कांग्रेस 2019 की तैयारी करेगी उत्तर प्रदेश के चुनाव में : विनोद शर्मा

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उत्तर प्रदेश विधान सभा के चुनावी समर के लिए कांग्रेस ने अपने सेनापतियों को सामने ला खड़ा किया है। इन नामों को चुनने के पीछे कांग्रेस की रणनीति क्या है, यह जानने के लिए देश मंथन ने बात की कांग्रेस की राजनीति पर पैनी निगाह रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार और हिंदुस्तान टाइम्स के राजनीतिक संपादक विनोद शर्मा से। 

– उत्तर प्रदेश में कांग्रेस ने जो अपनी नयी टीम बनायी है, उस पर आपकी राय क्या है?

जब कोई पार्टी या तंजीम गुमनाम होती है तो वह नाम ढूँढने की कोशिश करती है। यह नाम ढूँढने की ही प्रक्रिया है। उन्होंने कुछ जाने पहचाने चहरे प्रमुख तौर पर उतारे हैं, जिसमें राज बब्बर, शीला दीक्षित और कुछ हद तक संजय सिंह शामिल हैं। हमारी आजकल की जैसी राजनीति है, उसमें लोग सबसे पहले जनमानस या लोक-चर्चा में जगह बनाने की कोशिश करते हैं। आपके पास जमीन पर जो सरमाया था, वह उपलब्ध ना हो तो ऐसी शुरुआत करनी पड़ती है, मजबूरी में।

अब कांग्रेस लोक-चर्चा में तो आ गयी है, मगर वोट जुटाने में इसे बड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी। यह रातों-रात नहीं हो सकता, क्योंकि इनके सभी विपक्षियों के पास अपने-अपने सामाजिक गठबंधन हैं, जमीन पर विभिन्न पहचानों और सामाजिक समूहों के बीच में। जैसे मुलायम के पास मुस्लिम और यादव हैं, बसपा के पास मुस्लिम और दलित मतों का आधार है, और भाजपा के पास अगड़ी जातियों का समर्थन है। कांग्रेस के पास ऐसा आधारभूत वोट नहीं है और इसे वह कैसे जुटायेगी, बड़ा सवाल यह है। यह बात सच है कि कई बार प्रत्याशी व्यक्तिगत स्तर पर वह आधारभूत वोट जुटा लेते हैं। इसमें शीर्ष नेतृत्व का यह योगदान हो सकता है कि शीला दीक्षित ब्राह्मण मतों का रुझान पैदा कर सकती हैं। 

मुझे लगता है कि अब तो यह निश्चित ही होना चाहिए कि प्रियंका भी व्यापक स्तर पर प्रचार में उतरेंगी। चाहे वे पूरे उत्तर प्रदेश में प्रचार न करें, पर कम-से-कम उन सीटों पर तो करेंगी जहाँ कांग्रेस समझती है कि वह जीत सकती है। ऐसी 80-100 सीटें हैं, जहाँ उन्हें लगता है कि वे जीत सकते हैं। ये वो सीटें हैं, जहाँ वे पहले जीते हैं, या दूसरे स्थान पर या नजदीकी तीसरे स्थान पर रहे हैं। दूसरी बात यह है कि अगर प्रियंका मजबूत प्रचारक के रूप में सामने आती हैं तो युवा वर्ग का रुझान कांग्रेस की तरफ हो सकता है। शीला दीक्षित और प्रियंका दोनों मिल कर महिलाओं को अपनी तरफ आकर्षित कर सकती हैं। 

लेकिन यह कांग्रेस के लिए सर्वोत्तम आशा है, यानी उदार दिल से किया गया आकलन। अगर थोड़ा और बारीकी से आकलन करें तो हो सकता है कि कांग्रेस के लिए और ज्यादा मुश्किलात हों, क्योंकि इनका पार्टी संगठन जमीन पर औरों के मुकाबले जर्जर स्थिति में है अभी। बसपा और मुलायम का पार्टी संगठन काफी मजबूत है। भाजपा को संघ का योगदान मिलता है, उस स्तर पर कांग्रेस के पास कार्यकर्ता नहीं हैं। मगर प्रियंका के उतरने से इनका जो कार्यकर्ता घर में बैठ गया था, वह बाहर निकलेगा। तभी इस पार्टी में रक्त संचार होगा, जो अभी औंधे मुँह पड़ी हुई है। 

– तो क्या आपके मुताबिक तुरुप का इक्का प्रियंका ही होंगी?

शीला दीक्षित को औपचारिक रूप से मुख्यमंत्री पद का दावेदार घोषित किया जा चुका है। प्रियंका को लाने का मतलब यह है कि कांग्रेस अपने लिहाज से सेमीफाइनल खेल रही है। कांग्रेस वहाँ अपना सामान इकट्ठा कर रही है, जिसके दम पर वह 2019 में कुछ सुधार की कोशिश कर सके। पार्टी के लिए यह एक अच्छी रणनीति है। यह रणनीति जीतने वाली नहीं है, बल्कि एक सम्मानजनक स्थिति पाने की है। मतलब जीते भले नहीं, मगर दौड़ते हुए नजर आयें। हारें भी तो लोग कहें कि चलो अच्छा खेले। कांग्रेस अब अपनी मौजूदगी दर्ज करने के लिए लड़ रही है, चाहे वह मौजूदगी जितनी छोटी या बड़ी हो। यह किसी भी राजनीतिक दल के लिए अच्छी बात है। 

– जब आप कह रहे हैं कि कांग्रेस मुख्यमंत्री बनाने की दौड़ में नहीं है, तो शीला दीक्षित को मुख्यमंत्री पद के लिए दावेदार घोषित करने की जरूर क्या थी?

हर विचार को एक चेहरे की जरूरत होती है। लोग 2014 में क्या बोलते थे – कि राहुल को घोषित कर देते तो अच्छा करते। अब चूँकि 2014 में कांग्रेस की ओर से कोई प्रधामंत्री पद का दावेदार चेहरा नहीं था, किसी और दल का भी नहीं था, इसलिए अकेले घोड़े की दौड़ हो गयी मोदी जी के लिए। दूसरे लिहाज से अगर आप देखें कि प्रांतों में अगर अपने सिपहसालार फिर से खड़े करने हैं, तो नाम घोषित करना चाहिए। कांग्रेस की सबसे बड़ी कमजोरी आज यह है कि उसके पास प्रांतों में लुभाने वाले चेहरे नहीं हैं। उसकी सारी निर्भरता अपने केंद्रीय नेतृत्व पर ही है। यह खराब रणनीति रही है। उसके बाद कांग्रेस को वंशवाद का आरोप भी झेलना पड़ता है और कहा जाता है कि यह प्राइवेट लिमिटेड कंपनी हो गयी है। तो मुख्यमंत्री पद का दावेदार घोषित करके यह पब्लिक लिमिटेड कंपनी बन रही है, इसमें समस्या क्या है!

– अगर भविष्य के लिए सिपहसालार खड़े करने हैं, तो उसके लिए बेहतर रणनीति यह होती कि कोई युवा चेहरा सामने लाया जाता। 

प्रियंका का नाम औपचारिक रूप से घोषित नहीं किया गया है, पर वे अच्छे से प्रचार करेंगी। तो वे 2019 में उतर नहीं सकतीं क्या? 2019 में मुख्यमंत्री के लिए चुनाव थोड़े ही होगा, उस समय तो लोकसभा के लिए उतरना होगा। और, जब जमीन तैयार हो जाती है, जब कार्यकर्ता बाहर निकल आते हैं तो उन्हीं में से कुछ अच्छे कार्यकर्ता उभर आते हैं। 

– क्या आप यह संकेत दे रहे हैं कि 2019 में प्रियंका चेहरा हो सकती हैं?

स्थिति पर निर्भर करते हुए 2019 में कुछ भी हो सकता है। 

– अभी आपने एक संकेत तो दिया इसका!

मैं कोई कांग्रेस अध्यक्ष हूँ क्या! मैं तो आपको अपना नजरिया बता रहा हूँ। क्या पता, 2019 में क्या होगा। लेकिन 2019 के लिए विकेट तो बनाया जा रहा है ना, जिस पर कांग्रेस अपने बल्लेबाज उतार सके। कौन बल्लेबाज प्रमुख होगा, सलामी बल्लेबाज कौन होगा, कौन टीम का कप्तान होगा, यह तो भविष्य बतायेगा। लेकिन आज के लिए यह नुस्खा उनकी बीमारी के हिसाब से सही है। 

(देश मंथन, 19 जुलाई 2016)

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