मोदी के मुकाबले एक बेहतर मोदी

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डॉ वेद प्रताप वैदिक, राजनीतिक विश्लेषक :

नरेंद्र मोदी ने किसी टीवी चैनल पर यह जो कहा कि उनकी सरकार प्रतिशोध की भावना से काम नहीं करेगी, यह अपने आप में बड़ी बात है।

अभी-अभी किसी अन्य भाजपा नेता ने कह दिया था कि प्रियंका के पति राबर्ट वाड्रा को जेल जाना होगा। इस घोषणा के बाद आया मोदी का यह बयान कई बातों की ओर संकेत करता है।

सबसे पहली बात यह कि भाजपा के नेताओं को यह आत्म-विश्वास हो चुका है कि वे सत्तारुढ़ हो रहे हैं। इसीलिए वे ऐसे बयान दे रहे हैं। इसमें शक नहीं कि इस समय देश में मोदी की लहर इतनी तगड़ी है कि 1971 की इंदिराजी की गरीबी हटाओ की लहर भी नहीं थी। यह लहर नहीं, नशा है। लेकिन इस नशे में होश-ओ-हवास गुम न हों, यह ज्यादा जरुरी है। यदि अभी से भाजपा नेता बदले की भावना से भर उठे तो सत्तारुढ़ होने के बाद पता नहीं क्या होगा। ऐसे में मोदी का आश्वासन संभावित घाव पर मरहम का काम करेगा। इसका दूसरा पहलू भी है। आम चुनाव पूरे होने में अभी एक महिना बाकी है। यदि भाजपा नेता अति-आत्म-विश्वासग्रस्त हो गए तो उन्हें इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। 2004 में ‘इंडिया शाइनिंग’ अभियान के दौरान ऐसा ही हुआ था।

मोदी के उक्त उदारतापूर्ण बयान का दूसरे सबसे बड़ा संकेत यह है कि उनकी अपनी छवि सुधर रही है। जो लोग मोदी पर तानाशाही, क्रूरता, दादागीरी आदि के आरोप लगा रहे हैं, उन्हें अपने आप हाशिए में खिसकना पड़ रहा है। मोदी ने कहा है कि वे खुद 12 साल से बदले की राजनीति के शिकार हो रहे हैं। उन्हें मौत का सौदागर, थोक-हत्यारा और अल्पसंख्यकों का पैदाइशी दुश्मन कहा जाता रहा है। वे इस प्रतिशोध की राजनीति के भुक्तभोगी हैं। वे जिस पीड़ा से गुजरे हैं, वह वे दूसरों पर क्यों लादेंगे? मोदी ने यह भी कहा कि अल्पसंख्यकों को बेवकूफ बनाने की राजनीति में वे विश्वास नहीं करते। इस्लामी टोपी पहनने की नौटंकी करने से क्या कोई मुसलमानों का शुभचिंतक बन जाता है। उन्होंने कहा कि वे गुजरात के दंगों के लिए दोषी हों तो उन्हें चैराहे पर फांसी दी जाए। अभी तमिलनाडु में उनकी जो महती जनसभा हुई, उसमें उनके भाषण का अनुवाद भाजपा की मुस्लिम महिला-कार्यकत्र्ता ने किया। उन्होंने यह आशा भी जताई कि वे जब बनारस के मुस्लिमों से मिलेंगे तो वे उन्हें प्यार करने लगेंगे। यहां मुझे मोदी जरुरत से ज्यादा आशावादी दिखाई पड़ रहे हैं लेकिन उनका ऐसा कहना ही उनके व्यक्तित्व के विकसित होने का प्रमाण है।

इधर नरेंद्र मोदी ने दो-तीन चैनलों को जो भेंट दी है, उनके बारे में आरोप लगाया जा रहा है कि वे सब प्रायोजित हैं। कई बार सिर्फ आयोजित चीज़ें भी प्रायोजित की तरह दिखने लगती हैं लेकिन वे प्रायोजित भी हों तो उनमें बुरा क्या है? आप जिस मोदी को अब तक जानते थे, उसके मुकाबले क्या आप एक बेहतर मोदी को पाकर खुश नहीं हैं?

(देश मंथन, 18 अप्रैल 2014)

 

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