बड़ी कुर्सी और बड़ा आदमी!

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डॉ वेद प्रताप वैदिक, राजनीतिक विश्लेषक :

प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी रोज ही एक-दो काम ऐसे कर रहे हैं कि जिनकी सराहना किए बिना नहीं रहा जा सकता। मोदी का निर्देश था कि मंत्री और सांसद अपने रिश्तेदारों को निजी सहायक बनाना बंद करें। इस निर्देश का तत्काल असर हुआ।

बाराबंकी की सांसद प्रियंका सिंह रावत ने अपने पिता की प्रतिनिधि के तौर पर जो नियुक्ति की थी, उसे रद्द कर दिया। अब बताइये, किसकी हिम्मत पड़ेगी कि वह उस आदेश का उल्लंघन करेगा।

इसके साथ ही प्रधानमंत्री मोदी ने एक और अनुपम उदाहरण उपस्थित किया है। उन्होंने उनकी जीवनी को पाठ्यक्रमों में जोड़ने का विरोध किया है। कई भाजपा-शासित राज्यों के बच्चों की पाठ्य-पुस्तकों में मोदी की जीवनी जोड़ने का सुझाव इसलिए परवान चढ़ रहा था कि उससे बच्चों में उत्साह और प्रेरणा का संचार होता। एक चाय बेचने वाला बड़ा होकर भारत का प्रधानमंत्री बन सकता है, यह बात अपने आप में असाधारण है लेकिन मुझे खुशी है कि मोदी ने इस तथ्य के बावजूद बच्चों को अपनी जीवनी पढ़ाने का विरोध किया है। सचमुच, नरेंद्र भाई के लिए मेरे दिल में सम्मान बढ़ा है। इस बात से पता चलता है कि वे उथले आदमी नहीं हैं। उनमें कुछ गहराई है। कई नेता अपनी जीवनियाँ अपने प्राँत के छात्रों पर खुद लदवा देते हैं और कहते हैं कि मोदी ने कौनसा तीर मारा है? वह चाय बेचता था तो हम भैंस चराते थे और दूध बेचते थे। लेकिन ये भोले नेता यह क्यों नहीं समझते कि उनके जैसे हजारों-लाखों लोग भारत में हैं। यह उनका भाग्य है कि वे मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री बन गये। वे अभी सेवा-निवृत्त भी नहीं हुए हैं। पता नहीं, उनके भाग्य में आगे क्या बदा है? मुख्यमंत्री जी तो ऐसे दो-तीन हो चुके हैं, जो जेल की हवा खा रहे हैं और देश की न्याय-व्यवस्था कठोर होती तो कई प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री रिश्वतखोरी, हत्या, ठगी, व्याभिचार आदि के अपराधियों की तरह सीखचों के पीछे होते। उनकी जीवनियाँ बच्चों को पढ़ाना, ऐसा ही होता जैसे हिरनों पर घास लादना। मोदी ने ठीक ही कहा है कि जीवित नेताओं की जीवनियाँ न पढ़ाई जायें। इसके अलावा हम यह न भूलें कि बड़ी कुर्सी पर बैठना और बड़ा आदमी होना- ये दो अलग-अलग बाते हैं। गांधी, जयप्रकाश और लोहिया तो किसी कुर्सी पर नहीं बैठे लेकिन क्या कुर्सी पर बैठा कोई भी आदमी इनसे बड़ा हुआ है?

मोदी ने भी इधर कोई ‘बड़प्पन’ नहीं दिखाया। उन्हें उनके साथी भी कल तक अहंकारी कहते थे लेकिन भाजपा के कार्यकर्ताओं के बीच उन्होंने क्या कहा? यही कि प्रधानमंत्री से भी बड़ा है, कार्यकर्ता! कार्यकर्ताओं के दम पर ही उन्होंने चुनाव जीता है और वे ही भारत को 21 वीं सदी की महाशक्ति बनायेंगे। यदि मोदी ने यही नम्रता बनाये रखी तो वे सचमुच बड़े आदमी बन जायेंगे। प्रधानमंत्री तो वे बन ही गये हैं, अब वे उस रास्ते पर चल पड़े हैं, जिस पर महाजन (बड़े आदमी) चलते हैं।

(देश मंथन, 03 जून 2014)

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