मेक इन इंडिया पर टिका देसी मोबाइल कंपनियों का भविष्य

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राजेश रपरिया :

मोदी सरकार देश के आर्थिक विकास के लिए अपनी तमाम मंशाएँ जता चुकी है। 28 फरवरी को पेश होने वाले आम बजट में उन्हें कैसे मूर्त रूप मिलता है, इस पर भारतीय कॉर्पोरेट जगत की निगाहें टिकी हुई हैं।

देसी मोबाइल हैंडसेट उत्पादकों को पूरी उम्मीद है कि मेक इन इंडिया मुहिम के तहत इस उद्योग का उद्धार अवश्य होगा। वैसे भी मेक इन इंडिया मुहिम के लिए 25 क्षेत्रों को मोदी सरकार ने चुना है, उनमें मोबाइल हैंडसेट उत्पादन उद्योग भी है। देश में मोबाइल हैंडसेटों का बाजार तेजी से बढ़ रहा है, पर उनका उत्पादन उतनी तेजी से गिर भी रहा है। निर्यात और तेजी से गिरा है। इस उद्योग के शीर्ष संगठन इंडिया सेल्युलर एसोसिएशन (आईसीए) की मानें, तो 2015 में देश से हैंडसेटों का निर्यात शून्य रह जायेगा, जो 2012 से लगातार तेजी से गिरा है। इस संगठन ने वित्त मंत्री अरुण जेटली से गुहार लगायी है कि हमें वियतनाम से बचा लीजिए, नहीं तो भारतीय हैंडसेट उत्पादन उद्योग तबाह हो जायेगा।

इस संगठन ने वित्त मंत्री को दिये ज्ञापन में बताया है कि वियतनाम में मोबाइल हैंडसेट विर्निमाण के लिए 30 साल के लिए टैक्स हॉलिडे प्लान है और केवल 10% कर का प्रावधान है। शुरुआती चार सालों से 100% कर से छूट है और इसके अगले 9 सालों के लिए 50% कर छूट है। इस संगठन ने आगाह किया है कि देश में निवेश का माहौल मित्रवत नहीं है और अनिश्चित नियामक वातावरण के कारण देश से हैंडसेट विनिर्माण का पलायन हो रहा है।

संगठन के अनुसार भारत की तुलना में चीन में 60 गुणा और वियतनाम में 12 गुणा मोबाइल हैंडसेटों का उत्पादन होता है। विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने के लिए इस संगठन ने कई सुझाव वित्त मंत्री को दिये हैं, जिनमें दीर्घकालिक टैक्स हॉलिडे का सुझाव प्रमुख है। संगठन का कहना है कि 6 और 7 इंच स्क्रीन वाले हैंडसेंटों को कंप्यूटर श्रेणी में डाल दिया जाता है। नतीजन देश में ऐसे मोबाइल का उत्पादन पनप ही नहीं पा रहा है। इस विसंगति से ऐसे मोबाइलों का आयात करना ज्यादा सस्ता पड़ता है।

बढ़ती खपत गिरता उत्पादन : भारतीय मोबाइल हैंडसेट विनिर्माण उद्योग भारतीय विकास की विसंगतियों, कारोबारियों की मुनाफाखोरी और सरकारी कर नीतियों की दुखती गाथा है। देश में 2014 में 27 करोड़ से अधिक मोबाइल हैंडसेट की बिक्री हुई, जिसमें 22.50 करोड़ मोबाइल हैंडसेटों का आयात हुआ। हैंडसेटों को खरीदने में भारतीयों ने 75 हजार करोड़ रुपये खर्च किये। इस साल निर्यात में 70% गिरावट के साथ 2450 करोड़ रुपये के रह गये जो 2013 में 11850 करोड़ रुपये के थे।

साल 2015 में 30.50 करोड़ मोबाइल हैंडसेटों की बिक्री का अनुमान है, जिस पर मोबाइल हैंडसेट कंपनियों को एक लाख करोड़ रुपये की आय होगी। इनमें देश में उत्पादित मोबाइल की संख्या 5.80 करोड़ इकाइयों से घट कर 4.60 करोड़ इकाई रह जायेगी। देश में गिरते मोबाइल हैंडसेट उत्पादन और निर्यात का कारण चेन्नई स्थित नोकिया की फैक्ट्री का बंद होना है। कर विवादों के कारण इस फैक्ट्री पर ताले पड़ गये हैं। 

वैसे कहने को देश में 100 से अधिक मोबाइल हैंडसेट बनाने वाली कंपनियाँ हैं, जिनमें कार्बन, माइक्रोमैक्स और लावा आदि कंपनियाँ शामिल हैं। ये कंपनियाँ अपने को देसी मानती हैं, लेकिन मोबाइल के 95% पुर्जे चीन से आयात करती हैं। सैमसंग, एलजी और लावा जैसी कंपनियों का दावा है कि वे उत्पाद में कुछ मूल्यवर्धन करती हैं। पर औसत रूप से ये कंपनियाँ भी 85% पुर्जों का आयात करती हैं।

सोनी एरिक्सन ने देश में मोबाइल हैंडसेट बनाने की पहल की थी, लेकिन 2008 में इस कंपनी ने उत्पादन बंद कर दिया। एक विश्वविख्यात ऑडिट कंपनी के अनुसार भारतीय मोबाइल हैंडसेट निर्माता कंपनियाँ महज केसिंग, प्लास्टिक और बॉक्स पैकेजिंग करती हैं, जिन पर महज कुछ फीसदी की लागत आती है, बाकी सब कुछ आयात किया जाता है। चीन से तकरीबन 90 करोड़ मोबाइल हैंडसेटों का निर्माण होता है, जो विश्व में कुल मोबाइल हैंडसेटों के निर्माण के 50% से अधिक है।

चीन ने मोबाइल निर्माण के लिए भारी सहूलियतें दी हैं। टेक्नोलॉजी ट्रांसफर पर 50% की कर राहत है। टेक्नोलॉजी का डाक्यूमेंटेशन और चीनी लोगों का प्रशिक्षण इस कर राहत को लेने के लिए आवश्यक है और ऐसी नयी कंपनियों को शुरुआती घाटे से उबारने के लिए चीनी सरकार मदद भी करती है। एक प्रमुख भारतीय मोबाइल हैंडसेट ब्रांड के मालिक का कहना है कि देश में कंपोनेंट बनाने की परिस्थिति नहीं है। सच तो यह है कि अगर हम सारे कंपोनेंट आयात कर सकते हैं, तो यहाँ उनके निर्माण का कोई तुक नहीं है। हैंडसेट की एसेंबलिंग करने से 2-3% की लागत बढ़ती है। हाँ, यदि कंपोनेट बनाने वाले वेंडर भारत आ जायें तो लागत निश्चित रूप से कम होगी।

सरकारी प्रोत्साहन,  अधिक लालच के चलते उद्यमियों के प्रयासों में कमी, टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के अभाव और कर नीतियों के कारण भारतीय मोबाइल हैंडसेट का बाजार आयात पर अधिकाधिक आश्रित होता जा रहा है। इंडियन सेल्युलर एसासिएशन का कहना है कि 2019 तक विश्व मोबाइल हैंडसेट उत्पादन में भारत की 25% हिस्सेदारी का उद्देश्य मेक इन इंडिया अभियान में होना चाहिए जो कि महज 3% है। इससे मोबाइल हैंडसेट उत्पादन क्षेत्र में 13 लाख नये रोजगार पैदा होंगे और मोबाइल हैंडसेटों का आयात भी गिर कर 10% रह जायेगा।

(देश मंथन, 24 जनवरी 2015)

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