बनारस की एक शाम

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रवीश कुमार, वरिष्ठ टेलीविजन एंकर :

जिसने भी बनारस के चुनाव को अपनी आँखों से नहीं देखा उसने इस चुनाव को देखा ही नहीं। शाम को गंगा के स्पर्श से हवायें मचलने लगी थी।

घाट पर तफरीह के लिए आये पत्रकार बंधुओं से चर्चा चल रही थी तभी नुक्कड़ नाटक के होने का अहसास हुआ। हम घाट की सीढ़ियों की तरफ चल पड़े। इस उम्मीद में कि बीजेपी की नाटक मंडली देखने का मौका मिलेगा। लेकिन वहाँ जाकर देखा कि अस्मिता थियेटर ग्रुप हुंकारे भर रहा था। घाट की सीढ़ियों पर लोग जम गये थे। विदेशी यात्रियों ने भी आसन जमा लिया और बनारस की राजनीति पर नाटक खेला जाने लगा था। 

मैं तस्वीरों की तलाश में सीढ़ियों के ऊपर गया। लोगों की भीड़ बढ़ती जा रही थी। ठंडी हवा की तरह शांत। बनारसी लोग शांति से जमे हुए थे। चुनाव को किसी चलचित्र की तरह देखने लगे। 

भीड़ से अलग एक साधु बाबा त्रिशूल लिये चले आये। मैं किसी से पूछ रहा था कि ये सब तो ठीक है पर लोग तो यहाँ मोदी को ही वोट देंगे। बस बाबा भड़क गये। कहने लगे कि मेरी सूर्यदेव से सीधे बात हो रही है। केजरीवाल जीतेंगे। मैं चुप ही हो गया। वो भी डूबते सूर्य की तरफ देखकर बातें करने लगे। सोचा कहीं मुझसे कोई गुस्ताखी न हो जाये और बवाल न हो जाये। ऐसा कुछ न हुआ। बाबा भी इस चुनावी माहौल में मस्ती ले रहे थे।

(देश मंथन, 06 मई 2014)

 

 

 

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