कश्मीर पर मेरे कहे को पहले समझें तो सही!

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डॉ वेद प्रताप वैदिक, राजनीतिक विश्लेषक :

पहले हाफिज सईद से मेरी मुलाकात पर संसद में हंगामा हुआ और फिर कश्मीर पर मेरे विचारों को लेकर। मुझे दुख है कि हमारे नेताओं ने इन दोनों मुद्दों पर ठंडे दिमाग से क्यों नहीं सोचा?

वे कुछ अनैतिक टीवी चैनलों के कुप्रचार के शिकार क्यों बन गये? आज तक दुनिया के किसी भी देश की संसद किसी पत्रकार या विशेषज्ञ की मुलाकात पर कभी इस तरह ठप नहीं हुई। देश के अनेक नामी-गिरामी, अनुभवी और विद्वान पत्रकारों (ज्यादातर अंग्रेजीवालों) ने ‘सईद-वैदिक’ मुलाकात के बारे में मेरा इतना तगड़ा समर्थन कर दिया है कि अब मुझे उस विषय में कुछ कहना बाकी नहीं रह गया है। उन के लेखों के लिए आप मेरा वेबसाइट देखने का कष्ट करें। देश के कोने-कोने से आये हजारों ईमेल, व्हाट्स आप, एसएमएस और फोन-कालों के लिए सभी बुद्धिमान राष्ट्रभक्तों का मैं हृदय से आभारी हूँ।

अब इस लेख में मैं आपसे कश्मीर के बारे में बात करुँगा। 27 जून को इस्लामाबाद में ‘डॉन’ टीवी के एक पत्रकार इफ्तिखार शीराजी ने मुझे इंटरव्यू किया। यह इंटरव्यू न तो भारतीय उच्चायोग ने तय करवाया और न ही पाकिस्तान के किसी नेता या अधिकारी ने, बिल्कुल वैसे ही जैसे कि 2 जुलाई को हाफिज सईद के साथ हुआ। पिछले साल मई में लगभग 15 पाकिस्तानी चैनलों ने मुझे इंटरव्यू किया था। इस बार आंतरिक उथल-पुथल की वजह से मीडिया का सारा ध्यान लाहौर के हत्याकांड और आतंकवाद-विरोधी फौजी अभियान पर लगा रहा। फिर भी मेरे आधा दर्जन से अधिक इंटरव्यू हुए। पड़ोसी देशों के पत्रकार और नेता मुझे इतने लंबे समय से जानते हैं कि उनसे मिलने-जुलने के लिए मुझे किसी सरकारी सहायता की जरुरत नहीं होती।

‘डॉन’ का यह इंटरव्यू लगभग आधा घंटा चला, जिसमें भारत-पाक संबंध, दक्षिण एशियाई राष्ट्रों के महासंघ, कश्मीर, नरेंद्र मोदी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और मोहन भागवत जी के बारे में बात हुई। यह मूल इंटरव्यू इंटरनेट और यू-ट्यूब पर उपलब्ध है। मेरे ‘वेबसाइट’ पर आप इसे देख सकते हैं। अब श्रोता-दर्शक स्वयं तय करें कि मैं राष्ट्रदोही हूँ या राष्ट्रभक्त हूँ। यदि मैंने यह कहा हो कि कश्मीर को भारत से अलग कर के एक स्वतंत्र राष्ट्र बनाना चाहिए तो मैं खुद सूली पर लटकने के लिए तैयार हूँ।

मैंने कश्मीर को स्वतंत्र राष्ट्र बनाने का जितना तगड़ा विरोध किया है और अपने विचार के समर्थन में जैसे अकाट्य तर्क मैंने दिए हैं, क्या आज तक भारत का कोई प्रधानमंत्री कोई विदेश मंत्री, कोई राजदूत पाकिस्तान में बैठकर खुले-आम दे सका है? ऐसे तर्क भारत में बैठकर तो आप दे सकते हैं लेकिन पाकिस्तानी टीवी पर क्या आज तक किसी भारतीय ने वह हिम्मत की है, जो इस मामूली बुड्ढे खूसट हिंदी पत्रकार ने की है? यह हिम्मत उसने इसलिए की कि उसके बारे में सभी पड़ोसी देशों के लोग जानते हैं कि वह किसी देश का बुरा नहीं चाहता। वह दक्षिण एशिया के सभी देशों को जोड़कर एक महासंघ खड़ा करना चाहता है, जो कि यूरोपीय महासंघ से भी बेहतर हो। मैंने अपना वह इंटरव्यू आज फिर सुना। मुझे गर्व हुआ। इतने अच्छे और सीधे प्रश्न शीराजी ने पूछे और उन प्रश्नों से ऐसे उत्तर मेरे मुँह से निकले हैं, जो न केवल कश्मीर समस्या हल कर सकते हैं बल्कि इस प्राचीन आर्यावत्त (दक्षिण एशिया) को दुनिया का सबसे शांतिपूर्ण और समृद्ध इलाका बना सकते हैं। वह इंटरव्यू सुनकर एक 92 वर्षीय प्रसिद्ध पाकिस्तानी नेता, जो जुल्फिकार अली भुट्टो के साथी रहे हैं, ने मुझे लाहौर में कहा कि ‘प्रधानमंत्री तो हर मुल्क में है लेकिन दक्षिण एशिया में डॉ. वैदिक कितने हैं?’ इस अतिरेक से भरे वाक्य को शायद मैं भूल ही जाता लेकिन मुझे राष्ट्रद्रोही कहने वाले मित्रों ने मजबूर कर दिया कि मैं इसे उद्धृत करूँ। उनके अज्ञान से पैदा हुए उक्त आरोप पर मुझे रोष नहीं है बल्कि अफसोस है।

उस इंटरव्यू के दो तीन-वाक्यों को काट-छांटकर अंग्रेजी के एक विख्यात चैनल ने मेरे खिलाफ प्रचार शुरू कर दिया। क्यों कर दिया? क्योंकि उसके उस अहंकारी और आत्ममुग्ध एंकर को मुझे बुरी तरह से डांटना पड़ा। उस एंकर के फूहड़पन से कई नेता और विद्वान पहले से परेशान रहते थे लेकिन उनकी मजबूरी थी कि वे कुछ बोल नहीं पाते थे। मुझे भी किसी को डांटना अच्छा नहीं लगता लेकिन उस एंकर ने फूहड़पन की पराकाष्ठा कर दी थी। मेरे पास सैकड़ों ईमेल, व्हाटसाप, फोन-काल आदि उसकी भत्र्सना करते हुए आये। शायद उस एंकर का कोई दोष न हो। हो सकता है कि वह नीम-हकीम हो। अर्धशिक्षित हो। वह सिर्फ अंग्रेजी बोलना जानता हो। उसे हिंदी या उर्दू ठीक से समझ में न आती हो। उसने मेरे हिंदी-उर्दू के इंटरव्यू को गलत-सलत समझा और वैसा ही दुनिया के सामने पेश कर दिया। उसकी इस कमजोरी ने उसे और उसके चैनल को निराधार और अनैतिक बातें कहने के लिए मजबूर कर दिया हो। कई अन्य कम लोकप्रिय चैनलों ने उसकी नकल करना शुरू कर दिया। अपनी टीआरपी बढ़ाने के चक्कर में उन्होंने हमारी माननीय संसद और देश को गुमराह कर दिया। लेकिन उनके इस कृत्य से सारे टीवी चैनलों के विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न लग गया है।

उस अंग्रेजी चैनल ने यह कहना शुरू कर दिया कि मैंने कश्मीर को आजाद कर देने या स्वतंत्र राष्ट्र बनाने की बात कही है। जबकि मैंने इसका बिल्कुल उल्टा ही कहा था। मैंने कहा था कि आपका (पाक) कश्मीर भी उसी तरह आजाद होना चाहिए, जैसे कि हमारा कश्मीर है। हर कश्मीरी को वैसी ही आजादी मिलनी चाहिए, जैसी कि मुझे दिल्ली में है और आपको लाहौर में है। कश्मीर को अलग राष्ट्र बनाना भारत, पाकिस्तान और स्वयं कश्मीर के लिए अत्यंत हानिकर होगा। स्वतंत्र राष्ट्र बनकर कश्मीर जिंदा ही नहीं रह सकता। वह अंतरराष्ट्रीय दुरभिसंधियों का अड्डा बन जायेगा। यदि दोनों कश्मीर एक हो जायें और उन्हें सच्ची स्वायत्ता दी जाये, जैसी कि भारत में हर राज्य को है, तो यही कश्मीर शांति और दोस्ती का स्वर्ग बन जायेगा। वह भारत और पाकिस्तान के बीच एक दरार नहीं, सेतु का काम करेगा। यह वही बात है, जो 1964 में अपनी मृत्यु के पहले भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कही थी और जिसे लेकर शेख अब्दुल्ला पाकिस्तान गये थे। यह वही महान समाधान है, जिस पर प्रधानमंत्री अटल जी और मनमोहनसिंह जी काम कर रहे थे और जनरल परवेज मुशर्रफ भी तैयार हो गये थे। इस संबंध में मैंने लाहौर से 30 जून को एक लेख ‘नया इंडिया’ को भेजा था, जो 1 जुलाई को उसके मुखपृष्ठ पर छपा था। उसका शीर्षक था ‘कश्मीर: आजादी हाँ, अलगाव ना’। कृपया वह लेख भी पढ़िए।

मैंने इसे थोड़ा आगे बढ़ाया। डॉन की भेंट-वार्ता में मैंने यह भी कहा कि मैं सिर्फ कश्मीर के बारे में ही नहीं सोच रहा हूँ। मैं पख्तूनिस्तान, ईरान के सीस्तान, चीन के तिब्बत और सिंक्यांग, नागालैंड, मिजोरम, बर्मा के कचेन-करेन, श्रीलंका के तमिल राष्ट्र आदि अनेक अलगाववादी आंदोलनों के बारे में भी सोचता रहा हूँ। पिछले 50 वर्षों के अपने राजनीतिक चिंतन और पत्रकारिता के दौरान इन सब अलगाववादी नेताओं से मेरा घनिष्ट संपर्क रहा है (मेरे साथ उनके चित्र आप मेरी वेबसाइट पर देख सकते हैं)। इन सबका एक ही समाधान है। अपने दक्षिण एशियाई देशों के अब और टुकड़े करने की बजाय उन्हें हमें जोड़ने का काम करना चाहिए और वह होगा दक्षिण एशियाई महासंघ खड़ा करने से।

यह बात मैंने तालकटोरा स्टेडियम के उस भाषण में भी कही थी, जिसमें स्वयं नरेंद्र भाई (प्र.मं. पद के उम्मीदवार) उपस्थित थे। वह भी यू-टयूब पर उपलब्ध है। नरेंद्र मोदी ऐसे पहले भारतीय प्रधानमंत्री हैं, जिन्होंने अपनी शपथ-विधि में पड़ोसी देशों, खासकर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को आमंत्रित किया। मेरे लिए इससे अधिक खुशी के बात क्या हो सकती थी?

जो व्यक्ति एशिया के सभी अलगाववादियों आंदोलनों का विरोधी रहा है, वह भला कश्मीर के अलगावववाद का समर्थन कैसे कर सकता है? सभी अलगाववादी आंदोलनों के बारे में मेरे रवैया घोर राष्ट्रवादी है और सभी दक्षिण एशियाई राष्ट्रों के बारे में महासंघवादी है।

(देश मंथन, 23 जुलाई 2014)

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