शनिवार वाडा : कभी शानदार किला था, अब यहाँ डर लगता है

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विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :

पुणे शहर का शनिवार वाडा। पुराने पुणे शहर के बीचों बीच स्थित शनिवार वाडा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की ओर देश के संरक्षित स्मारकों में से एक है।

यह पेशवाओं द्वारा निर्मित शानदार किला हुआ करता था। अब ज्यादातर हिस्सा खन्डहर है। अब यह किला आज लोगों को डराता भी है। कहा जाता है इस किले में एक राजकुमार नारायण राव को बेदर्दी से कत्ल कर दिया गया था ताकि वह राजा न बन सके। आज भी रात के समय यहाँ मदद के लिए पुकारते एक बच्चे की दर्दनाक चीखें सुनाई देती हैं।

किले की नींव शनिवार के दिन रखी गई थी, इसलिए इसका नाम शनिवार वाडा पड़ा। पेशवाओं के इस किले का उद्घाटन 22 जनवरी 1732 को किया गया था। यह किला 1818 तक पेशवाओं की गतिविधियों का प्रमुख केंद्र रहा। लेकिन इस किले के साथ एक काला अध्याय भी जुड़ा है। इस किले में 30 अगस्त 1773 की रात को 18 साल के  नारायण राव, जो की मात्र 16 साल की उम्र में मराठा साम्राज्य के पाँचवें पेशवा बने थे, की षड्यन्त्रपूर्वक ह्त्या कर दी गई थी। अब इस किले को देश के टॉप मोस्ट हॉन्टेड प्लेस में शामिल किया जाता है।

शनिवार वाडा फोर्ट का निर्माण राजस्थान के ठेकेदारो ने किया था, इस किले में लगी सागवान की लकड़ी जुन्नार के  जंगलों से, पत्थर चिंचवाड़ की खदानों से लाया गया था। इस महल में 1827 को भयंकर आग लगी थी,  जिसे बुझाने में सात दिन लगे। आग से कई इमारते पूरी तरह नष्ट हो गईं। उनके अब केवल अवशेष बचे हैं। किले की प्रमुख इमारत सात मन्जिला थी, जिसे बाजीराव पेशवा – 1 ने बनवाया था, वह भी आग में नष्ट हो गई।

शनिवार वाडा किले में प्रवेश करने के लिए पाँच दरवाजे हैं। दिल्ली दरवाजा ( उत्तर की तरफ मुख्य दरवाजा है), मस्तानी दरवाजा, नारायण दरवाजा, खड़की दरवाजा और गणेश दरवाजा।

अब किले का मुख्य द्वार और उसके पास की संरचना को ही मूल रूप में देखा जा सकता है। आप किले की चारों तरफ की बाउन्ड्री पर चल सकते हैं। किले के चारों तरफ अब बड़ा बाजार है।

पानीपत की तीसरी लड़ाई में हुई थी हार 

पेशवा नाना साहेब के तीन पुत्र थे विशव राव, महादेव राव और नारायण राव। सबसे बड़े पुत्र विशव राव पानीपत की तीसरी लड़ाई में मारे गये थे। नाना साहेब की मृत्यु के उपरान्त महादेव राव को गद्दी पर बैठाया गया। पानीपत की लड़ाई में महादेव राव पर ही रणनीति बनाने की पूरी जिम्मेदारी थी। लेकिन उनकी बनाई हुई कुछ रणनीतियाँ बुरी तरह विफल रही थी, फलस्वरूप इस युद्ध में मराठों की बुरी तरह हार हुई थी। 

(देश मंथन, 09 मई 2015)

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