भारत-पाक-अफगान त्रिकोण?

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डॉ वेद प्रताप वैदिक, राजनीतिक विश्लेषक :

पाकिस्तान के जितने भी केंद्रीय मंत्रियों, नेताओं, नौकरशाहों, फौजियों और पत्रकारों से रोज मेरी भेंट होती है, उनसे मैं एक सवाल जरूर पूछता हूँ। अफगानिस्तान से छह माह बाद जब अमेरिका की वापसी होगी तो क्या होगा?

कोई शून्य पैदा होगा या नहीं? यदि शून्य पैदा हुआ तो वहाँ अराजकता फैलेगी या नहीं? यदि अराजकता फैलेगी तो किसको ज्यादा नुकसान होगा? भारत को या पाकिस्तान को? इन दोनों देशों को मिलकर उसकी चिंता करनी चाहिए या नहीं?

ज्यादातर लोग मेरे सवालों को सुनकर परेशान से हो जाते हैं। या तो वे इतनी दूर की बातें सोचने के आदी नहीं होते या उनके पास इन प्रश्नों के माकूल जवाब नहीं होते। लेकिन जो लोग अंतरराष्ट्रीय राजनीति और नीति-निर्माण से सीधे जुड़े हुए हैं, वे इन प्रश्नों पर गहरे उतरना पसंद करते हैं। ज्यादातर लोगों की राय थी कि अफगानिस्तान में अराजकता जरूर फैलेगी। उसके कई कारण है। पहला, अफगान फौज और पुलिस, जिनकी संख्या साढ़े तीन लाख है, इस लायक नहीं है कि वे पूरे देश पर नियंत्रण रख सकें। उनका प्रशिक्षण, उनके हथियार, उनका वेतन और सुविधाएँ काफी कमजोर हैं। इसके अलावा अफगान-फौज में भगोड़ेपन की शिकायतें अक्सर आती रहती हैं। दूसरा, फौज में जातिवाद का रोग लगा हुआ है। पठान, ताजिक, उजबेक, हजारा, तुर्कमान और किरगीज लोग फौजी कार्रवाई करते वक्त अपने कमांडर के आदेशों से ज्यादा अपने जातीय समीकरणों का ध्यान रखते हैं यानी अफगान-फौज का अभी तक वास्तविक राष्ट्रीय स्वरुप नहीं बन पाया है।

तीसरा, राष्ट्रपति के चुनाव-परिणाम को लेकर उठा विवाद अब जातीय-दरार को ज्यादा बढ़ाएगा। यदि अब्दुल्ला अब्दुल्ला हार गये, तो अफगानिस्तान की गैर-पठान जनता में काफी असंतोष फैलेगा। तालिबान का खतरा तो है ही, यदि जातीय गृहयुद्ध छिड़ गया तो अफगानिस्तान से लाखों शरणार्थी एक बार फिर पाकिस्तान की तरफ कूच करने लगेंगे। चौथा, पाकिस्तान में चल रहे फौजी अभियान की वजह से अब सारे आतंकवादी खिसककर अफगानिस्तान को अपना शरण-स्थल बना लेंगे। अफगानिस्तान की पहाड़ियाँ उनके छापामार युद्ध में काफी मददगार साबित होती हैं।

यदि तालिबान आधे अफगानिस्तान यानी पाकिस्तान से लगे पठान इलाकों पर भी कब्जा कर लेते हैं तो वे पाकिस्तान की नाक में दम कर देंगे। या तो पाकिस्तान को उनसे हाथ मिलाना होगा, जैसा कि डेढ़ दशक पहले किया गया था या उनके हमले बर्दाश्त करते रहना होगा। जाहिर है कि वे अपना वर्चस्व बनाने के लिए पाक-मदद लेंगे लेकिन मजबूत होने के बाद वे ही पाकिस्तान का सबसे बड़ा सिरदर्द बन जायेंगे।

वे पाकिस्तान का फौजी खर्च बढ़वा देंगे, अर्थ-व्यवस्था चैपट कर देंगे, मार-काट मचायेंगे, असतोष भड़कायेंगे, मियां नवाज की सरकार का जीना हराम कर देंगे। अफगानिस्तान दोबारा आतंकवाद की अंतराष्ट्रीय सराय बन जायेगा। इससे भारत भी जमकर प्रभावित होगा। पाकिस्तान की फौज इन आतंकवादियों को अपने देश में ही नहीं रोक पायेगी तो वह भारत के विरुद्ध उन्हें कैसे और क्यों रोकेगी? भारत-पाक संबंधों की मधुरता को काफूर होते देर नहीं लगेगी। इस आशंका को देखते हुए क्या यह जरूरी नहीं कि भारत, पाक और अफगानिस्तान के नेता कोई संयुक्त त्रिकोणात्म्क रणनीति तुरंत बनायें?

(देश मंथन, 26 जून 2014)

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