अगर यह बात सच हो तो शायद यह UPA सरकार के दिनों का सबसे बड़ा घोटाला होगा! 'काली खेती' का घोटाला! लाखों अरब रुपये का घोटाला होगा यह। इतना बड़ा कि आप कल्पना तक न कर सकें! गिनतियों में उलझ कर दिमाग घनचक्कर हो जाये! छह सालों में यह छब्बीस करोड़ करोड़ रुपये का गड़बड़झाला है।
हंगामा है, न गुस्सा। न चिन्ता है, न क्षोभ। 'ग्रेट इंडियन बैंक डकैती' हो गयी तो हो गयी। लाखों करोड़ रुपये लुट गये, तो लुट गये। खबर आयी और चली गयी। न धरना, न प्रदर्शन, न नारे, न आन्दोलन। न फेसबुकिया रणबाँकुरे मैदान में उतरे। न किसी ने पूछा कि कर्ज़ों का यह महाघोटाला करनेवाले कौन हैं?
मोदी सरकार के लगभग दो साल के राज में खेती और उससे जुड़े लोगों के आर्थिक हालात मनमोहन सिंह राज के अंतिम दो तीन सालों से ज्यादा खराब हैं। ग्रामीण अर्थव्यवस्था में हताशा व्याप्त है प्राकृतिक आपदाओं की बेरहम मार तो खेती को झेलनी ही पड़ी है पर मोदी सरकार के रवैये ने खेती के संकट को खूंखार बना दिया है। अनेक राज्यों में किसानों की बढ़ती आत्महत्याएँ ग्रामीण भारत में बढ़ती हताशा और निराशा का द्योतक है।
सहसा विश्वास नहीं होता है कि कच्चे तेल के दाम पानी से कम हो जायेंगे। लेकिन गोल्डमैन सैक्स की मानें तो वह दिन अब दूर नहीं है। सच तो यह है कि दुनिया के कुछ हिस्सों में यह करिश्मा अभी घट चुका है। एक बैरल में 158 लीटर होते हैं। यदि कच्चे तेल की कीमत 20 डॉलर प्रति बैरल हो जात है तो एक लीटर कच्चे तेल के दाम होंगे 8.50 रुपये यानि बोतलबंद पानी से भी कम। कुछ महीने पहले विश्व विख्यात निवेशक कंपनी गोल्डमैन सैक्स ने कच्चे तेल के दाम 20 डॉलर प्रति बैरल तक गिरने की भविष्यवाणी की थी। तब अधिकांश तेल विशेषज्ञों ने इसे हवा में उड़ा दिया था। यह तेल विशेषज्ञ मानने को तैयार नहीं थे कि कच्चे तेल के दाम 40-45 डॉलर प्रति बैरल से नीचे जा सकते हैं। पर नये साल की शुरुआत से अचानक ऐसे लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है जिन्हें अब गोल्डमैन सैक्स की भविष्यवाणी सच होती दिखायी दे रही है। असल में पिछले पाँच महीने काफी उठा-पटक के रहे हैं। कनेडियाई कच्चे तेल ने गोल्डमैन सैक्स की भविष्यवाणी को सच साबित कर दिया। समाप्त हफ्ते में बुधवार को इसके दाम 20 डॉलर से नीचे पहुँच गये।
राहुल गाँधी को भारतीय राजनीति में पुनर्स्थापित करने के प्रयास के तहत कांग्रेस ने बीते रविवार को दिल्ली में किसानों की रैली की और उसमें राहुल खूब गरजे-बरसे।
मंगलवार 7 अप्रैल को सुबह भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक नीति सामने आते ही समाचार चैनलों की सुर्खियाँ बताने लगीं कि नहीं बदलेगी आपकी ईएमआई, लेकिन क्या बैंकों को उस दिन अपनी ईएमआई घटानी थी, और उन्होंने वह फैसला टाल दिया?
न ड्रीम बजट, न क्रीम बजट, यह ‘ईज आफ डूइंग बिजनेस’ का थीम बजट है। वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में कम से कम दस बार ‘ईज आफ डूइंग बिजनेस’ की बात कही और बजट भाषण के ठीक बाद अपने इंटरव्यू में जेटली ने कहा कि जब हम उद्योगों से कमाई करेंगे, तभी तो गरीब की मदद हो पायेगी।
केंद्रीय रेलमंत्री सुरेश प्रभु चार्टर्ड एकाउंटेंट हैं, पर रेल बजट 2015-16 पेश करने में उन्होने जो किसी कवि की कल्पनाशीलता दिखायी है। चार्टर्ड एकाउंटेंट का काम ठोस आंकड़ों की पुख्ता जमीन पर होता है। कवि को यह छूट होती है कि वह अपनी कल्पना के घोड़े कहीं भी दौड़ा ले।
विवेक अग्निहोत्री की सफलता यही है कि उन्होंने विमर्श की दिशा मोड़ दी। उन्होंने बस दर्द को जस-का-तस परोस दिया, जो इतने वर्षों से झेलम नदी में कश्मीरियत की हरी काई के नीचे दबा था और अब वह दर्द बह कर नीचे उस मैदान में आ गया है, जहाँ तक आने से लिबरल जमात उसे रोक रही थी!
क्या किसान की आमदनी 100 से बढ़ा कर 200 रुपये करने के लिए उपभोक्ता का खर्च 400 से बढ़ा कर 800 रुपये किया जाना ऐसा विकल्प है, जिसे लोग पसंद करेंगे? क्या आप तैयार हैं कि जो आटा 40 रुपये किलो खरीदते हैं, उसे 80 रुपये में खरीदने लगें और जो दाल 100 रुपये किलो खरीद रहे हैं, उसे 200 रुपये में खरीदने लगें? क्या किसानों की आमदनी दोगुनी करने का मतलब यह है कि खाद्य महँगाई भी दोगुनी हो जायेगी?
देश में आरएसएस पर 18 महीने तक प्रतिबंध रहा और इस दौरान नेहरू की सरकार में नियोजित तरीके से समाज में आरएसएस का दानवीकरण करने का अभियान चला। उस समय महज दो शब्द कहने से लोगों की सामाजिक प्रतिष्ठा चली जाती थी, सरकारी दफ्तरों में काम कर रहे अधिकारी-कर्मचारियों की नौकरी चली जाती थी, व्यापारियों पर मुकदमे हो जाते थे। वे दो शब्द थे - आरएसएस एजेंट।
एक दलित को निहंगों द्वारा मारे जाने पर सभी मौन बैठे हैं। वे विरोध नहीं कर रहे, सड़कों पर नहीं निकल रहे और न ही लखीमपुर खीरी जैसी बहसें कर रहे हैं। सिंघु बॉर्डर पर हत्या भी है और उसमें दलित भी है। और इतना ही नहीं, उसमें निर्ममता की पराकाष्ठा है।