दक्षिणेश्वर की काली और बेलुर मठ

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विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार:  

कोलकाता के काली घाट में माँ काली का प्रचीन मंदिर है तो शहर के उत्तरी हिस्से दक्षिणेश्वर में माँ काली का भव्य मंदिर है। स्वामी विवेकानंद के गुरू रामकृष्ण परमहंस इस मंदिर में माँ काली की उपासना किया करते थे।

इस मंदिर की काफी मान्यता है, क्योंकि मंदिर से विवेकानंद के गुरु से इस मंदिर का नाता है। दक्षिणेश्वर में हुगली नदी के पूर्वी किनारे पर स्थित काली के इस मंदिर को सारी दुनिया रामकृष्ण परमहंस की वजह से ज्यादा जानती है। यहाँ काली का भवतरणी के स्वरूप में विराजती हैं।

काली माँ का मंदिर 46 फुट चौड़ा तथा 100 फुट ऊंचा है। इस मंदिर में 12 गुंबद हैं जिनका संयुक्त सौंदर्य दूर से भी विलक्षण प्रतीत होता है। दक्षिण की ओर स्थित यह मंदिर तीन मंजिला है। ऊपर की दो मंजिलों पर नौ गुंबद समान रूप से फैले हुए हैं। गुंबदों की छत पर सुंदर आकृतियां बनाई गयी हैं।

मंदिर के गर्भगृह में शिव की छाती पर पाँव रख कर खड़ी काली की प्रतिमा चाँदी के हजार पंखुडि़यों वाले कमल पर स्थापित है। मुख्य मंदिर के चारों तरफ 12 एक जैसे शिव मंदिर बने हैं। गंगा के किनारे बने शिव मंदिर छह और छह की दो श्रंखला में हैं। मंदिर परिसर में एक विष्णु मंदिर और एक राधाकृष्ण मंदिर भी है। इस मंदिर के पास पवित्र हुगली नदी जो बहती है। इन नदी में खिले कमल के पुष्प से माँ काली की पूजा की जाती है।

मंदिर का इतिहास 

मंदिर का निर्माण सन 1847 में प्रारम्भ हुआ था। जान बाजार की महारानी रासमणि ने स्वप्न देखा था, जिसके अनुसार माँ काली ने उन्हें निर्देश दिया कि मंदिर का निर्माण किया जाए। सन 1855 में मंदिर का निर्माण पूरा हुआ। यह मंदिर 25 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है। कहा जाता है कि रानी रासमणि चूंकि निम्न जाति से आती थीं, इसलिए मंदिर में देवी की स्थापना के समय काफी विवाद हुआ। 

इस मंदिर के पहले पुजारी रामकुमार चट्टोपाध्याय बने। बाद में उनके छोटे भाई गदई या गदाधर भी उनके साथ रहने लगे। ये गदाधर ही बाद में रामकृष्ण परमहंस बने। एक साल बाद रामकुमार की मृत्यु हो जाने पर रामकृष्ण यहाँ के मुख्य पुजारी बन गये। तब से तीस साल बाद 1886 में अपनी मृत्यु तक रामकृष्ण इसी मंदिर में बने रहे। प्रसिद्ध विचारक रामकृष्ण परमहंस ने माँ काली के मंदिर में देवी की आध्यात्मिक दृष्टि प्राप्त की थी। इसी स्थल पर बैठ कर उन्होंने धर्म-एकता के लिए प्रवचन दिये थे।

कैसे पहुँचे 

दक्षिणेश्वर की काली माँ के दर्शन के लिए आपको कोलकाता के मुख्य बस स्टैंड धर्मतल्ला या हावड़ा से स्थानीय बसें मिल जाएंगी। लोकल ट्रेन से भी आप बेलुर स्टेशन आकर वहाँ से पुल से हुगली नदी पार कर दक्षिणेश्वर पहुँच सकते हैं। बेलुर मठ से दक्षिणेश्वर के लिए लगातार फेरी सेवा भी चलती है, जिससे दक्षिणेश्वर पहुँचा जा सकता है। आप कोलकाता के किसी भी कोने से टैक्सी बुक करके भी यहाँ तक पहुँच सकते हैं। सियालदह डानकुनी रेल मार्ग पर दक्षिणेश्वर रेलवे स्टेशन भी है। यहाँ सियालदह रेलवे स्टेशन से भी पहुँचा जा सकता है। यह रेलवे स्टेशन हुगली नदी पर बने विवेकानंद ब्रिज से ठीक पहले आता है। 

मंदिर खुलने का समय

मंदिर सुबह 6.30 बजे से दोपहर 12.30 बजे तक खुला रहता है। इसके बाद मंदिर दुबारा दोपहर 3.30 बजे खुलता है। मंदिर शाम को 8.30 बजे तक ही खुला रहता है। वहीं अप्रैल से सितंबर तक मंदिर रात्रि 9 बजे तक खुला रहता है।  

(देश मंथन,  02 अप्रैल 2017)

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