खुल्ताबाद : औरंगजेब की मजार पर

0
1408

विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :

मुगल बादशाह औरंगजेब ऐसा शासक रहा है, जिसका इतिहास में ज्यादातर नकारात्मक मूल्याँकन हुआ है। दिल्ली के इस सुल्तान की मजार है औरंगाबाद शहर से 30 किलोमीटर दूर खुल्ताबाद में। उसकी दिली तमन्ना थी कि उसे अपने गुरु के बगल में दफनाया जाये।

इसलिए अहमदनगर में 23 मार्च 1707 को मौत होने के बाद उसे यहाँ लाकर दफनाया गया। औरंगजेब की कब्र कच्ची है। कब्र के पास मौजूद सेवादार बताते हैं कि उसकी इच्छा थी कि कब्र को भव्य रूप नहीं दिया जाये।

अबुल मुजफ्फर मुहिउद्दीन मुहम्मद औरंगजेब आलमगीर का जन्म 4 नवम्बर 1618 को गुजरात के दाहोद में हुआ था। वह शाहजहाँ और मुमताज की छठी सन्तान और तीसरा बेटा था। उसका शासन 1658 से लेकर 1707 तक रहा। इस प्रकार उसने 50 साल यानी मुगल शासकों में सबसे ज्यादा साल तक शासन किया। उसकी पहचान हिन्दुस्तान के इतिहास के सबसे जालिम राजा के तौर पर है, जिसने अपने पिता को कैद किया, अपने सगे भाइयों और भतीजों की बेरहमी से ह्त्या की। गुरु तेग बहादुर का सिर कटवाया। गुरु गोबिंद सिंह के बच्चों को जिंदा दीवार में चुनवाया। पर उसकी सादगी के किस्से भी मशहूर हैं। 

औरंगजेब के अन्तिम समय में दक्षिण में मराठों का वर्चस्व बहुत बढ़ गया था। उन्हें दबाने में शाही सेना को सफलता नहीं मिल रही थी। इसलिए सन् 1683 में औरंगजेब खुद सेना लेकर दक्षिण की ओर गया। वह राजधानी से दूर रहता हुआ, अपने शासन−काल के लगभग अन्तिम 25 वर्ष तक इसी अभियान में व्यस्त रहा। उसकी मृत्यु महाराष्ट्र के अहमदनगर में 23 मार्च सन 1707 ई. में हो गई। उसकी इच्छा के ही मुताबिक दौलताबाद में स्थित फकीर सैय्यद जैनुद्दीन सिराजी रहमतुल्लाह की कब्र के अहाते में उसे दफना दिया गया। हालाँकि उसकी नीति ने इतने विरोधी पैदा कर दिये थे, जिस कारण मुगल साम्राज्य का अंत ही हो गया। औरगंजेब के बाद दिल्ली सल्तनत दिल्ली के आसपास ही सिमट कर रह गया था।

खुल्ताबाद में औरंगजेब की मजार पर बहुत कम लोग ही पहुँचते हैं। ज्यादातर लोग जो एलोरा या दौलताबाद आते हैं वे लगे हाथ औरंगजेब की मजार पर भी दस्तक देने पहुँच जाते हैं। मजार के पास बाहर इत्र की दुकाने हैं। चूँकि मजार के बगल में फकीर बुरहानुद्दीन (शेख जैनुउद्दीन शिराजी-हक) की कब्र है इसलिए उनकी कब्र पर फूल चढ़ाने वाले और दुआएँ माँगने वाले पहुँचते हैं। अकबर के गुरु सलीम चिश्ती के परिवार से आते थे, हजरत ख्वाजा बुरहानुद्दीन फकीर शेख बुरहानुद्दीन के नाम पर मध्य प्रदेश का बुरहानपुर शहर बसा है।

औरंगजेब की सादगी

कहा जाता है औरंगजेब सादा जीवन जीता था। वह उन सब दुर्गुणों से सर्वत्र मुक्त था, जो आमतौर पर राजाओं में होती है। खाने-पीने, वेश-भूषा और जीवन की सभी-सुविधाओं में वह बेहद संयम बरतता था। प्रशासन के कार्यों में व्यस्त रहते हुए भी वह अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए टोपियाँ सीकर कुछ पैसा कमाने का समय निकाल लेता था। औरंगजेब पर नई दृष्टि से बात करने वाले इतिहासकार कहते हैं कि उसने सिर्फ उन्ही मन्दिरों को तोड़वाया जहाँ से उसे भ्रष्टाचार की शिकायतें मिलीं। उसने अपने जीवन में कई मन्दिरों को दान भी दिया था। 

(देश मंथन, 01 मई 2015)

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें