शरद यादव का मोहभंग

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डॉ वेद प्रताप वैदिक, राजनीतिक विश्लेषक :

जनता दल (यू) के अध्यक्ष शरद यादव के मोह-भंग से कई सबक मिलते हैं। शरद यादव ने एक बार नहीं, दो बार सार्वजनिक-तौर पर कहा है कि जातिवादी राजनीति ने बिहार का नाश कर दिया है।

यह जातिवादी राजनीति लालू और नीतीश को भी लील जायेगी। यदि यह बात उन्होंने इसलिए कही है कि वे चुनाव हार रहे हैं और नीतीश के रवैए से खफा हैं, तो इसे हम उनकी तात्कालिक प्रतिक्रिया और गुस्से व निराशा में दी गयी प्रतिक्रिया मान सकते हैं। यदि ऐसा है, तो भी शरद यादव का जातिवाद के विरुद्ध बोलना अपने आप में बहुत मायने रखता है।

शरद यादव उन नेताओं में बेहतर नेता हैं, जो मेरी पीढ़ी के हैं। वे विचारशील हैं, चरित्रवान हैं, सज्जन हैं और बहुत संतुलित है। वे डॉ. राममनोहर लोहिया के अनुयायियों में से हैं। अपने प्रारंभिक वर्षों में उन्होंने मेरे साथ काम भी किया है। उन्होंने अंग्रेजी हटाओ और जात तोड़ों आंदोलनों में सक्रिय हिस्सेदारी भी की है। अचानक क्या हुआ कि वे जातिवादी राजनीति के सबसे प्रखर पुरोधा बन गये। उन्होंने क्या, देश के सभी नेताओं ने जातिवाद के आगे घुटने टेक दिये। इसीलिए मैं उन्हें नेता नहीं, पिछलग्गू कहता हूँ। वोट के पिछलग्गू! वोट के भिखारी!! वोट के डकैत!!!

ये लोग जात तोड़ो की बजाय जात जोड़ो की माला जपने लगे। डॉ. लोहिया ने जात तोड़ने के लिए ही पिछड़ों को आगे बढ़ाने की बात कही थी। जात तो टूटी नहीं, जो पिछड़े आगे बढ़ गये, उनकी नयी जात बन गयी। यह नयी मलाईदार पिछड़ों की जात अपनी ही जात को नीची नजर से देखने लगी। याने जात में एक नयी जात और सिर पर लद गयी। इसके अलावा जातियों में पहले से चली आ रहीं उप-जातियाँ, अति-उपजातियाँ इतनी हैं कि वे जातिवादी नेताओं- माया, मुलायम, लालू, नीतीश, शरद को भी तंग करने लगीं। पिछड़ी और दलित जातियों में ही अनेक भस्मासुर उठ बैठे। जातिवादी नेताओं को अब आटे-दाल के भाव पता चल रहे हैं। इस विनाशकारी और विभाजनकारी राजनीति को वे अब तिलांजलि दे सकें तो उनका और देश का बड़ा कल्याण होगा। जो नेता जाति के नाम पर वोट माँगता है, वह यह सिद्ध करता है कि उसमें कोई काबिलियत है ही नहीं। सब कुछ जाति है। योग्यता, सेवा, ईमानदारी का कोई खास महत्व नहीं है। जाति नेता को निकम्मा बनाती है। वह अपनी जात के भोले लोगों को भी अनंतकाल तक निकम्मा बनाये रखने का पुख्ता इंतजाम करता है। वह उन्हें आरक्षण के लालच में फंसाता है। जन्म के आधार पर आरक्षण से बड़ा राजनीतिक भ्रष्टाचार और कोई नहीं है। जब आप सवर्णों के गरीबों को भी आरक्षण देने को तैयार हैं तो सभी गरीबों को जातीय-भेद-भाव के बिना आरक्षण क्यों नहीं दे सकते? यदि शरद यादव का मोहभंग कुछ रंग लाये और हमारे देश से जातीय राजनीति खत्म हो तो यह देश सचमुच समतामूलक बनेगा और दिन दूनी रात चौगुनी उन्नति करेगा।

(देश मंथन, 06 मई 2014)

 

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