अब टाटा 1 एमजी Tata 1mg से ज्यादा छूट पड़ोस की दवा दुकानें दे देती हैं... ... See MoreSee Less
युवराज को पता भी नहीं है कि उनकी जेएनयू टोली ने चुपके से उनकी पार्टी का नाम बदल कर आईएनसी-एमएल कर दिया है! ... See MoreSee Less
मुख्तार अंसारी कोई विचाराधीन अपराधी नहीं था, हत्या के दो मामलों में उसे आजीवन कारावास की सजा सुनायी जा चुकी थी।
और ऐसे लोगों का सच अदालतों से ज्यादा खुद जनता जानती रहती है। फिर भी, वह चुनाव जीतता रहता था, जेल के अंदर रहते हुए चुनाव जीतता रहता था। कोई कहेगा कि लोग डर कर वोट दे देते थे। लेकिन मरने के बाद भी कब्रिस्तान के बाहर जो भीड़ जमा थी, उसे सबने देखा ही।
तो अखिलेश यादव आज मुख्तार अंसारी का मातम मनाने उसके "फाटक" पर पहुँचे तो इसमें कोई आश्चर्य है क्या? जब लोगों को मुख्तार का सच मालूम था, मालूम है, और सपा-बसपा का उसे मिलने वाला संरक्षण सबको मालूम था, मालूम है, उसके बाद भी लोग अपना वोट देते हैं अपराधी को भी, उसके संरक्षक को भी, तो राजनीतिक दल क्यों कोई शर्म करेंगे एक अपराधी की सरपरस्ती करने में? उन्हें वोट चाहिए, अपराधी का संरक्षक बन कर वोट मिलते हैं तो उसी तरह से लेंगे... ... See MoreSee Less
राजनीतिक लोगों में विचारधारा के लिए समर्पण खोजना अब निरर्थक है। राजनीति अब पूरी तरह से एक करियर है। कॉर्पोरेट जगत में लोग जिस तरह कंपनी बदलते ही नयी कंपनी के गुण गाने लगते हैं, अपनी नयी कंपनी की बिक्री बढ़ाने और पुरानी कंपनी की बिक्री तोड़ने में जुट जाते हैं, वैसे ही राजनीतिक दलों में नेता लोग टिकट नहीं मिलने पर या अच्छा पद नहीं मिलने पर उसी तरह दल बदल लेते हैं, जिस तरह से कॉर्पोरेट जगत में लोग प्रमोशन नहीं मिलने पर, बॉस से बात बिगड़ जाने पर, और ऐसे तमाम कारणों से नौकरी बदल लेते हैं।
फिर कभी लगता है कि नौकरी बदल कर गलती कर ली, तो पुराने बॉस से माफी माँग कर वापस पुरानी नौकरी भी माँग ली जाती है। ... See MoreSee Less
अगर दारू बाँटने से वोट मिलते हैं, और न बाँटने से चुनाव हारना पड़ता है - तो बताइए गलती किसकी है? दारू बाँटने वाले की, या दारू के बदले वोट बेचने वालों की? ... See MoreSee Less