शीद, सुशील कुमार शिंदे, बेनी प्रसाद वर्मा, मुरासोली मारन, पवन कुमार बंसल, मीरा कुमार, शंकर सिंह वाघेला जैसे खुर्राट नेताओं के तोते उड़े हुए हैं। राहुल गांधी के खासमखास औंधे मुँह गिरे पड़े हैं। सचिन पायलट, जितिन प्रसाद, आरपीएन सिंह, भंवर जीतेंद्र सिंह, मीनाक्षी नटराजन सारे खेत रहे। यूपी में मुलायम सिंह अपनी बहू डिंपल के साथ अक्षय और धर्मेंद्र यादव के साथ ही सलामत बच पाये, बाकी समूची पार्टी निपट गयी। मायावती पर तो इतनी भी रियायत जनता ने नहीं की। अजित सिंह बाप बेटे दोनों को जनता ने दर-बदर कर दिया । बिहार में लालू की पत्नी राबड़ी देवी और नाक का सवाल बन बैठी बेटी मीसा की सीट भी नहीं बची। मोदी को वोट देने वालों को कोसने वाले फारुक अब्दुल्ला की पार्टी को घाटी में घोंट दिया गया। निपट गये। 

दूसरी तरफ भाजपा का परचम पहली बार समूचे हिंदुस्तान में फहरता दिख रहा है। अरुणाचल से लेकर आणंद तक और जम्मू से लेकर कन्याकुमारी तक मोदी की अगुआई में पार्टी ने फतह कर डाली है। जिस किसी ने मोदी की उंगली पकड़ी, उसकी नैया पार लग गयी। बिहार में पासवान को सात सीटें दी गयी, 6 सांसद लेकर दिल्ली आ रहे हैं। उपेंद्र कुशवाह को तीन सीटें मिलीं – तीनों निकल गयीं। यूपी में अनुप्रिया पटेल को दो सीटें दीं – मिर्जापुर और प्रतापगढ़। दोनों पर जीत मिली। बस हरियाणा में भजनलाल के लाल ने बंटाधार कर दिया और तमिलनाडु में एमडीएमके औऱ डीएमडीके की गोटी लाल नहीं हो सकी। वर्ना आंध्र में चंद्रबाबू नायडू की चाँदी हो गयी है और महाराष्ट्र में शिवसेना की ताकत भी बढ़ गयी है। 

अगर आप इन सब पर ठीक से विचार करें तो कुछ बातें बड़ी साफ नजर आएंगी। यह महज मोदी की सुनामी नहीं बल्कि भारतीय समाज के तमाम खानों-कोटरों को ध्वस्त करने वाला ऐसा जनादेश है, जिसने राजनीति की तमाम तिकड़मों, फरेबों और जकड़बंदियों को एक झटके में उड़ा दिया। इसकी वजह सिर्फ इतनी नहीं है कि जनता ने मोदी में एक मजबूत, साहसी और तरक्कीपसंद नायक देखा है, बल्कि हिंदुस्तान के लोकतंत्र में यह पहली बार बहुसंख्यक वोटों का ध्रुवीकरण भी है। 

(देश मंथन, 17 मई 2014)

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