हाँ, अकबर नाम है मेरा… शहंशाह गुजरे जमाने का…

0
332

विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार:  

धुआं उड़ाती सिटी बजाती रेलगाड़ियां अब इतिहास हो चुकी हैं। या तो फिल्मों में देखा होगा आपने या बुजुर्गों से सुना होगा। हरियाणा के रेवाड़ी के स्टीम शेड में कुल 10 स्टीम लोकोमोटिव देखे जा सकते हैं। इसमें कुछ चालू हालत में हैं। इनमें से एक है अकबर। शान से खड़ा यह विशाल स्टीम लोकोमोटिव जैसे आपसे कह रहा हो अकबर नाम है मेरा…

 

रेवाड़ी स्टीम लोको शेड में जिन लोकोमोटिव को संरक्षित किया गया है उनके नाम रेवाड़ी किंग, साहिब, सुल्तान, सिंध, अकबर, अंगद, आजाद, शेरे पंजाब, विराट और फेयरी क्वीन हैं।

डब्लू पी 7161 यानी अकबर। इस अकबर को आपने लोकप्रिय फिल्म भाग मिल्खा भाग में देखा है। इसके बाद फिल्म की एंड का में अकबर दिखाई देता है। प्राणयाम और पोरनब जैसी फिल्मों की शूटिंग में भी अकबर लोकोमोटिव को धुआं उड़ाते हए रफ्तार भरते देखा जा सकता है। धर्मवीर भारती के लोकप्रिय उपन्यास गुनाहों का देवता पर बने टीवी धारावाहिक एक था चंदर एक थी सुधा में अकबर लोकोमोटिव ने हिस्सेदारी निभाई है। इन जानकारियों का शान से लोकोशेड में प्रदर्शित किया गया है। गदर, गुरु, रंग दे बसंती जैसी फिल्मों की शूटिंग में रेवाड़ी के स्टीम लोकोमोटिव का इस्तेमाल किया गया है।

अकबर जैसे विशाल लोकोमोटिव अकबर का निर्माण भारत में ही चितरंजन लोकोमोटिव वर्क्स में किया गया था। हालांकि अब चितरंजन सिर्फ बिजली के इंजन ही बनाता है। अकबर पहियों के लिहाज से 4-6-2 क्लास का लोकोमोटिव है। यानी इसमें कुल 12 पहिये हैं। द्वितीय विश्वयुद्ध के आसपास डब्लूपी क्लास के लोकोमोटिव का निर्माण हुआ। इनकी अधिकतम स्पीड 110 किलोमीटर प्रति घंटा तक है।  अकबर का निर्माण सीएलडब्लू में 1965 में हुआ। इसे 1996 में रेलवे की सेवा से रिटायर किया गया। यह लंबे समय तक सहारनपुर इलाके में रेलवे की सेवा में रहा। इससे पहले यह नार्थ इस्ट फ्रंटियर रेलवे की सेवा में सिलिगुडी क्षेत्र में लंबे समय तक रहा। 

1996 में रिटायर होने के बाद इसे चारबाग शेड लखनऊ में मरम्मत करके दिल्ली के नेशलन रेल म्युजिम भेजा गया। आज भी अकबर शहंशाह की तरह दौड़ता है। जिन फिल्मकारों अपनी कहानी में स्टीम इंजन का दौर दिखाना होता है उनके लिए अकबर मुफीद बैठता है। 1999 में गणतंत्र दिवस के आसपास अकबर ने दिल्ली से मुंबई के लिए कुलांचे भरी। वहाँ इसने वीर सावरकर फिल्म की शूटिंग में हिस्सा लिया। कुछ समय मुंबई में गुजराने के बाद यह वापस आ गया दिल्ली। आजकल इसका स्थायी निवास है रेवाड़ी स्टीम शेड। अकबर का वजन 100 टन से ज्यादा है। इसके पानी टंकी की क्षमता 25,000 लीटर की है। यह 2680 हार्स पावर की ऊर्जा तैयार करता है। इसलिए तो शहंशाह है।

पहले थोड़ी बात रेवाड़ी स्टीम लोको शेड की। इस लोको शेड की स्थापना 1893 में की गई। यह बांबे बड़ौदा सेंट्रल रेलवे का हिस्सा था।यह देश का सबसे बड़ा मीटर गेज का शेड था। यहाँ 500 मेनटेंन्स स्टाफ कार्यरत हुआ करते थे।  यहाँ दिल्ली, भठिंडा, चुरू और फुलेरा के लिए रेलगाड़ियां जाती थीं। साल 1980-82 के दौरान यहाँ 65 लोकोमोटिव के रखे जाने का इंतजाम था। सौ साल तक सक्रियता के बाद इस शेड को 1993-94 के दौरान बंद कर दिया गया। तमाम लोकोमोटिव को काट कर स्क्रैप में बेच दिया गया।

पर साल 2001में योजना बनी कि रेवाड़ी के स्टीम शेड को हेरिटेज शेड के तौर पर संरक्षित किया जाए। तब तक रेवाड़ी आने वाली सभी मीटर गेज की लाइनें ब्राडगेज में बदली जा चुकी थीं। तब प्रमुख ब्राडगेज के स्टीम लोकोमोटिव को भी यहाँ लाए जाने की योजना बनी। और मई 2002 में अकबर पहला स्टीम लोकोमोटिव था जिसे यहाँ लाया गया। 14 अगस्त 2002 को तत्कालीन रेल मंत्री नीतीश कुमार ने रेवाड़ी स्टीम शेड को हेरिटेज शेड का दर्जा प्रदान किया।

साल 2010 के बाद इस शेड में एक कैफेटेरिया और एक संग्रहालय का निर्माण किया गया। संग्रहालय में स्टीम के जमाने में रेलवे में इस्तेमाल होने वाले कई तकनीकी यंत्रों को देखा जा सकता है। यहाँ कुछ पुस्तकें और सिग्नल सिस्टम को भी देखा जा सकता है। संग्रहालय में भारत के पटरियों पर आखिरी बार व्यवसायिक तौर पर सेवा देने वाले स्टीम लोकोमोटिव अंतिम सितारा की प्रतिकृति को भी देखा जा सकता है। तो कभी आइए न रेवाड़ी….

(देश मंथन,  10 अप्रैल 2017)

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें