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योगेश सिंह, “एक नरेंद्र मोदी समर्थक” :

गुजरात दंगों के लिए नरेंद्र मोदी को दोषी ठहराने के लिए कांग्रेस और अन्य तथाकथित सेक्युलर पार्टियों ने सालों तक अथक प्रयास किये, लेकिन उन्हें मुँह की खानी पड़ी। कारण – मोदी जी सही थे, विरोधी गलत। उन्हें गलत ढंग से फँसाने का प्रयास किया जा रहा था।

मोदी ने दंगों के दौरान “राजधर्म” का ही पालन किया था। तभी तो तब के प्रधानमंत्री अटल जी ने जब मोदी को “राजधर्म” का पालन करने की सलाह दी, तब उनके मुख से अनायास ही सच निकल पड़ा, “वही तो कर रहा हूँ!”

संसद के रिकॉर्ड में एक दस्तावेज है, जिसे तब के गृह राज्यमंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने संसद में रखा था। उसमें साफ-साफ बताया गया है कि कितने अल्पसंख्यक और कितने हिन्दू पुलिस की गोली के शिकार हुए थे। अगर राजधर्म का पालन नहीं हुआ होता तो उतनी संख्या में हिन्दू कभी नहीं मारे गये होते।

दुर्भाग्य, मोदी ने राजधर्म का पालन किया, लेकिन विरोधियों ने उन्हें पूरी दुनिया में मुसलमानों का हत्यारा कह कर बदनाम किया। पर वे मोदी को फँसा न सके। कारण – मोदी सही थे और विरोधियों का प्रचार एक सोच-समझी राजनीतिक चाल। यही कारण रहा कि एनजीओ गैंग को बार-बार अदालत में मुँह की खानी पड़ी और मोदी बेदाग होकर निकले।

इन घटनाक्रमों के बीच एक और एक और मोदी का जन्म हो रहा था, जिसे खुद मोदी धीरे-धीरे समझने लगे थे। मुस्लिम विरोधी और हत्यारा कहते हुए विरोधियों के दुष्प्रचार और अफवाहों ने एक हिन्दू हृदय सम्राट को जन्म दिया। एक नये मोदी का जन्म हुआ। उन्हें लगने लगा कि अब मेरी यही छवि मुझे बहुत दूर तक ले जायेगी। यहीं से शुरू हुआ मार्केटिंग और ब्रांडिंग का खेल, जिसे मोदी ने बखूबी अंजाम दिया और वे आज देश के प्रधानमंत्री हैं।

आज मोदी देश के प्रधानमंत्री के पद पर हैं – एक ऐसी धरा जहाँ मार्केटिंग/ब्रांडिंग की सीमा समाप्त हो जाती है। यहाँ राजधर्म ही काम आता है। मोदी इसे भी बखूबी समझते हैं, पर वे अभी इस पद पर नये-नये हैं। उन्हें ब्रांडिंग और मार्केटिंग से बनी छवि का चोला निकाल फेंकने में दिक्कत आ रही है। छवि का नशा जाता नहीं। 

मोदी के लिए यह बड़ा मुश्किल दौर है। उनकी छवि साये की तरह उनके साथ-साथ है। वे इससे जरा भी हटना चाह रहे हैं तो उन्हें तुरंत अहसास कराया जा रहा है कि आप वो नहीं। सोशल मीडिया उन्हें बखूबी एहसास करा रहा है कि आपको उसी छवि में जीना है जो हमने देखा है।

आगे मोदी क्या करेंगे और कैसे करेंगे, यह समझने के लिए आगे उनके कामों को और परखने की जरूरत है।

(देश मंथन, 25 जुलाई 2014)

 

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