रोजों पर प्रतिबंध: मुठभेड़ की नीति

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डॉ वेद प्रताप वैदिक, राजनीतिक विश्लेषक :

चीन की सरकार ने अपने सिंच्यांग प्रांत में रोजों पर प्रतिबंध लगा दिया है। उसने सिंच्यांग की जनता के नाम एक फरमान जारी किया है, जिसमें कहा गया है कि सरकारी कर्मचारियों, अध्यापकों, पार्टी-सदस्यों और नौजवानों को न तो रोजे रखने दिए जायेंगे और न ही उन्हें नमाज के लिए कहीं भी बड़ी तादाद में इकट्ठा होने दिया जायेगा।

इस फरमान का कारण यह बताया गया है कि रोजे रखने से लोगों की सेहत पर बुरा असर पड़ता है। वे कमजोर हो जाते हैं। वे अपना काम ठीक से नहीं कर पाते। यह आदेश केंद्रीय सरकार ने पेइचिंग से जारी किया है। यह आदेश केंद्रीय और प्रांतीय सरकार के उन सब कर्मचारियों पर लागू होगा, जो सेवा में हैं और जो सेवा-निवृत्त हैं।

चीनी सरकार की तरह सोवियत संघ की कम्युनिस्ट सरकारों ने भी अपने मुसलमानों को इसी तरह ठोक-पीटकर कम्युनिस्ट बनाने की कोशिश की थी। उन पर तरह-तरह के जुल्म किए थे लेकिन हुआ क्या? खुद कम्युनिज्म का ही सिर्फ 70 साल में दीवाला पिट गया। चीन तो अब कम्युनिस्ट भी नहीं रहा लेकिन वह सिंच्यांग में यह सब क्यों कर रहा है?

इसका कारण कम्युनिज्म नहीं है। कम्युनिज्म तो अब चीन से भी विदा हो गया है। यह मामला कम्युनिज्म और इस्लाम की टक्कर का नहीं है। यह है, उइगर जाति के अलगाव का! उइगर लोग मध्य एशियाई हैं। वे हान जाति के नहीं हैं। वे तुर्की भाषा बोलते हैं, जो फारसी और उज्बेक से मिलती-जुलती है। उनके रीति-रिवाज, खान-पान और रहन-सहन भी चीनियों से अलग है। उनमें से ज्यादातर मुसलमान हैं। ये उइगर लोग चीन से आजाद होना चाहते हैं। उनकी आजादी की लड़ाई का लंबा इतिहास है।

आजकल उइगर लोग अलगाववाद के नाम पर दहशतगर्दी भी करने लगे हैं। कई बम-विस्फोटों में सैकड़ों लोग मारे गये हैं। चीनी सरकार को डर है कि रोजे और नमाज के बहाने उइगर लोगों को बड़ी तादाद में इकट्ठा होने का मौका मिलेगा और वहाँ बगावत के नारे बुलंद किए जायेंगे। इसलिए उसने इन पाबंदियों का एलान किया है।

लेकिन इन पाबंदियों का क्या उल्टा असर नहीं होगा? चीनी सरकार अगर अक्ल से काम ले तो वह सारी उइगर जनता से अपील कर सकती है कि रमजान का महीना आप लोगों के लिए पवित्र होता है। इस माह में कोई भी अप्रिय घटना सिंच्यांग में नहीं घटनी चाहिए। न तो किसी प्रकार की दहशतगर्दी होगी और न ही कोई सरकारी जुल्म होगा। यह रास्ता विवेक और प्रेम का रास्ता है लेकिन चीनी सरकार ने मुठभेड़ का रास्ता पकड़ लिया है। तिब्बतियों के साथ भी यही किया जाता है। खुद चीन की हान जाति के असंतुष्ट नौजवानों से भी डंडे मार-मारकर बात की जाती है। क्या किया जाये?

(देश मंथन, 04 जुलाई 2014)

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