अगर…

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संजय सिन्हा, संपादक, आजतक : 

मेरी कहानियाँ आप अपने बच्चों को भी सुनाते हैं न?

उन्हें जरूर सुनाया कीजिए। ठीक वैसे ही जैसे भोपाल के हमीदिया क़ॉलेज में संजय सिन्हा को मित्तल मैडम सुनाया करती थीं। 

मित्तल मैडम इतिहास का पाठ पढ़ाते हुए ‘अगर’ शब्द पर जब रुक जातीं, तो उनके प्रिय विद्यार्थी संजय सिन्हा समझ जाते कि अब वो कोई नयी कहानी सुनाने वाली हैं। 

उस दिन भी उन्होंने कहा था –

अगर…

मेरी आँखें चमकने लगी थीं। मित्तल मैडम अब कुछ नया सुनाएंगी। 

वो सुनाने लगी थीं कि उस रात अगर नेपोलिनय ने खाना नहीं खाया होता, वो सोता नहीं। 

नेपोलियन का मानना था कि रात में खाना खाने के बाद आदमी सुस्त हो जाता है और फिर उसके सोचने की शक्ति कम हो जाती है। सोचने की शक्ति कम हो जाती है तो आदमी समय के अनुशासन को भूल जाता है। नेपोलियन इसीलिए युद्ध के दौरान रात में खाना नहीं खाता था।

नेपोलियन और समय के अनुशासन को भूल जाये?

नेपोलियन की जीत का राज ही उसकी जिंदगी में समय का अनुशासन था। 

एक शाम बेल्जियम के पास वाटरलू नामक जगह पर नेपोलिनय को रुकना पड़ा था। वो अपनी सेना की एक टुकड़ी का इंतजार कर रहा था। वो पूरी तरह चौकस था। नेपोलियन की लंबाई कम थी, इसलिए वो हमेशा घोड़े पर बैठ कर खुद अपनी सेना की चौकसी करता था। 

नेपोलियन की सेना किसी भी पल वहाँ पहुंचने वाली थी। पर हाय री किस्मत! 

अपनी सैन्य टुकड़ी का इंतज़ार करते-करते नेपोलियन ने खाना खा लिया। खाना खाते ही उसे लगा कि कुछ देर आराम कर लेना चाहिए। जब सेना पहुंचेगी, तब चल पड़ेंगे। 

इधर नेपोलियन घोड़े से उतरा, उधर इंग्लैंड के सेनापति वेलिंग्टन ने दूरबीन से देखा कि नेपोलियन नजर नहीं आ रहा है। नेपोलियन नजर नहीं आ रहा, मतलब आराम कर रहा है। 

बस फिर क्या था। उसने मौके का फायदा उठाया और जहाँ नेपोलियन आराम कर रहा था, उस तरफ उसकी सेना कूच कर गयी। नेपोलियन के सैनिकों ने दूर धूल के गुबार को उठते देखा तो उन्हें लगा कि उनकी सेना आ रही है, जिसका इंतजार नेपोलियन कर रहा था। उन्होंने सोचा कि सेना आ जाएगी, फिर नेपोलियन को जगाएंगे। 

इंग्लैंड की सेना वहाँ पहुंच गयी और उसने सोते हुए नेपोलियन को घेर लिया। घेर क्या लिया, नेपोलियन को बंदी बना लिया। 

कुछ ही देर बाद नेपोलियन की सेना वहाँ पहुंची, पर तब तक नेपोलियन बंदी बनाया जा चुका था। 

1815 में नेपोलियन इंग्लैंड की सेना के हाथों बेल्जियम की राजधानी ब्रुसेल्स के पास वाटरलू में पकड़ा गया था। नेपोलियन ने पचासों युद्ध लड़े थे और जीता था। पर मित्तल मैडम को इन बातों से कोई मतलब नहीं था। वो तो संजय सिन्हा को पढ़ाते हुए पता नहीं कब इतिहास से नैतिक शिक्षा की ओर मुड़ जातीं और बताने लगतीं कि नेपोलियन को उस दिन अपना नियम नहीं तोड़ना चाहिए था। अगर वो खाना नहीं खाता, तो वो सोता नहीं। वो सोता नहीं तो इंग्लैंड की सेना अगर उधर बढ़ती तो नेपोलियन धूल के गुबार को देख कर समझ जाता कि ये दुश्मन सेना है। नेपोलियन के सैनिक ये नहीं समझ पाये थे। 

नेपोलियन ने अपने जिस सेनापति को सैन्य टुकड़ी लाने का जिम्मा दिया था वो तय समय पर वहाँ नहीं पहुंच पाया था। उसे पहुंचने में पाँच मिनट की देर हो गयी थी। उसे पाँच मिनट की देर हुई, नेपोलियन ने खाना खा लिया, नेपोलियन पाँच मिनट के लिए सो गया और इंग्लैंड ने उसी पाँच मिनट में सबकुछ कर लिया। 

नेपोलियन की हार का मित्तल मैडम को बहुत दुख था। वो समझातीं कि नेपोलियन कभी नहीं हारता अगर उसने अपना नियम न तोड़ा होता। 

नेपोलियन कभी नहीं हारता अगर उसके सेनापति ने पाँच मिनट की अहमियत को समझा होता। 

मित्तल मैडम ‘अगर’ शब्द पर रुकतीं और कहतीं कि नेपोलियन अगर उस दिन बंदी न बना होता, तो इंग्लैंड की जगह फ्रांस दुनिया की शक्ति बना होता। दुनिया पर इंग्लैंड नहीं, फ्रांस का झंडा लहराया होता।

संजय सिन्हा आज पता नहीं क्यों सुबह-सुबह ‘अगर’ शब्द पर अटक गये हैं। 

सोच रहे हैं कि अगर नेपोलियन ने उस रात खाना न खाया होता, तो आज संजय सिन्हा फ्रेंच भाषा में आपके लिए कहानी लिख रहे होते। 

नेपोलियन की सेना अगर उस दिन पाँच मिनट देर से न पहुंचती तो आप भी फ्रेंच भाषा में ही कहानी पढ़ रहे होते। 

‘अगर’ शब्द सुनने में छोटा सा है, लेकिन है बहुत बड़ा। इसका असर आदमी की पूरी जिंदगी पर पड़ता है। अपने बच्चों को ये जरूर समझाएं कि समय की कीमत जो नहीं समझते उनके पास बाद में बहुत से ‘अगर’ बचे रह जाते हैं लेकिन जिंदगी दुबारा मौका नहीं देती।

(देश मंथन, 30 मार्च 2016)

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