क्या एक दिन खत्म हो जायेगा माजुली द्वीप

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विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार:  

संसार के सबसे बड़े नदी द्वीप माजुली का अस्तित्व खतरे में है। यह एक सच है क्योंकि कई दशक का रिकार्ड बताता है कि द्वीप साल दर साल कटाव झेल रहा है और उसका भौगोलिक दायरा सिकुड़ता जा रहा है।

 अस्तित्व की लड़ाई लड़ता माजुली

असम में ब्रह्मपुत्र नदी के बीच स्थित दुनिया का सबसे बड़ा नदी द्वीप माजुली वजूद की लड़ाई लड़ रहा है। माजुली बाढ़ और भूमि कटाव के कारण खतरे में है। एक रिपोर्ट कहती है कि आजादी से पहले इसका क्षेत्रफल 1278 वर्ग किलोमीटर था जो अब घट कर 557 वर्ग किलोमीटर रह गया है। कई रिपोर्ट में इसे 650 वर्ग किलोमीटर कहा जाता है। 

माजुली द्वीप के 23 गाँवों में कोई डेढ़ लाख लोग रहते हैं। 2009 के लोकसभा चुनावों से पहले भाजपा ने कहा था यदि वह सत्ता में आई तो माजुली द्वीप को विश्व विरासत स्थल का दर्जा दिलाएगी। हालाँकि माजुली पर ठीक से वकालत नहीं की जा सकी और यूनोस्को ने विश्व धरोहर के प्रस्ताव रद्द कर दिया। बताया जाता है कि यूनेस्को की बैठकों के दौरान राज्य सरकार ने या तो ठीक से माजुली की पैरवी नहीं की या फिर आधी-अधूरी जानकारी मुहैया कराई। इसी के कारण यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर का दर्जा देने का अनुरोध ठुकरा दिया।

इतिहास बना न्यू मूर

बंगाल की खाड़ी में स्थित न्यू मूर नामक छोटा-सा द्वीप पूरी तरह जलमग्न हो चुका है। न्यू मूर को भारत में पुरबाशा और बांग्लादेश में दक्षिण तलपट्टी के नाम से भी जाना जाता है। भारत ने 1989 में नौ सेना का जहाज और फिर बीएसएफ के जवानों को वहाँ तैनात करके वहाँ तिरंगा फहराया था।

माजुली का वह ऐतिहासिक सत्र और स्थली जहाँ कभी महान संत शंकरदेव और माधव देव की मुलाकात हुई थी, कटाव की भेंट चढ़ चुका है। कटाव के कारण माजुली में कभी मौजूद 64 वैष्णव सत्रों की संख्या घटकर 23 रह गयी है।

माजुली में हमारी मुलाकात माजुली कालेज के प्रोफेसर अवनि कुमार दत्ता से होती है। माजुली के भविष्य पर भावुक चर्चा होती है। वे बताते हैं कि हमने अपना स्थायी घर जोरहाट में बनाया हुआ है। कई समर्थ लोग बारिश के दिनों में माजुली छोड़ कर चले जाते हैं।

माजुली को बाढ़ और भूमि कटाव से बचाने के लिए दो एजंसियाँ हैं। लेकिन किसी ने भी अब तक इस दिशा में ठोस पहल नहीं की है। यही वजह है कि माजुली का काफी हिस्सा नदी में समाता जा रहा है।

असम सरकार ने इस द्वीप को बचाने की पहल के तहत माजुली कल्चरल लैंडस्केप मैनेजमेंट अथारिटी का गठन किया था। बावजूद इसके पिछले कई सालों में इस दिशा में कोई ठोस काम नहीं हुआ है। 2016 में असम में भाजपा की सरकार आई है। संयोग से मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल माजुली से ही विधायक हैं। सोनोवाल का माजुली से भावनात्मक लगाव भी है। अब माजुली के लोगों की सरकार से काफी उम्मीदें बंधी हैं। सितंबर 2016 में माजुली असम का जिला बन चुका है। पर प्रशासन के सामने बड़ी चुनौती है इस सुंदर द्वीप को ब्रह्मपुत्र के कटाव से रोकना।

तलवार की धार पर जिंदगी

बारिश के चार महीनों में माजुली द्वीप पर रहने वाले डेढ़ लाख लोग तलवार की धार पर जीवन काटते हैं। हर साल बरसात के मौसम में यहाँ तीन फीट तक पानी भर जाता है। एक गाँव से दूसरे गाँव तक जाने का रास्ता टूट जाता है और टेलीफोन सेवा काम नहीं करती। बाढ़ और भूमि काटव की वजह से इसका कुछ हिस्सा हर साल नदी के साथ बह जाता है। जानकारों का मानना है कि अगर सरकार ने समय रहते व्यवस्था की होती तो इस द्वीप को नदी में डूबने से बचाया जा सकता था।

वेनिस से ज्यादा नावें माजुली में

माजुली के बारे में कहा जाता है कि यहाँ जितनी नावें हैं उतनी इटली के वेनिस में भी नहीं हैं। माजुली में कोई भी घर ऐसा नहीं है जहाँ नाव नहीं हो। यहाँ नावें लोगों के जीवन का अभिन्न हिस्सा बन गयी हैं। यहाँ के लोग कार, टेलीविजन के बिना तो रह सकते हैं लेकिन नावों के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। बारिश के चार महीनों में नाव ही लोगों का घर बन जाती है। न सिर्फ आवाजाही के काम आती है बल्कि कई बार तो रात भी नाव में गुजारनी पड़ती है।

(देश मंथन,  15 मार्च 2017)

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