नियंत्रण रेखा पर छह दिन : आँखों-देखी

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विवेक कुमार भट्ट, चैनल प्रमुख, संदेश :

नियंत्रण रेखा (एलओसी) पार कर 40 आतंकवादी जम्मू कश्मीर में घुसे… पिछले कुछ दिनों मे 50 बार गोलीबारी हुई है, 20 जवान घायल हुए हैं और 4 जवानों ने जान गँवायी है।

पिछले कुछ दिनों में सीमा पार पाकिस्तान से युद्धविराम का जो उल्लंघन हो रहा था, उसका नतीजा आज सामने आया है। फिर भी पाकिस्तान के उच्चायुक्त दिल्ली मे सीना ठोक कर कहते हैं कि हम शांति चाहते हैं। मैने 6 अगस्त से 14 अगस्त के बीच का समय नियंत्रण रेखा पर बिताया है। पाकिस्तान की हर नापाक हरकत को देखा है, आपके साथ हर वो लम्हा साझा कर रहा हूँ जो मैने वहाँ देखा है।

भारत और पाकिस्तान दुनिया के दो ऐसे मुल्क हैं, जिनके बीच पिछले 68 सालों से ऐसी दुश्मनी है जिसका कभी खत्म होना मुमकिन नहीं है। कई समझौते हुए, कई द्विपक्षीय वार्ताएँ हुईं, कई वादे हुए, कई सरकारें आयीं और बदल गयीं, दोनों देशो के कई प्रधानमंत्रियों ने दुनिया के सामने हाथ मिलाया और एक-दूसरे को गले लगाया। लेकिन यह सब दिखावे से ज्यादा कुछ नही है। ताली दो हाथों से बजती है। इसलिए दोनों देशो के बीच किसी मुद्दे का हल निकलना तभी संभव है, जब दोनों पक्ष तहेदिल से राजी हों। मुद्दा एक ही है, वो है कश्मीर।

कश्मीर

कश्मीर – दुनिया की सबसे सुंदर जगहों में से एक। इसे जन्नत कहते हैं। हिमालय की गोद मे बसा कश्मीर। ऊँची-ऊँची पर्वत श्रृंखलाएँ।  झरनों और नदियों से भरपूर। इसे भारत का मस्तक कहते हैं। यह भारत की इज्जत है और भारतवासियों को इस पर गर्व है। लेकिन इस पर पाकिस्तान की नापाक नजर है। यहाँ फूलों पर मँडराते भँवरो के गुनगुनाने की,  झरनों के बहने की और ठंडी हवा के झोंको की मधुर आवाजें कम और गोला-बारूद की आवाजें ज्यादा आती हैं।

भारत के इस अटूट गौरव को बनाये रखने के लिए यहाँ हर रोज एक जंग लड़ी जाती है। हमारे जवान मरते दम तक कोशिश करते हैं कि इसे कोई आँच ना आये। यह रणबाँकुरो की शहादत की भूमि है। कश्मीर में 740 किलोमीटर लंबी नियंत्रण रेखा (लाइन ऑफ कंट्रोल या एलओसी) है। पाकिस्तान पहले ही भारत का एक महत्वपूर्ण भाग आजाद कश्मीर के नाम पर ले चुका है, जिसे पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) कहते हैं। लेकिन पाकिस्तान हमेशा पूरा कश्मीर पाने के लिए बेताब रहता है। वह खूबसूरत कश्मीर, जो भारत का न केवल एक अभिन्न अंग है, बल्कि देश का ताज है, देश का गौरव है। कश्मीर स्वर्ग है, लेकिन आंतकियों ने इसे नरक बनाने की ठान रखी है। इतिहास गवाह है कि जब-जब सरहद पर जंग छिड़ी है, तब-तब दोनों देशों की सेना ने दुनिया को हैरत में डाल देने वाली लड़ाइयाँ लड़ी हैं। भले वह 1965 हो, 1971 हो या 1999 का करगिल युद्ध, हर बार पाकिस्तान को मुँह की खानी पड़ी है। नियंत्रण रेखा पर लश्कर-ए-तैय्यबा और हिजबुल मुजाहिद्दीन के अलावा 18 और आतंकवादी संगठन हैं, जिनके आतंकी रोज सीमा पार करने के लिए तैयार हैं। जेहाद के नाम पर ब्रेन वाश किये गये गरीब पाकिस्तानी युवाओं का इस्तेमाल कर इन्हें भारत के खिलाफ जंग लड़ने को तैयार किया जा रहा है।

आज जम्मू कश्मीर भारत का अंग है तो उसका श्रेय सिर्फ भारतीय सेना और बीएसएफ के जांबाज जवानों को जाता है। रही बात पाकिस्तानी फौज और आंतकियों की, तो भारतीय सेना और बीएसएफ के सिपाहियों के सामने उनका टिक पाना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है। वैसे तो भारत की हर सीमा पर बीएसएफ तैनात है और सेना युद्ध के लिए हमेशा अपनी बटालियन के साथ सीमा से कुछ दूरी पर स्थित कैंपों में तत्पर रहती है, लेकिन कश्मीर के हालात और पाकिस्तान के द्वारा बार-बार कश्मीर पर अधिपत्य जमाने की नापाक कोशिशों और आंतकियों की दहशत को देखते हुए कश्मीर की घाटियों में भारतीय सेना और बीएसएफ ने मिल कर मोर्चा संभाल रखा है। सेना और बीएसएफ के जवान दिन-रात अपने फर्ज पर डटे रहते हैं। भले बरसात हो, बर्फ गिर रही हो, -40 डिग्री का तापमान क्यूँ ना हो या फिर कड़कती धूप हो या रात के स्याह अंधेरे में दुश्मन पर कड़ी निगाह रखनी हो, हमारे जवानों ने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा। इन्हीं जवानों के साथ छह दिन रह कर नियंत्रण रेखा से संदेश न्यूज ने ग्रांउड जीरो रिपोर्ट तैयार की है।

जिस दिन हम एलओसी पहुँचे, उसी दिन से कान में गोलियों की आवाजें गूंज रही थीं। पुंछ, मेंढर, आरएसपुरा और सांबा, बी जी टोप, नूरी में लगातार गोलियाँ चल रही थीं। राजदान के नजदीक पाकिस्तानी पोस्ट मस्जिद 1 से तो स्नाइफर फायर किया गया। श्रीनगर जम्मू हाइवे पर पाम्पोर के नजदीक बीएसएफ के दस्ते पर फिदाइन हमला हुआ। इस हमले के ठीक पहले हम इसी रास्ते से निकले थे। जैसे ही रात होती है, यहाँ एमएमजी और मोर्टार से गोलीबारी शुरू हो जाती है।

कश्मीर में इन्हीं हालात में जवानों से मिलने हम पहुँचे धरती से 13000 फुट ऊपर उन जगहों पर, जहाँ एक पल भी रहना बेहद मुश्किल है। जम्मू कश्मीर पर्यटन केंद्र है, लोग यहाँ आते हैं बेखौफ होकर, लेकिन महज कुछ दिनों के लिए कुछ चुनिंदा जगहों पर। यदि किसी व्यक्ति को अंदरुनी जगहों पर और ऐसे शहरों मे रहना पड़े जो पर्यटन स्थल नहीं है, तो उसे लगेगा कि वह किसी दूसरे देश मे आ गया है। एक अजीब-सा खौफ महसूस होता है। वैसे है तो यह हमारा ही देश, लेकिन हालात ने इसे छावनी में तब्दील कर दिया है। हर एक मीटर की दूरी पर फौज का एक जवान जरूर दिखेगा। पूरे दिन शहर में गश्त, वह भी बुलेटप्रुफ गाड़ी में। कभी भी, कहीं भी आईडी का या फिदाइन हमले का खतरा बना रहता है।

अब हम वहाँ के हालात बयां करते हैं, जहाँ हमारे जवान पाकिस्तान आतंकवाद की फैक्ट्री से एकदम ताजा, युवा, प्रशिक्षित आतंकवादियों से लोहा लेते हैं। हर रोज लगभग सारे पोस्ट के पास फायरिंग और गोलाबारी चल रही है। चालाक पाकिस्तान की तरकीबें देखिए। वह सीधे पोस्ट पर और कभी पोस्ट के आसपास भारी मात्रा मे गोलियाँ बरसा कर एक तरह से भारत के जवानों को उकसाता है। पाकिस्तान बड़ी बेफिक्री से युद्धविराम का उल्लंघन करता है।

साल 2013 में 200 से ज्यादा बड़े उल्लघंन हुए हैं। इसके अलावा विभिन्न आंतकवादी गतिविधियों मे 100 आतंकी मारे गये, भारतीय सुरक्षा बलों के 61 जवान शहीद हुए और 20 निर्दोष लोगों की जानें गयीं। साल 2014 मे अब तक 50 से ज्यादा बार युद्धविराम का उल्लघंन हुआ है। आंतकी गतिविधियों में अब तक 23 शहीद हुए, 10 निर्दोषों की जानें गयीं और 57 आतंकियों को मार गिराया गया है। हर बार हमारे जवान उन्हें करारा जवाब भी देते हैं। अभी भी जम्मू कश्मीर में 30 से ज्यादा फिदाइन आतंकवादी छिपे हुए हैं। बीएसएफ की एक और पलटन पर 16 अगस्त को हमला हुआ, जिसमें दो जवान शहीद हुए हैं। आखिर पाकिस्तान ऐसी हरकतें क्यों करता है? इसके दो जवाब हैं। वह गोलीबारी कर भारतीय फौज का ध्यान भटकाता है जिससे आंतकवादियों को घुसपैठ करने का मौका मिले। घने जंगलों में नदी-नाले और कई ऐसी जगहें हैं, जहाँ से घुसपैठ अक्सर होती है। अब इतने बड़े क्षेत्र में, जहाँ मौसम का कोई ठिकाना नहीं होता, जहाँ कोहरा घंटों तक नहीं साफ होता, उस वक्त इनमें से दो-चार-दस आतंकवादी सीमा पार कर चले आते हैं। लेकिन हमारी फौज घुसपैठ की 1000 कोशिशों में से 998 तक को नाकामयाब कर ही देती है। सीमा पार से आंतकवादियों की घुसपैठ पुरी तरह रोक पाना नामुमकिन है, यह बात पाकिस्तान भी जानता है। दूसरा कारण यह है कि उसे इस बात का हमेशा डर रहता है कि कहीं भारतीय फौज हमला ना कर दे। इसी वजह से वह बार-बार जताने की कोशिश करता है कि हम हैं यहाँ।

हमारी सेना और बीएसएफ ने भी इनके लिए तगड़ी रणनीति बना रखी है। खूब मेहनत और दिलेरी से अपना फर्ज निभाते हैं हमारे जवान। नीचे जंगलों मे मुकाबले की कारवाई होती है तो उपर बंकरों से निगरानी उपकरणों से काम होता है। थर्मल इमेजिंग डिवाइस से आप कई किलोमीटर दूर रात में भी होती हुई हरकतें देख सकते हैं। हमारे उपकरण इतने उम्दा हैं कि हम पाकिस्तान की निकट वाली चौकियों की हर हरकत को कैद करते हैं। लेकिन कुहासे में ये भी लाचार हैं। हमारे पास इंटरसेप्टर हैं, जिनसे उनकी बातों को टेप किया जाता है। नीचे गश्त लगाने वाले या किसी खुफिया सूचना पर काम करने वाले जवानों की तगडी टीम होती है। लेकिन ऐसे में आंतकवादियों का जाल होने का भी खतरा रहता है। बहुत सावधानी से चलना होता है, क्योंकि पग-पग पर बारूदी सुरंगें बिछी होने का खतरा होता है। बहुत ही चौकन्ने रहते हैं ये जवान। फौज में बड्डी पेयर यानी दो साथियों के जोड़े में काम चलता है। ऐसे अभियान चलाना हर किसी के बस में नहीं है। कश्मीर की घाटियों में ऐसे अभियान वही कर सकता है, जिसने सीबीएस सरोल में प्रशिक्षण लिया हो। जम्मू कश्मीर में जिस बटालियन की पोस्टिंग होती है, उसे यहाँ कड़ा प्रशिक्षण लेना ही पड़ता है। यहाँ इन्हें वो सारी बातें सिखायी जाती हैं, जो उन्हें इन खतरनाक घाटियों में न केवल जिंदा रहने के लिए चाहिए, बल्कि दुश्मन को भगाने का सामर्थ्य भी यहाँ दिया जाता है। यह केवल शारीरिक प्रशिक्षण की बात नहीं है। मानसिक रूप से ऐसी खतरनाक जगहों मे काम करने का प्रशिक्षण भी दिया जाता है। अपने परिवार से दूर, बिना किसी से फोन पर भी बातचीत किये, लगातार खतरों से लड़ने वाले इन जवानों को मानसिक तौर पर तैयार करना बेहद मुश्किल है।

सुबह चार बजे से रात के आठ बजे तक जवानों को कड़ा प्रशिक्षण दिया जाता है। पाँच किलोमीटर की लंबी दौड़, 18 बाधाओं का कोर्स, गुप्तचर सेवा के व्याख्यान, बारूदी सुरंगों और विष्फोटकों की जानकारी, गोलीबारी, रात में गोलीबारी, मुकाबला और गोली चला कर हटने का प्रशिक्षण अहम है। यहाँ कोई नयी भर्ती नहीं होती। इन्हें फौज मे आये कई साल हो चुके हैं, लेकिन इन्हें जम्मू काश्मीर में फर्ज निभाना है तो अलग से यह सब करना होगा। यह सब उनके लिए बेहद जरूरी है। दुश्मन के यहाँ आतंक की फैक्ट्री चल रही है।

वहँ भी ऐसा प्रशिक्षण आतंकियों को दिया जा रहा है। ऐसे में उनसे दो-दो हाथ करने हैं तो यह जरूरी है। जवानों के लिए यह प्रशिक्षण किसी अमृत से कम नहीं। नियंत्रण रेखा पर 530 किलोमीटर लंबी बाड़ जरूर लगायी गयी है, पर इस बाड़ के आगे भी भारत के ही कई गाँव हैं। इनका लेखा-जोखा सेना के पास है। इनके दरवाजों पर बड़ा तगड़ा प्रबंध होता है। जो लोग बाड़ के उस पार रहते हैं, सेना उनकी पूरी मदद करती है, उनके लिए दरवाजे खोले जाते हैं, उनके लिए परिचय पत्र है और बायोमीट्रेक पहचान की सुविधा भी है। दोनों देशों के पड़ोसी गाँवों मे रिश्तेदारियाँ हैं, लिहाजा पूरी तरह अंकुश लगाना भी बहुत मुश्किल है। बाड़ के उस पार कोई सुविधा नही है। लिहाजा गाँव वाले अपने पशुओ को चराने और सामान वगैरह लेने के लिए इस पार आते हैं। यहाँ सीमा पार से कभी भी गोलियाँ चल सकती हैं। सामने पाकिस्तानी चौकी बहुत नजदीक है। जगह-जगह दरवाजे बने हुए हैं। बारिश के मौसम में यहाँ जम कर कीचड़ हो जाता है। वाहनों की आवाजाही ठप्प हो जाती है। हमारी दोनों गाडियाँ लगभग 3 घंटे तक फँसी रहीं।

वंदे मातरम के बदले जीव जीव पाकिस्तान क्यों?

हम बी जी पोस्ट पर जा रहे थे, लेकिन जब गाड़ी में हमने रेडियो चालू किया तो हम दंग रह गये। हिंदुस्तान में हिंदुस्तानी रेडियो फ्रिकवेंसी पर चल रहा है पाकिस्तानी एफ एम 93.5, गाने पाक के समाचार पाक का। यह बड़ी चिंता की बात है। सीमा के पास रहने वाले लोग सिर्फ इसी का इस्तेमाल करते हैं। आखिर कैसे जगेगी उनमें भारत के प्रति इज्जत? यह एक बड़ा सवाल है। भारत के मंत्रियों की सुरक्षा के लिए जैमर है, लेकिन देश की सुरक्षा का क्या? यहाँ मोबाइल का नेटवर्क नहीं मिलता है, लेकिन पाकिस्तान का सिम कार्ड हो तो कई नेटवर्क मिल जायेंगे – वारिद टेलीकॉम, जोंग, टेलिनॉर, यूफोन टेलीकॉम। अब हम सेना के बंकरों में जा रहे हैं, जहाँ से पाकिस्तान की हर हरकत पर नजर रखी जाती है। यहाँ हर तरह के हथियार और सुविधाओं से सज्जित हैं हमारे जवान। अब हम सेना की एक और चौकी पर जा रहे थे। यह चौकी पाकिस्तान से सबसे करीब है और यहाँ अक्सर हमले होते रहते हैं। हम बाड़ को पार कर रहे हैं।

अब भारत और पाकिस्तान के बीच अगर कोई आड़ है तो सेना की ये आखिरी चौकी। यहाँ हमें लगभग पाँच किलोमीटर पैदल यात्रा करनी पड़ी। एकदम ऊपर पहाड़ी के उस पार है सेना की यह चौकी। हम यहाँ के कमांडिंग ऑफिसर से मिले, जिन्होंने हमे पाकिस्तान की वह चौकी दिखायी जहाँ से अक्सर हरकतें होती हैं। रात के स्याह अंधेरे में सेना का सबसे अच्छा साथी है थर्मल इमेजिंग सर्विलांस सेंटर। यहाँ से सब कुछ साफ नजर आता है कि कुछ हरकत हो रही है। लिहाजा रात की गश्त और सर्च ऑपरेशन के लिए टीम तैयार होती है और फिर अभियान शुरू हो जाता है। इस चौकी के चारों तरफ सेंसर लगे हैं। यदि कोई भी व्यक्ति इनके सामने से गुजर जाये तो सायरन बजना शुरू हो जाता है। अब हम जा रहे हैं नंगी टेकरी के कृष्णा चोटी पर, जहाँ पिछले साल पाकिस्तान ने जम कर गोले बरसाये थे। सेना का निगरानी केंद्र यहाँ बड़ा तगड़ा है। गुप्तचर सूचनाएँ यहाँ मिलती हैं। सैटफोन रेडियो फ्रीक्वेंसी इंटरसेप्टर भी है। यहाँ पर सब कुछ एक दम सही और सटीक तरीके से हो रहा है। यहाँ एक गोली एक दुश्मन की व्यवस्था है। शार्प शूटर हैं यहाँ। स्नाइफर यहाँ हमेशा सचेत होते हैं।

अब हम आपको सेना की एनिमल ट्रासपोर्ट विंग से मिलवाते हैं। यह विंग दूर जंगलों में बनी उन चौकियों तक रसद सामग्री पहुँचाती है, जहाँ कोई सड़क नहीं है। बस सेना के इन घोडों पर सामान लाद कर ले जाया जाता है। जगह-जगह बारूदी सुरंगें बिछी हुई हैं, लिहाजा बहुत सँभल कर जाना होता है। एलओसी पर सेना के सबसे अच्छे और तगड़े साथी बीएसएफ की बात करें, तो यहाँ बीएसएफ का सामना रोज ही पाकिस्तानी रेंजरो से होता है। सबसे आगे यही सुरक्षा बल है। पाकिस्तान की एक गोली का जवाब ये 10 गोलियों से देते हैं।

सर्दियों में मुश्किल जीवन

जमीन से 13,000 फुट ऊपर की जिंदगी बड़ी कठिन है। सर्दियों मे बर्फ 40 फुट तक जम जाती है। चौकी से 6-7 महीने कोई संपर्क नही होता है। हेलिकॉप्टर भी उड़ने के लिए तैयार नहीं होता। सीमा के नजदीक हेलिकॉप्टर के इस्तेमाल पर रोक है। बर्फ को पिघला कर पानी पिया जाता है। पानी ऊपर 14,000 फीट पर नहीं मिलता। रास्ते बहुत खतरनाक और कच्चे हैं। अगर एक गलती हुई तो समझो गये 10,000 फुट गहरी खाई में। ऐसे हादसे यहाँ हो चुके हैं, जिनमें जवानों की मौत हुई है। दिल दहला देने वाली सबसे बड़ी बात यह है कि यदि इन खाइयों में कोई जवान गिर गया तो समझें कि उसकी लाश मिलने में छह महीने भी लग सकते हैं या फिर हो सकता है कि मिले ही नहीं। इतनी ऊँचाई पर साँस लेने में भी बड़ी दिक्कत आती है। दिमाग भी कम काम करने लगता है।

फर्ज पहले, परिवार बाद में

अब हम आपको ट्रेगबल चौकी पर तैनात एक जवान की बात बताते हैं। राखी का दिन था और उसके घर से फोन पर खबर आयी कि इकलौती बहन के घर एक हादसा हो गया है। जवान टूट गया था। वह चाहता तो छुट्टी ले सकता था, लेकिन अपने फर्ज के प्रति उसकी ईमानदारी देखिये। उसे पता है कि 15 अगस्त आने वाला है, हाई अलर्ट है और लगातार पाकिस्तान फायरिंग कर रहा है। ऐसे मे वह घर से ज्यादा अपने कर्तव्य को प्राथमिकता देता है। कश्मीर फ्रंटियर हेडक्वार्टर में पहुँचते ही उस वक्त आँखें नम हो जाती हैं, जब आप शहीद स्मारक देखते हैं। पिछले 14 सालों मे सिर्फ बीएसएफ के 728 से ज्यादा जवानों ने अपनी शहादत दी है और करीब 3,500 जवान घायल हुए हैं। लेकिन यहाँ एक वाक्य लिखा हुआ है, जिसे पढ़ कर हमें यकीन है कि देश का हर व्यक्ति बीएसएफ पर गर्व करेगा। यहाँ लिखा है कि “आपके कल के भविष्य के लिए हमने हमारा आज दे दिया है।” सरहद पर जवान जागते हैं, तब हम यहाँ चैन की नींद सोते हैं। हमारे जवानों की ताकत का अंदाजा पाकिस्तान को नहीं है। वह सेर है तो हमारी फौज सवा सेर। हर बार औंधे मुँह गिरता है, लेकिन पता नहीं कब सुधरेगा नापाक पाकिस्तान। जय हिंद।

(देश मंथन, 21 अगस्त 2014)

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