क्या वाकई इकतरफा चुनाव होगा बनारस में?

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पीयूष श्रीवास्तव, पत्रकार :

भगवा टोपी, सफेद टोपी, लाल टोपी… जिधर देखो टोपी ही टोपी। न टोपी पहनने वालों की कमी, न ही टोपी पहनाने वालों की कमी। हालत यह है कि जिसे देखो वही टोपी पहनने की होड़ में है।

बस सिर पर टोपी होनी चाहिए, रंग जो चाहे जो भी हो। ऐसा नजारा किसी टोपी की दुकान का नहीं, बल्कि आज कल बनारस में देखने को मिल रहा है। जब से नरेंद्र मोदी ने बनारस से लोकसभा चुनाव लड़ने का फैसला किया, और उनको चुनौती देने की ताल केजरीवाल ने ठोकी, तब से पूरा बनारस टोपीमय हो गया है। हर तरफ टोपी के जरिये चुनावी रंग हर किसी के सिर चढ़ा हुआ है। बनारस की हर गली हर चौराहा इन दिनों चाय पे चर्चा का अड्डा बन गये हैं। 

एक हफ्ता बनारस में बिताने को मिला, समाज के कई तबके के लोगों से मिलना भी हुआ। सभी पर चुनावी रंग साफ देखने को मिला। युवाओं में खासा जोश देखने को मिला। ज्यादातर युवा घर घर मोदी का नारा लगाते हुए आपको दिख जायेंगे। रिक्शे वालों से लेकर चाय वाले, पान वाले तक हर कोई इस वक्त एक ही नाम जप रहा है और वह नाम है नरेंद्र मोदी।

नरेंद्र मोदी ने भी अच्छा पैंतरा खेला है और उन्होंने अस्सी घाट के मशहूर पप्पू चाय वाले को और लंका के एक पान वाले को नामांकन के लिए अपना प्रस्तावक चुना है। इस एक पैंतरे ने हर चाय और पान की थड़ी को चुनावी चर्चा का केंद्र बना दिया है और अघोषित रूप से मोदी के समर्थकों का अड्डा भी बना दिया है।

आम तौर पर माना जा रहा है कि बनारस में चुनाव एकतरफा होने वाले हैं और सवाल जीत का नहीं, बल्कि जीत के अंतर का है। आखिर नरेंद्र मोदी कितने बड़े अंतर से जीत दर्ज करेंगे, यही सवाल ज्यादातर भाजपा कार्यकर्ताओं और नरेंद्र मोदी समर्थकों के मन में है। लेकिन यह राह इतनी आसान शायद होगी नहीं। जबसे आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल ने बनारस से चुनाव लड़ने की ताल ठोकी है, यहाँ का समीकरण थोड़ा-सा बदल गया है।

मेरी बात कुछ बुनकरों से हुई। यह वो तबका है जिसके पास बनारस में दो लाख से ज्यादा वोट हैं। इनमें ज्यादातर मुसलमान हैं, वो भी पसमांदा मुसलमान यानी मुस्लिम समाज का सबसे पिछड़ा तबका। यह तबका कांग्रेस से बेहद नाराज है, क्योंकि कांग्रेस ने अपने घोषणा-पत्र में इनका जिक्र तक नहीं किया। समाजवादी पार्टी ने बुनकरों के कर्ज माफ करने की बात कही है। लेकिन वह बात उतनी ज्यादा अपील नहीं कर पा रही है, क्योंकि कर्ज माफी बुनकरों की समस्या का समाधान नहीं है। वहीं भाजपा ने खुल कर बुनकरों के उत्थान की बात अपने घोषणा-पत्र में की है, जिसने बुनकरों को इस वक्त दुविधा में डाल दिया है।

यह मुसलमानों का वो तबका है, जिसने आज तक भाजपा को कभी वोट नहीं दिया है। नरेंद्र मोदी के नाम से इन्हें कुछ ज्यादा ही चिढ़ है। लेकिन अब सवाल धर्म से ज्यादा रोजी-रोटी का है। लिहाजा उनके सामने गंभीर उलझन है। केजरीवाल के बनारस आने के बाद यह तबका अरविंद केजरीवाल में एक उम्मीद खोजने की कोशिश कर रहा है। उनके मन में डर भी है और हिचक भी है। लेकिन फिर भी एक आस जरूर जगी है कि शायद केजरीवाल से मोदी को कड़ी टक्कर मिल जाये, लिहाजा मुसलमानों का यह तबका फिलहाल इंतजार कर रहा है और आखिरी वक्त में तय करेगा कि वोट किसे दिया जाये।

यह बात केजरीवाल को भी बखूबी पता है कि बनारस का मुसलमान इस वक्त संशय में है। इसलिए बनारस में कदम रखते ही केजरीवाल ने तमाम मुस्लिम नेताओं से मुलाकातों का दौर शुरू कर दिया। बनारस में दालमंडी के व्यापारियों से भी मेरी बातचीत हुई। सभी दबी जुबान में यह मानते हैं कि केजरीवाल की जीत मुश्किल है, लेकिन फिर भी वे उन्हें वोट दे सकते हैं क्योंकि उनके लिए मोदी को रोकना जरूरी है।

यह पूछने पर कि आखिर मोदी से समस्या क्या है, तो दालमंडी के मिर्ज़ा हारून कहते हैं कि मोदी ने गुजरात में दंगे कराये थे। मैंने फिर पूछा कि दंगे तो सबसे ज्यादा कांग्रेस के राज में और फिलहाल सपा के राज में हुए हैं। अगर दंगों को किनारे रख दें तो कोई और वजह बतायें मोदी को वोट ना देने की। इस पर उनके पास कोई जवाब नहीं था कि आखिर मोदी को वोट क्यों नहीं दिया जाये, क्योंकि मोदी के विकास के मॉडल के ये लोग भी कायल हैं।

दालमंडी के सामने चौक पड़ता है, जहाँ बड़ी संख्या में बनारसी साड़ी के कारोबारी हैं। यहां आदिल अंसारी की भी गद्दी है। वे कहते हैं कि सूरत में उनके रिश्तेदार रहते हैं, जिन्हें मोदी से कोई शिकायत नहीं है और उल्टे गुजरात में तो मुसलमान मोदी से बिल्कुल खुश हैं। आदिल कहते हैं कि मोदी को बनारस के मुसलमानों का दिल जीतना होगा, तभी वे उन पर भरोसा कर पायेंगे।

माना जा रहा था कि बनारस में केजरीवाल के आने से मुसलमान वोट बँट जायेंगे, जिससे मोदी को फायदा होगा। लेकिन बनारस के चुनावी अखाड़े से मुख्तार अंसारी के हट जाने के बाद अब मुस्लिम वोट इकतरफा होने की संभावनाएँ बढ़ गयी हैं। लिहाजा यह कहना फिलहाल गलत होगा कि मोदी के लिए बनारस का रास्ता आसान होगा। बनारस में एक बड़ा तबका ऐसा है, जो शायद केजरीवाल की बातों पर भरोसा कर ले।

एक शाम अस्सी घाट पर जाना हुआ। वहाँ एक पान वाले के पास मैने आम आदमी पार्टी का एक पर्चा और टोपी देखी। मैंने पूछा कि भईया किसको जिता रहे हो। उसने तपाक से कहा कि कांग्रेस और बीजेपी दुन्नो चोर हउएं। अबकी बार हम झाड़ू पर मुहर लगाईब। मैने पूछा कि भाजपा कैसे चोर है। उसने जो जवाब दिया, वह चौंकाने वाला था।

पान वाले ने कहा कि मोदी के एक मंत्री ने 50,000 करोड़ रुपये का कोयला घोटाला किया। टाटा को मुफ्त में किसानों की जमीन दे दी। अदाणी को आधा गुजरात बेच दिया। बच्चों को खाने के लिए खाना नहीं मिल रहा है। सबसे ज्यादा किसान गुजरात में आत्महत्या कर रहे हैं। मैंने हैरत से पूछा कि यह सब किसने बताया तो उसने कहा कि इस पर्चे में लिखा है। मैंने पूछा कि तुमने पढ़ा है यह पर्चा तो उसने कहा कि नहीं, पढ़ना नहीं आता, लेकिन झाड़ू वालों ने कहा है तो सही ही होगा। 

अब इसके आगे आप ही अंदाजा लगायें कि बनारस में क्या हो रहा है। इन सब बातों ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया। उसी शाम अस्सी घाट पर मैंने आम आदमी पार्टी के तमाम कार्यकर्ताओं को देखा, जिनमें से कोई बनारस का नहीं था। सभी बाहरी ही दिखे। एक बात हैरत करने वाली थी कि वे घाट किनारे पान-सिगरेट या चाट-पकौड़ी की दुकान लगाने वालों को ही पर्चा बाँट रहे थे और उन्हें केजरीवाल को वोट देने के लिए मना रहे थे।

बनारस में मध्यम वर्ग का एक बड़ा तबका है, जो सिर्फ नरेंद्र मोदी की तरफ देख रहा है। लिहाजा मोदी की जीत लगभग तय है। लेकिन यह उतनी आसान नहीं होगी, जितनी फिलहाल भाजपा के लोग समझ रहे हैं। बनारस के नतीजे हर बार चौंकाने वाले रहते हैं। लिहाजा कोई बड़ी बात नहीं होगी अगर इन बदले हुए समीकरणों के बीच कुछ चौंकाने वाले नतीजे आ जायें।

(देश मंथन, 25 अप्रैल 2014)

 

 

 

 

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