बच्चे के मन को पहचानें, धन को नहीं

0
404

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

माँ की सुनाई तमाम कहानियों में से ये वाली कहानी मुझे हमेशा ऐसे वक्त में याद आती है, जब इसकी सबसे अधिक जरूरत पड़ती है।
कुछ दिन पहले मुझसे कोई कह रहा था कि उनका बेटा ठीक से पढ़ाई नहीं करता। उसके नंबर हमेशा कम आते हैं और सबसे दुख की बात ये है कि पति-पत्नी दोनों बच्चे को पूरा समय नहीं दे पाते।

दोनों सुबह-शाम काम में व्यस्त रहते हैं। पर वो ये भी बता रहे थे कि बच्चे की देखभाल में कोई कमी नहीं है। उसे अभी से प्राइवेट ट्यूशन लगा दिया गया है, पर बच्चा पढ़ाई में फिसड्डी है। पढ़ाई में उसका मन लगे, इसके लिए जितनी भी कोशिशें की जा रही हैं, अब तक सारी बेकार साबित हुई हैं।
मैंने उनकी समस्या सुनी और मन ही मन सोचता रहा कि माँ के सामने अगर कोई पड़ोस की दीदी या चाची अपने बच्चे की समस्या लेकर आतीं तो माँ उन्हें कैसे समझातीं?
बस इतना सोचा मैंने और मुझे माँ की सुनाई एक कहानी याद आ गयी।
मैंने अपने परिचित को बिठा कर वही कहानी सुनाई।
एक बार एक आदमी भीख माँगता-माँगता मर गया। वो भीख माँगने कहीं जाता नहीं था, वो बस एक ही जगह बैठ कर भीख माँगा करता था। वो हट्टा-कट्टा था, नौजवान था पर भीख माँगता था। लोग उसे टोकते भी, पर वो कहता कि उसे ऐसा लगता है कि एक दिन वो बहुत पैसे कमा लेगा। जब बहुत पैसे कमा लेगा तो फिर भीख माँगना छोड़ देगा।
लोगों ने उससे कहा भी कि तुम बाहर निकलो, कुछ और करने की कोशिश करो, पर भिखारी नहीं माना।
वही भिखारी एक दिन बैठे-बैठे मर गया। अमीर बनने का उसका ख्वाब धरा का धरा रह गया।
भिखारी जब मर गया तो लोगों ने सोचा कि उसे वहीं गड्ढा करके दफना दिया जाए, जहाँ उसने पूरी जिन्दगी बैठ कर भीख माँगी।
जब उस जगह पर गड्ढा किया गया तो लोग हैरान रह गए। वहाँ बहुत सा खजाना दबा था। क्या विडंबना थी, खजाने के ऊपर बैठ कर भिखारी भीख माँगता रहा।
लोगों ने जब खजाने को देखा तो बुदबुदाने लगे, काश इसने कभी उठ कर उसी जगह को खोद कर देखा होता जहाँ ये बैठा-बैठा मर गया।
***
माँ इस कहानी को मुझे सुनाती और समझाती कि आदमी जब किसी चीज की तलाश बाहर करता है तो उसे वो चीज नहीं मिलती। उसे भीतर उस चीज की तलाश करनी चाहिए। भिखारी बाहर से अमीर बनना चाह रहा था। अगर उसने यही तलाश भीतर की होती तो यकीनन उस जगह की पड़ताल करने की कोशिश करता। और अगर ऐसा करता तो वो खजाना उसे जीवित रहते मिल जाता।
हम लोग भी जिन्दगी की खुशियाँ बाहर तलाशते हैं। मेरे परिचित, जो अपने बच्चे के भविष्य को लेकर चिंतित हैं, उन्हें अगर माँ होती तो बस इतना ही कहती कि उसे किसी और चीज की जरूरत नहीं, उसे जरूरत है तो बस माँ-बाप के साथ की। समय की।
वो बच्चे के मन में घुसने की कोशिश करेंगे तो उन्हें समस्या का हल मिल जाएगा। नहीं तो बाद में पता लगे धन का कोई फायदा नहीं होता है। 
(देश मंथन, 30 मई 2016)

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें