महागठबंधन से मुकाबले से पूर्व एनडीए में अंदरूनी घमासान

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संदीप त्रिपाठी : 

बिहार विधानसभा चुनाव के मद्देनजर एनडीए में जबरदस्त रार मची हुई है। बिहार में एनडीए में कुल चार दल भाजपा, जदयू, लोजपा और हम (हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा) हैं।

पर जदयू कहती है कि उसका भाजपा से गठबंधन है, उनका लोजपा से कोई लेना-देना नहीं है। लोजपा भी कहती है कि उसका समझौता भाजपा से है, जदयू से नहीं। उधर, हम का कहना है कि वह जदयू के साथ है। जो नीतीश के खिलाफ बोलेगा, वे उसके खिलाफ जायेंगे।

एनडीए से जदयू, लोजपा, हम के रिश्ते

इसमें से जदयू अटल जी के समय से एनडीए में थी। नरेंद्र मोदी को 2013 में प्रधानमंत्री पद का दावेदार बनाये जाने पर नीतीश ने एनडीए छोड़ दिया था। जदयू 2014 लोकसभा चुनाव अकेले लड़ी और बुरी तरह पटकनी खायी।

2015 विधानसभा चुनाव जदयू राजद के साथ मिलकर लड़ी और नीतीश फिर मुख्यमंत्री बने। लेकिन नीतीश की पटरी राजद के साथ नहीं बैठी और वे बहुत जल्द अलग हो गये और भाजपा के पास लौट आये।

उधर, लोजपा भी अटल जी के समय एनडीए में थी। लेकिन 2004 लोकसभा चुनाव से ऐन पहले वह यूपीए में शामिल हो गयी। लोजपा ने फिर 2014 से पहले पाला बदला और एनडीए में लौट आयी।

अगर माँझी के ‘हम’ की बात करें तो भाजपा से रिश्ते तोड़ने के बाद जब नीतीश ने 2014 के चुनाव में बुरी तरह पटकनी खायी तो फिर नैतिकता के नाम पर इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने तब अप्रत्याशित रूप से जदयू के अपने कनिष्ठ सहयोगी जीतनराम मांझी को मुख्यमंत्री बनाया था।

कुछ दिन ठीक-ठाक चलने के बाद नीतीश का दबाव माँझी पर बढ़ने लगा तो माँझी बागी हो गये। अंतत:, 2015 विधानसभा चुनाव से पहले 20 फरवरी को माँझी से इस्तीफा लेकर नीतीश स्वयं दोबारा मुख्यमंत्री बन गये।

तब माँझी ‘हम’ बनाकर दलित राजनीति करने लगे और विधानसभा चुनाव में भाजपा के साथ हो लिये। बाद में वे भाजपा के खिलाफ होकर राजद से जा मिले और लोकसभा चुनाव महागठबंधन की ओर से लड़ा। अभी विधानसभा चुनाव से तत्काल पूर्व उन्होंने महागठबंधन का पाला छोड़कर एनडीए का दामन थामा।

नीतीश का जबरदस्त मोल-भाव

अब जब 2020 के विधानसभा चुनाव अक्टूबर-नवंबर में आसन्न हैं तो एनडीए के भागीदार दलों में जबरदस्त दाँव-पेंच देखने को मिल रहा है। नीतीश जबरदस्त मोलभाव करते हैं। उनका यह गुण 2019 लोकसभा चुनावों से पूर्व दिखा, जब भाजपा के पास बिहार की 40 में से 23 सीटें थीं, जबकि जदयू के पास महज दो सीटें थीं।

लेकिन नीतीश की तिकड़म के आगे भाजपा को घुटने टेकने पड़े और सीट समझौते में भाजपा और जदयू, दोनों को बराबर 17-17 सीटें मिलीं। यानी भाजपा ने नीतीश को साथ रखने के लिए अपनी जीती हुई पाँच सीटों और लड़ी गयी आठ सीटों की कुर्बानी दी।

तब तक उपेंद्र कुशवाहा की रालोसपा एनडीए छोड़ चुकी थी और उसकी लड़ी गयी 3 सीटें खाली हो गयी थीं। 2019 के मोलभाव में लोजपा को भी जदयू के लिए 2014 में लड़ी गयी सीटों के मुकाबले अपनी एक सीट छोड़नी पड़ी। यहाँ याद रखने लायक बात यह है कि 2015 से पूर्व के विधानसभा चुनावों में जदयू द्वारा कम सीटें जीते जाने के बावजूद भाजपा उन्हें मुख्यमंत्री बनाती रही थी।

आगामी विधानसभा चुनाव के लिए दाँवपेंच

चूँकि जदयू और लोजपा, दोनों की राजनीति का आधार बिहार ही है। इसलिए दोनों में लाग-डाँट चलती रहती है। नीतीश के अड़ियल मोल-भाव के चरित्र से परिचित लोजपा ने इस बार पहले से ही अपने हाव-भाव कड़े कर लिये हैं।

पिछले विधानसभा चुनाव में 42 सीटों पर लड़ कर महज दो जीटें जीतने वाली लोजपा ने नीतीश की महागठबंधन छोड़ कर एनडीए में वापसी पर बनी सरकार में हिस्सेदारी नहीं की। इससे लोजपा को बिहार की नीतीश सरकार के खिलाफ लगातार आवाज उठाने का अवसर मिलता रहा। नीतीश के ही नक्शे-कदम पर चलते हुए लोजपा के चिराग पासवान ने इस बार काफी पहले से ही कड़ा मोल-भाव शुरू कर दिया।

जवाब में जदयू ने भी चिराग को निशाने पर ले लिया। जदयू ने चिराग को कालिदास की उपमा दे दी कि जिस डाली पर बैठे हैं, उसी को काट रहे हैं। बात बिगड़ती गयी और लोजपा ने साफ कह दिया कि उसका जदयू से कोई गठबंधन नहीं है। जदयू ने भाजपा को भी चेता दिया कि अगर एनडीए में लोजपा को सीटें देनी हैं तो भाजपा उसे अपने कोटे से दे।

लोजपा ने अपना रुख और कड़ा करते हुए नीतीश सरकार की नाकामियों पर सीधा मोर्चा खोल दिया और साफ किया कि वह जदयू के खिलाफ अपने उम्मीदवार उतारेगी। सोमवार की बैठक में लोजपा ने तय किया है कि वह कम-से-कम 40 सीटों पर लड़ेगी, वरना उसके पास एनडीए से बाहर जाने का विकल्प भी है। पार्टी ने चिराग को गठबंधन के बाबत कोई भी फैसला लेने के लिए अधिकृत किया और तय किया कि एनडीए से बाहर होने की स्थिति में वह 143 सीटों पर चुनाव लड़ेगी।

माँझी के रूप में चिराग की काट

इधर, नीतीश ने चिराग की काट के लिए जीतनराम माँझी की हम को एनडीए में शामिल करा लिया। माँझी आने के साथ ही नीतीश के पक्ष में चिराग और लोजपा के खिलाफ अपना तीर ताने हुए हैं और लोजपा के खिलाफ हम के प्रत्याशी उतारने की चेतावनी दे चुके हैं। नीतीश ने ऐन चुनाव से पूर्व लोजपा का दलित आधार खिसकाने की जोड़-जुगत शुरू कर दी है, जिस पर चिराग उन्हें खुली चिट्टियाँ लिख कर उन जोड़-जुगत की पोल खोलने में जुटे हैं।

भाजपा इस लड़ाई में खामोश है और सबके एकजुट होकर चुनाव लड़ने की बात कहती है। हालाँकि भाजपा के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री आरा के सांसद आर. के. सिंह ने एक बयान देकर जदयू को संकेत दे दिया कि भाजपा अपने खुद के दम पर सरकार बना सकती है, लेकिन वह दोस्तों को नहीं छोड़ती।

नीतीश ने वर्चुअल रैली कर एक तरह से चुनाव प्रचार शुरू कर दिया है और प्रधानमंत्री मोदी भी 10 सितंबर को कृषि और अन्य क्षेत्रों में 294 परियोजनाओँ की घोषणा कर एक तरह से भाजपा के चुनावी अभियान को आधार देने जा रहे हैं। लेकिन एनडीए में इन दाँव-पेंचों के कारण विधानसभा चुनाव आने तक स्थिति बहुत सहज होती नहीं दिख रही है।

(देश मंथन, 8 सितंबर 2020)

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